अमेरिका की दरियादिली को 3 साल तक अमेरिकियों के खिलाफ कहने वाले खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब एशिया, अफ्रीका और यूरोप के देशों को 60 अरब डौलर की सहायता देने को तैयार हो गए हैं. यह उन का हृदय परिवर्तन नहीं, बल्कि चीन के साथ, प्रभाव के क्षेत्र की जंग का हिस्सा है. राष्ट्रपति चुने जाने से पहले और बाद में ट्रंप यह कहते रहे थे कि अमेरिकी जनता का पैसा दूसरों पर खर्च किया जाए, यह गलत है.
इस के पहले चीन के नेताओं ने वन बैल्ट, वन रोड कार्यक्रम लगभग 60 देशों में चालू कर के चीन के लिए एक बड़े बाजार का रास्ता बनाना शुरू कर ही दिया. इन 60 देशों में सड़कों, रेलों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों को दुरुस्त करने का काम हो रहा है और वह इस पर 100 अरब डौलर से ज्यादा खर्च करने वाला है, जिस में से काफी खर्च हो भी चुका है.
चीन पैसा दान दे रहा हो, ऐसा नहीं. हर दान देने वाले के छिपे स्वार्थ होते हैं पर कई बार दान दोनों के लिए हितकारी होता है. वन बैल्ट, वन रोड कार्यक्रम से चीन का सामान तो दूर देशों में पहुंचेगा ही, वहीं उन देशों का कच्चा माल, मजदूर भी चीन पहुंच सकेंगे. चीन अपना काम जिन देशों में बांट सकेगा, वहां वहीं का कच्चा माल व वहीं के कर्मचारी इस्तेमाल हो सकते हैं.
अमेरिका की समृद्धि के पीछे उस की दूसरों की सहायता करने की नीति रही है. अमेरिका ने फौजें वहां भेजीं जहां आंतरिक विवाद खड़े हुए थे और जहां लोकतंत्र को खतरा था. वहीं, अमेरिका ने जिस देश की सहायता की, वहां से उसे कच्चा माल मिला और बाजार भी. सहायता देना एकतरफा काम नहीं है. भारत के जो सेठ दानी कहे जाते हैं वे असल में अपने स्थायी ग्राहक भी पा लेते हैं और निष्ठावान कर्मचारी भी.
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