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कहानी मोहनलालगंज के कोराना गांव की है. एक सामान्य जीवन गुजारते हुए यादव परिवार में
शटरिंग का काम करने वाला घर का मुखिया रणवीर यादव जहां अपने कामकाज के सिलसिले में गांव और शहर एक करता रहता था, वहीं उस की पत्नी रूमा देवी घरेलू कामकाज में लगी रहती थी.
खाना पकाने, बरतन मांजने, कपड़े धोने, अनाज के रखरखाव से ले कर साफसफाई एवं मवेशियों का भी खयाल रखने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. उस में उन की छोटी बहन मोरकली और बेटी पारुल यादव भी मदद करती थी. वैसे पारुल पढ़ाई भी कर रही थी.

इन के अलावा पट्टीदारों में रामसुमेर यादव और उस का छोटा भाई आशीष यादव का भी अपने चचेरे बड़े भाई रणवीर यादव के घर आनाजाना लगा रहता था. परिवार में मेलजोल बना हुआ था. वक्तवेबक्त सभी एकदूसरे के सुखदुख में सहयोगी बने रहते थे.रामसुमेर खेतीकिसानी के कामों में लगा रहने वाला एक विवाहित युवक था. किंतु था मनचला. गांव की लड़कियों और दूसरी औरतों को वासना की नजरों से देखता था. मौका मिलते ही उन से मजाक करता और छेड़छाड़ तक कर दिया करता था.

एक रोज कालेज से लौटती पारुल को उस के चाचा रामसुमेर ने रास्ते में रोक लिया. उसे डांटते हुए बोला, ‘‘देख पारुल, तुझे आखिरी बार समझा रहा हूं, मेरे और मोरकली के बीच में तुम मत आओ. तुम बहुत छोटी हो इसलिए चेता रहा हूं.’’पारुल कुछ कहे बगैर चुपचाप अपने चाचा की बात सुन कर घर आ गई. लेकिन गुस्सा मन में दबा था. बरामदे में कुरसी के साथ लगी टेबल पर किताबों का बैग पटका और सीधे रसोई में घुस गई. पानी पीने के लिए स्टील का गिलास उठाया, लेकिन वह हाथ से छूट कर जमीन पर जा गिरा. गिलास वहीं पर 2-3 बार उछलने के बाद झनझनाहट की तेज आवाज के साथ घूमने लगा.
बगल के कमरे से उस की मां रूमा की आवाज आई, ‘‘पारुल, अरे ठीक से. बरतन पर अपना गुस्सा क्यों निकाल रही है.’’

असल में रूमा ने उसेघर में पैर पटकती हुई आते देखा था और घर में बरतन गिरने की वजह वह जानती थी. ऐसा तभी होता था, जब पारुल गुस्से में होती थी.‘‘क्या बात है, इधर आ कर बता तो!’’ वह बोली.
‘‘अरे कुछ नहीं मम्मी! मोरकली कहां है?’’ पारुल ने मम्मी को जवाब देते हुए पूछा.
‘‘क्यों? होगी कहीं? क्या किया मोरकली ने? ..और सुन वह तुम से बड़ी है मौसी कह कर नहीं बुला सकती हो.’’ मम्मी ने समझाया.‘‘कैसी मौसी मम्मी? उस के चलते ही हमें आज चाचा ने चार बातें सुना दी,’’ पारुल तुनकती हुई बोली.

‘‘कौन रामसुमेर! वह थोड़ी देर पहले ही तो यहां आया था. मैं ने उसे डांट कर भगाया. वह मोरकली की शिकायत कर रहा था.’’ रूमा बोली.तब तक पारुल ने मम्मी के पास आ कर रास्ते में चाचा द्वारा कही गई बात बता दी.इस पर रूमा बोली, ‘‘अच्छा तो उस करमजली के चलते बात यहां तक आ पहुंची है. आने दो उसे, अभी उस की खैर लेती हूं. बाबूजी ने उसे मेरे गले मढ़ दिया है. कब तक यहां रहेगी पता नहीं.’’मोरकली रूमा की चचेरी बहन थी, जिस के मांबाप नहीं थे. उस की देखभाल के लिए रूमा के पिता उस के पास छोड़ गए थे.मोरकली थी कि अपनी ही मस्ती में रहती थी. घरेलू काम में रूमा की बहुत मदद करती थी. इस कारण घर के सभी सदस्य उस के मेहनती होने को ले कर खुश रहते थे, लेकिन कुछ दिनों से उस के रंगढंग में बदलाव आ गया था. वह खेतों में घूमने लगी थी. पास के दूसरे लोगों से गप्पें लड़ाने लगी थी. हंसीमजाक भी करने लगी थी.

पारुल ने पकड़ी मोरकली का करतूत एक बार मोरकली को पारुल ने रामसुमेर से हंसहंस कर बातें करते देख लिया था. पारुल को देखते ही दोनों अचानक चुप हो गए थे. रामसुमेर चुपचाप वहां से चला गया था. मोरकली ने पारुल का हाथ पकड़ते हुए कहा था, ‘‘पारुल, मम्मी को मत बोलना कि मैं तुम्हारे चाचा के साथ मिली थी. उसी ने मुझे जबरदस्ती रोक लिया था. मैं तो खेत से घर आ रही थी.’’ मोरकली सफाई देती हुई बोली.

उस रोज पारुल अपनी मौसी के कहने का मतलब बहुत अधिक नहीं समझ पाई कि वह उसे देख कर सफाई क्यों देने लगी थी. किंतु वह इतना समझ गई थी मोरकली अपनी करतूत छिपाना चाहती है.
2 दिन बाद दोपहर को उस ने अपने घर में जो देखा, वह उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा. हुआ यह था कि पारुल अपने कालेज से घर आई थी. हमेशा की तरह उस ने अपना बैग बरामदे में टेबल पर रख दिया था और रसोई में पानी पीने के लिए जाने लगी, लेकिन उस के कमरे से फुसफुसाने की आवाजें सुनाई दीं. उस ओर देखा. कमरे का दरवाजा बंद था.

उस की जिज्ञासा जागी और दरवाजे के पास आ गई. तब आवाजें और साफ सुनाई देने लगी थीं. मोरकली कह रही थी, ‘‘…अब जाओ, कोई आ जाएगा.’’पारुल ने दरवाजे से कान सटा दिए थे. कुछ सेकेंड बाद फिर आवाज आई, ‘‘अरे मुंह मत बंद करो, दम घुट जाएगा. चलो, हटो अब.’’
पारुल तब तक इतना समझ गई थी कि कमरे में मोरकली के साथ कोई और भी है, और जो भीतर हो रहा है वह गलत है. उस ने दरवाजा पीटने के लिए हाथ उठाया ही था कि एक झटके में दरवाजे का एक पल्ला खुल गया.

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