Social Drink: बदलते दौर के साथ लोगों की सोच और लाइफस्टाइल में काफी बदलाव आ चुका है. पहले जहां शराब पीना एक बुरी आदत समझी जाती थी, वहीं आज इसे सोशल ड्रिंक के तौर पर देखा जाने लगा है. मौडर्न समाज में शराब को बातचीत का और रिश्तों को समझने का एक जरीया माना जाने लगा है. खासकर बड़े बिजनसमैन, मल्टीनैशनल कंपनियों के कौर्पोरेट इवैंट्स और पार्टीज में शराब सर्व करना आम बात हो चुकी है. वह समय भी अब पीछे छूटता जा रहा है जब बच्चों को पिता का शराब पीना शर्मनाक लगता था. अब कई परिवारों में वीकैंड गेटटुगेदर पर सब साथ बैठ कर एंजौय करते हैं चाहे वह बीयर हो या वाइन या फिर ह्विस्की ही सही.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह बदलाव सही है? अगर आज इसे नौर्मल माना जा रहा है, तो फिर पहले के लोग इसे बुरा क्यों समझते थे? क्या समाज की सोच बदल गई है?
अगर आज के समय को ध्यान से देखा जाए तो यह बदलाव पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता. जब बच्चों को शुरू से ही यह सिखाया जाए कि किसी भी चीज की एक लिमिट होती है चाहे वह खाना हो, स्क्रीन टाइम हो या शराब तो वे जिंदगी में बैलेंस बनाना बेहतर सीखते हैं.
आज के युवा पुराने जमाने की तरह शराब को नशा नहीं, बल्कि एक सोशल ऐक्टिविटी की तरह लेते हैं. वे इसे मस्ती या दिखावे के लिए नहीं, बल्कि दोस्तों या परिवार के साथ ऐंजौय करने के लिए लेते हैं. अगर सही जानकारी और समझ घर से ही मिले, तो बाहर की दुनिया उन्हें गुमराह नहीं कर सकती. अकसर जिन बातों को ले कर बच्चों को सख्ती से रोका जाता है, उन में उन की ऐक्साइटमैंट और ज्यादा बढ़ जाती है. यही ऐक्साइटमैंट उन्हें गलत राह पर भी ले जा सकती है.
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