सौजन्य- मनोहर कहानियां
‘आनंद गिरि के द्वारा मेरे ऊपर जो आरोप लगाए गए, उस से मेरी और मठ मंदिर की बदनामी हुई. मेरे मरने की संपूर्ण जिम्मेदारी आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी जो मंदिर के पुजारी हैं और आद्या प्रसाद तिवारी के बेटे संदीप तिवारी की होगी. मैं समाज में हमेशा शान से जीया. आनंद गिरि ने मुझे गलत तरह से बदनाम किया.
‘मुझे जान से मारने का प्रयास भी किया गया. इस से मैं बहुत दुखी हूं. प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं कि मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कानूनी काररवाई की जाए. जिस से मेरी आत्मा को शांति मिले.
‘प्रिय बलवीर गिरि, मठ मंदिर की व्यवस्था का प्रयास करना. जिस तरह से मैं ने किया, इसी तरह से करना. नितीश गिरि और मणि सभी महात्मा बलवीर गिरि का सहयोग करना. परमपूज्य महंत हरिगोबिंदजी एवं सभी से निवेदन है कि मठ का महंत बलवीर गिरि को बनाना. महंत रवींद्र गिरि जी (सजावटी मढ़ी) आप ने हमेशा साथ दिया. मेरे मरने के बाद बलवीर गिरि का साथ दीजिएगा. सभी को ओम नमो नारायण.
‘मै महंत नरेंद्र गिरि 13 सितंबर को ही आत्महत्या करने जा रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया. आज हरिद्वार से सूचना मिली कि एकदो दिन में आनंद गिरि कंप्यूटर के द्वारा मोबाइल से किसी लड़की या महिला के साथ मेरी फोटो लगा कर गलत काम करते हुए फोटो वायरल कर देगा.
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‘मैं ने सोचा कहांकहां सफाई दूंगा. एक बार तो बदनाम हो जाऊंगा. मैं जिस पद पर हूं वह गरिमामयी पद है. सच्चाई तो लोगों को बाद में पता चल ही जाएगी, लेकिन मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इसलिए मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं.
‘बलवीर गिरि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के पास दी जाए. यही मेरी अंतिम इच्छा है. धनजंय विद्यार्थी मेरे कमरे की चाबी बलवीर महराज को दे देना. बलवीर गिरि एवं पंच परमेश्वर निवेदन कर रहा हूं कि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के नीचे लगा देना.
‘प्रिय बलवीर गिरि ओम नमो नारायण. मैं ने तुम्हारे नाम एक रजिस्टर्ड वसीयत की है. जिस में मेरे ब्रह्मलीन हो जाने के बाद तुम बड़े हनुमान मंदिर एवं मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बनोगे. तुम से मेरा अनुरोध है कि मेरी सेवा में लगे विद्यार्थी जैसे मिथिलेश पांडेय, रामकृष्ण पांडेय, मनीष शुक्ला, शिवेष कुमार मिश्रा, अभिषेक कुमार मिश्रा, उज्जवल द्विवेदी, प्रज्जवल द्विवेदी, अभय द्विवेदी, निर्भय द्विवेदी, सुमित तिवारी का ध्यान देना.
‘जिस तरह से हमेशा मेरी सेवा और मठ की सेवा की है उसी तरह से बलवीर गिरि महराज और मठ मंदिर की सेवा करना. वैसे हमें सभी विद्यार्थी प्रिय हैं. लेकिन मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा मेरे अति प्रिय हैं.
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‘कोरोना काल में जब मुझे कोरोना हुआ मेरी सेवा सुमित तिवारी ने की. मंदिर में मालाफूल की दुकान मैं ने सुमित तिवारी को किरायानामा रजिस्टर किया है. मिथिलेश पांडेय को बड़े हनुमान रुद्राक्ष इंपोरियम की दुकान किराए पर दी है. मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा को लड्डू की दुकान किराए पर दी है.’
महंत की मौत का हंगामा
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे देश में छा गई. सोशल मीडिया, टीवी और अखबारों में प्रमुखता के साथ इस को दिखाया जाने लगा.
