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निरंजन बिंदास किस्म का इंसान था. वह अपने अटल यौवन और शोख अंदाज का भरपूर लाभ उठाना चाहता था. स्त्रियां उस के डीलडौल और मस्ताने अंदाज पर दीवानी भी थीं. उस का पहला बच्चा 3 साल का मेंटली रिटार्डेड बेटा था. उस की बड़ी जिम्मेदारी बन कर उभर रहा था.
एक तरह से उस की आजादी पर पहरा. उस की मां के नौकरी पर जाने और आया की जरा सी लापरवाही ने उसे अपने बच्चे को मार देने को उकसाया और वह कर गुजरा.
नौकरी से आ कर मरे हुए बच्चे को जब सीने से लगा कर उस मां ने कसम खाई कि निरंजन को बेमौत मरते देख कर ही उसे चैन मिलेगा, तब उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कानून की नजर में निरंजन का अपराध साबित कर सके.
‘‘दीदी, अब आप ही बताइए कि मैं इस जाल से कैसे मुक्ति पाऊं? अभी हम लोग रात गए बच्चे के मिसकैरेज को ले कर लड़ ही रहे थे कि वह दनदनाता हुआ घर से निकल गया. इस के पहले मैं लोगों से सुन चुकी थी कि निरंजन भव्य निलय में रहने वाले एक दंपति के घर रोजाना जाने लगा है.’’
‘‘जहरा खातून और अली बाबर के घर?’’
‘‘हां, आप को कैसे मालूम?’’
बात बनाने वाली औरतें उसे खूब पसंद हैं. जहरा खातून इसी ढांचे की है, पति कमाता नहीं है अलबत्ता बीवी के कपड़े की दुकान में सेल्समैन जरूर है. जहरा ने निरंजन को तीरेनजर से आरपार कर रखा था. पान वाले होंठ, रसीले गुलाबी. पायल वाली ठुमकती एडि़यां और लचकती कमर से निरंजन बेकाबू था.
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वैसे तो वह कंजूस था, लेकिन मनपसंद औरतों पर लुटाने में उसे कोई गुरेज भी नहीं था. वह और जहरा इसी ताक में रहते कि कब अली बाबर घर से बाहर हो और उन्हें अकेले में मौका मिले. लेकिन मौके थे कि लंबे समय तक मिले नहीं. दोनों झल्लाए हुए थे.
‘‘दीदी, निरंजन के घर से बाहर हो जाने के बाद मैं सोफे पर पसरी पड़ी थी. मैं अंदर से मर चुकी थी. पत्नी के नाते उस से मेरा लगाव अब बिलकुल ही खत्म था. उस ने मेरी हैसियत जबरदस्ती गले पड़ी वाली कर रखी थी. अपनी जिंदगी वह अलग जीता था. मैं बस तड़पतड़प कर जी रही थी.
‘‘अभी मैं सोफे पर ही पड़ी थी कि वह धड़धड़ाते हुए अंदर आया और मुझे संभलने का मौका दिए बगैर मेरी नाक पर दवा लगा रुमाल रख दिया. जहां तक मुझे याद है, उस के साथ जहरा खातून भी थी.’’
‘‘यानी तुम तब बेहोश थी जब तुम्हारे घर कुछ खतरनाक खेल खेले गए?’’
‘‘जी.’’
‘‘इसलिए तुम पुलिस की पूछताछ का जवाब नहीं दे पा रही हो. और बेहोश करने के बाद काम आया कपड़ा बाद में लाश के पास पाया गया.’’
‘‘जी दीदी, मगर आप? आप प्लीज बताइए, आप हैं कौन? क्यों मेरी मदद कर रही हैं?’’
‘‘निरंजन के पास पैसा तो काफी था. क्या वह घर की तिजोरी में पैसे अब भी रखता था?’’
‘‘हां, कभी जरूरत पड़े तो.’’
‘‘सही फरमाया, काले कामों में सफेद पैसे जरूरत के वक्त काम नहीं आते. तो हम एक बढि़या वकील करते हैं और जरूरत हुई तो खुफिया एजेंसी की मदद लेंगे. रही बात मेरी, तो सही समय आने दो अभी तुक्का मत लगाना.’’
मैं ने उसे गहरी मुसकान से देखा और घर से निकल गई.
मेरी खुद की जांच अपने तरीके से चल रही थी. नताशा को सरकारी वकील दिया गया था लेकिन उस के लिए मेरे खुद के वकील लगाने के प्रस्ताव को कोर्ट से मंजूरी मिल गई.
हम ने अपने स्तर पर नए सिरे से पड़ताल शुरू की.
इधर जब से यह केस हुआ था, न जाने क्यों जहरा तो जहरा, उस का पति अली बाबर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उन का कारोबार घर में ही था और वह अच्छे खातेपीते लोग थे. अचानक घर में ताला लगा नजर आने लगा. लोगों के बीच कानाफूसी हुई, लेकिन मर्डर मिस्ट्री में कौन नाक डाले. वैसे भी जमाने में नाक ही ऐसी चीज है जिस की फिक्र में बड़ेबड़े संभले रहते हैं.
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लेकिन मुझे तसल्ली नहीं थी. मैं ने एक रात 12 बजे अपने डर और दायरों को दरकिनार करते हुए भव्य निलय का रुख किया.
जहरा के घर क्या वाकई ताला जड़ चुका है या कुछ और बाकी भी है.
भव्य निलय जाने से पहले मैं ने हिम्मत बटोरी, क्योंकि कई रिस्क लेने थे. और हां, ये लेने ही थे क्योंकि इस के बिना मैं खुद भी बेचैन थी.
