Arvind Kumar Bajpai: बिहार में नीतीश सरकार का कार्यकाल इस साल 22 नवंबर, 2025 तक है. मतलब, बिहार विधानसभा चुनाव दस्तक देने वाले हैं और ऐसा माना जा रहा है कि सितंबर से अक्तूबर महीने के बीच प्रदेश में आचार संहिता लग जाएगी. सबकुछ सही रहा तो अक्तूबर से नवंबर महीने के शुरुआती हफ्ते के बीच वोटिंग और वोटों की गिनती पूरी कराई जा सकती है.
विधानसभा सिर पर हैं, तो सियासी दलों में भी अपनीअपनी रणनीति बनाने का काम शुरू हो गया. चूंकि गठबंधन का दौर है, तो पाला बदलने की गुंजाइश और फरमाइश दोनों को हवा दी जा रही है. वोटरों को रिझाने का खाका खींचा जाने लगा है, पर साथ ही जनता यह भी जानना और समझना चाहती है कि प्रदेश के मुद्दों पर नेता कितने संजीदा हैं.
तो क्या हैं बिहार के मुद्दे? क्या वहां भी मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के सब्जबाग दिखाए जाएंगे? जातिवाद या प्रगतिवाद, नेता जनता को किस सड़क की राह दिखाएंगे? वहां जो 'रिवर्स माइग्रेशन' का गुब्बारा फुलाया जा रहा है, वह कितनी ऊंची उड़ान भरेगा?
ऐसे ही कुछ सवालों के हल जानने के लिए हम ने लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक सदस्य, वरिष्ठ उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रवक्ता अरविंद कुमार बाजपेयी से बात की, जो सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट और सौलिसिटर भी हैं. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश :
आगामी विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी की क्या अहम रणनीति रहेगी?
-साल 2014 में हम ने बिहार के लिए एक विजन डौक्यूमैंट बनाया था 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट'. इस में हम ने बिहार के विकास का पूरा खाका बनाया कि कैसे पलायन रोका जाए, क्या नया काम किया जाए, कैसे इंडस्ट्री यहां रह जाएं वगैरह. जब भी हम चुनाव लड़ते हैं, तो उस विजन डौक्यूमैंट को जनता के सामने रखते हैं.
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