महंत नरेंद्र गिरि को जानने वाले लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा सकते थे. महंत की मौत हत्या और आत्महत्या के बीच झूलने लगी और लोग सीबीआई जांच की मांग करने लगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा नेता अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही साथ बसपा नेता मायावती, सपा नेता अखिलेश यादव आदि नेताओं के शोक संदेश ट्विटर पर आने लगे.
पुलिस ने सुसाइड नोट में लिखे नामों को आधार मान कर आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी को हिरासत में ले लिया. इन पर धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप) लगाया गया.
यह सभी महंत नरेंद्र गिरि के करीबी थे. इधर कुछ दिनों से आपस में इन का विवाद चल रहा था. आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी का कहना था कि महंतजी से हमारा कोई झगड़ा नहीं था. उन की मौत के बाद हमें फंसा कर दोषियों को बचाने का काम किया जा रहा है.
नरेंद्र सिंह से महंत नरेंद्र गिरि का सफर
बात 1984 की है जब प्रयाग में संगम के किनारे कुंभ का मेला लगा था. लाखोंकरोड़ों की भीड़ रोज गंगा स्नान कर रही थी. 20 साल का युवक भी इस भीड़ का हिस्सा बन कर संगम नहाने के लिए आया. संगम पर संतों की चकाचौंध को देख कर युवक के मन में यहीं बस जाने का मन करने लगा.
वह संगम किनारे निरंजनी अखाडे़ के संत कोठारी दिव्यानंद गिरि के पास आया. यहीं साथ में रह कर उन की सेवा करने लगा. कुंभ खत्म हो गया तो भी युवक अपने घर जाने को तैयार नहीं हुआ. तब दिव्यानंद उस युवक को ले कर हरिद्वार चले गए.
वहां उस का संपूर्ण भाव देख कर दिव्यानंद ने 1985 मे नरेंद्र गिरि को संन्यास की दीक्षा दी और उस का नामकरण नरेंद्र गिरि के रूप में कर दिया. इस के बाद श्रीनिरंजनी अखाड़े के महात्मा व श्रीमठ बाघंबरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने गुरुदीक्षा दी.
बलवंत गिरि के न रहने के बाद नरेंद्र गिरि 2004 में श्रीमठ बाघंबरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बडे़ हनुमान मंदिर के महंत का पद संभाला. इस के बाद वह मठ और मंदिर को भव्य स्वरूप दिलाने का काम करने लगे.
2014 में उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि मूलरूप से प्रयागराज के सराय ममरेज के करीब छतौना गांव के रहने वाले थे. उन के पिता का नाम भानुप्रताप सिंह था. वह आरएसएस में थे. पिता का प्रभाव नरेंद्र गिरि पर था. नरेंद्र गिरि का असली नाम नरेंद्र सिंह था.
वह 4 भाई थे. उन के भाइयों के नाम अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आंनद सिंह थे. नरेंद्र गिरि यानी नरेंद्र सिंह ने बाबू सरजू प्रसाद इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी.
1980 में नरेंद्र सिंह 20 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे. वह प्रयाग के निरजंनी अखाडे़ में रहने लगे. अपने मधुर स्वभाव और मेहनती होने के कारण जल्द ही उन का नाम अखाड़े के प्रमुख लोगों में शामिल हो गया. अखाड़े में शामिल होने के 6 साल के अंदर ही नरेंद्र गिरि पदाधिकारी बन गए थे.
निरंजनी अखाड़े का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि ने अखाडे़ के विस्तार पर काम करना शुरू किया. बातचीत में अच्छा होने के कारण जल्द ही वह लोकप्रिय होने लगे. उन के संपर्क के बाद मठ की जायदाद और संपत्ति बढ़ने लगी, जिस की वजह से नरेंद्र गिरि का नाम केवल निरंजनी अखाड़े में ही नहीं, बाकी अखाड़ों में भी सम्मान से लिया जाने लगा.
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1998 में नरेंद्र गिरि का नाम संतों की सब से बड़ी अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी के रूप मे लिया जाने लगा. अखाड़ा परिषद का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि की अलग पहचान बनने लगी.
साजिश दर साजिश
नरेंद्र गिरि को सब से बड़ी सफलता तब मिली, जब वर्ष 2014 में अयोध्या निवासी संत ज्ञानदास की जगह पर उन्हें संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और नरेंद्र गिरि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी हो गए.
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