मैं ने बुरका पहना, छोटी सी अटैची ली, भव्य निलय के फाटक पर पहुंची. यहां गार्ड को जवाब देना था, कहा, ‘‘जहरा आपा से मिलने आई हूं. उन की खाला की बेटी हूं.’’
‘‘पर मैडम, वे तो यहां नहीं हैं.’’
‘‘अरे, फिर मैं इतनी रात गए कहां रुकूंगी. मेरी ट्रेन लेट हो गई, अब तो कोई होटल भी नहीं मिलेगा, कुछ करो.’’ मैं ने गार्ड को 50 रुपए का नोट थमाया.
नोट की चोट सीधे दिमाग पर पड़ती है. बंदा ढीला पड़ गया. मुझे पीछे गली वाले दरवाजे की तरफ ले गया और बताया कि जहरा ने किसी को भी बताने को मना किया है. दरअसल पुलिस से पंगा है. इन की निगरानी की वजह से इन के घर के सामने दरवाजे पर ताला लगा है.
‘‘अच्छा है, आप उन का साथ दे रहे हैं वरना मेरी आपा का क्या होता.’’
मैं ने जहरा को फोन लगाने का नाटक किया और उसे लगे हाथ वहां से रवाना कर दिया. गार्ड के जाने के बाद मैं खिड़की से नजारे देखने की कोशिश करने लगी. आश्चर्य! यह निरंजन था जहरा के साथ. मेरा अंदेशा सही था. निरंजन और जहरा अपनी मनमानी पर थे, आजादी के जश्न में मग्न.
उन्हें इस तरह कैमरे में कैद कर और खुद को उन्हें देखते रहने की जिल्लत से बचा कर मैं निकलने को हुई. एक अच्छेखासे अभिनय के साथ मैं गार्ड के सामने से गुजरी. गार्ड कहता रह गया, ‘‘अरे मैडम, कहां जा रही हो?’’
मैं सिसकते हुए दौड़ती रही और कहती रही, ‘‘आपा के साथ पता नहीं कौन गैरमर्द है. मुझे घुसने ही नहीं दिया. जाने आपा कैसे बदल गईं.’’
इतनी देर में मैं काफी तेज भाग कर गली में आ चुकी थी और गार्ड के भौचक रह जाने से ले कर मेरे नदारद होने तक कई मिनट के फासले बड़ी सफाई से अंधरे में गुम हो चुके थे.
मेरे दिमाग में गुत्थी लगभग सुलझ चुकी थी, लेकिन साबित कैसे किया जाए. ये लोग खर्च बचाने और सुरक्षित रहने के लिए खुद के ही घर में अय्याशी करते हैं लेकिन बाहर वालों की आंखों में धूल झोंके रखने के लिए बाहर ताला लगाते हैं.
यानी लगे हाथ यह भी बात है कि निरंजन अगर जिंदा है तो लाश किस की है? और अली बाबर के बाहर माल लेने जाने की बात भी कहां तक सच्ची है?
इन्हें रंगेहाथ पकड़ कर जिरह करनी पड़ेगी. मैं ने वकील से पहले अकेले में मिलना सही समझा. उन्हें वीडियो रिकौर्डिंग दिखाई और सारी बातें बताईं.
वकील ने कहा, ‘‘मैडम आप ने लगभग एंड गेम खेल लिया है समझो, खुफिया एजेंसी की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’
बात साफ थी कि निरंजन और जहरा की अय्याशी की वजह से ये सारे खूनी तमाशे हुए और नताशा की सफाई कार्यक्रम के तहत उसे फंसाने की साजिश की गई. लेकिन सवाल यह था कि आखिर लाश किस की थी? कहीं जहरा के शौहर अली बाबर की तो नहीं? लाश को उन्होंने बुरी तरह गोद दिया था, चेहरा तेजाब से झुलसाया गया था. वे शायद इस खुशफहमी में थे कि निरंजन की अनुपस्थिति को उस का कत्ल मान लिए जाने में दिक्कत नहीं आएगी.
खून हुए महीना भर हो चुका था. जांच के पीछे से उन की रंगरलियां तो जहरा के घर में चल ही रही थीं लेकिन सवाल यह था कि उन की जिंदगी की गाड़ी चल कैसे रही थी? न तो निरंजन बिजनैस संभाल रहा था और न ही जहरा कपड़े बेच रही थी. जमापूंजी के लिए दिन में उन्हें बैंक भी तो जाना था. कौन था जो उन की मदद कर रहा था?’’
खैर, ढेरों सवालों के साथ वकील साहब और मैं पुलिसिया जांच के संपर्क में थे.
हम ने पुलिस को वीडियो दिखाया और दोनों को तब धर दबोचा गया, जब दोनों रात में जहरा के घर मौज में डूबे थे. निरंजन के चेहरे का पानी उतर चुका था. वह बदहवास सा पुलिस की गिरफ्त में था. उस ने सोचा नहीं था कि उस की चालाकी इस तरह पकड़ी जा सकेगी.
दरअसल, उसे उस सामान्य सी टीचर की असामान्य सी उपस्थिति का अंदाजा नहीं था. मैं ने पुलिस से अनुरोध किया था कि अगर परिणाम जल्द चाहते हैं, तो मुझे भी जिरह का मौका दिया जाए. प्लानिंग के अनुसार वकील, पुलिस और जज की उपस्थिति में शुरुआती जिरह के लिए निरंजन की कोठी का चयन किया गया.
नताशा के सामने निरंजन और जहरा को बिठाया गया. मैं ने सवाल पूछने की इजाजत मांगी. ये सवाल कायदे के अनुसार संबंधित अधिकारियों को पहले ही बताए जा चुके थे.
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