कुछ शब्द जन्म लेते ही सामाजिक सड़ांध को उजागर कर देते हैं. ‘हिंदू पाकिस्तान’ उन्हीं में से एक है. इस शब्द से यह मतलब कतई मत निकालना कि जल्दी ही हमारा तथाकथित दुश्मन देश पाकिस्तान इसलाम को छोड़ कर हिंदू देश बन जाएगा और इतिहास रच देगा, बल्कि यह बजबजाता शब्द हमारे भारत देश के उस भविष्य से जुड़ा है, जो कभी सच हो गया तो हमारी आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं कर पाएगी.

दरअसल, खूबसूरत तन और नैननक्श के मालिक पढ़ेलिखे कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया था जिस से देश के सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया.

उन्होंने एक सार्वजनिक मंच पर बोल दिया था कि अगर साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी दोबारा सत्ता में आ गई तो वह संविधान बदल देगी और भारत को ‘हिंदू पाकिस्तान’ में बदल देगी.

शशि थरूर ने अपने इस बयान में यह भी कहा था कि संघ परिवार के सभी विचारक चाहते थे कि भारतीय संविधान को त्याग दिया जाए. भाजपा सरकार को बड़े बदलाव करने के लिए संविधान में बदलाव की जरूरत होगी. इस के लिए उसे लोकसभा और राज्यसभा में दोतिहाई बहुमत के साथसाथ आधे राज्यों में बहुमत की जरूरत है. अपने सहयोगियों के साथ उस के पास लोकसभा में दोतिहाई बहुमत है. उस के पास आधे से ज्यादा राज्य हैं. केवल राज्यसभा में बहुमत नहीं है. लेकिन 4-5 सालों में वह राज्यसभा में भी बहुमत हासिल कर सकती है.

शशि थरूर का कहना है कि जैसे ही भाजपा ये तीनों ताकतें हासिल कर लेगी, वह मौजूदा संविधान को उखाड़ फेंकेगी और एक नया संविधान लिखेगी. यह नया संविधान हिंदू राष्ट्र के जैसा होगा. वह अल्पसंख्यकों के लिए समानता वाले अधिकार हटा देगी. फिर भारत एक ‘हिंदू पाकिस्तान’ होगा. यह वह भारत नहीं होगा जिस के लिए गांधी, नेहरू और स्वतंत्रता सेनानी आजादी की लड़ाई लड़े थे.

चूंकि पाकिस्तान एक मुसलिम देश है और वहां पर धर्म की सत्ता सब से ज्यादा ताकतवर है, इसलिए शशि थरूर ने भारत को ‘हिंदू पाकिस्तान’ बनाने वाली बात पर जोर दिया और भाजपा के एजेंडे के पीछे छिपे मनसूबों को जगजाहिर करने की कोशिश की.

लेकिन भारत और पाकिस्तान में एक बुनियादी फर्क यह भी है कि अगर पाकिस्तान में धर्म को सब से ऊंचा दर्जा दिया गया है तो भारत में धर्म से भी ज्यादा बुरी बीमारी हावी है. यह बीमारी हमारे देश के तकरीबन हर शख्स की रगरग में बसी है जिसे जातिवाद कहते हैं.

पिछले 4 सालों में जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई है और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से देश में जातिवाद के नाग और ज्यादा ताकतवर हुए हैं, उन में उन्माद का नया जहर भर दिया गया है.

मसलन, पिछले 4 सालों में भारत में लव जिहाद के अलावा हिंदूमुसलिम, मंदिरमसजिद, हिंसा, आगजनी और तबाही, बलात्कार, घरवापसी, पाकिस्तान भागो जैसे मुद्दे उछाले गए. इस के अलावा जातिवाद के जहर ने भी अपना असली रंग दिखाया.

इसी सब पर शशि थरूर ने लेख भी लिखा कि जब से?भाजपा सत्ता में आई है, तब से हिंदुत्व का झंडा ले कर चलने वाली ताकतों की वजह से देश में कई जगह हिंसाएं हुई हैं. साल 2014 के बाद से अब तक अल्पसंख्यक विरोधी हिंसाओं में 389 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं.

शशि थरूर ने आगे लिखा है कि पिछले 8 सालों में गौहत्या से जुड़ी 70 हिंसक घटनाएं हुई हैं जिन में से 97 फीसदी यानी 70 में से 68 वारदातें भाजपा के शासन में हुई हैं. इन वारदातों में 28 लोग मारे जा चुके हैं और 136 लोग घायल हुए हैं. इन वारदातों में 86 फीसदी शिकार मुसलिम हैं.

वैसे, गौभक्तों के निशाने पर केवल मुसलिम ही नहीं रहे हैं, बल्कि दलित भी उन का शिकार बने?हैं.

गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 से साल 2016 के बीच देशभर में 2,885 सांप्रदायिक दंगे हुए हैं. बहुत से मामले पुलिस दर्ज करते हुए ही साधारण मारपीट के बना देती है पर फिर भी आंकड़े काफी भयावह हैं.

शशि थरूर जिस तरह से भाजपा पर इलजाम लगा रहे हैं या भविष्य में वह क्या कर सकती है, उस का आज ही जिक्र कर रहे हैं तो ऐसे सवाल जरूर सामने आते हैं कि उन के ऐसा कहने की वजह क्या है? आज की 21वीं सदी में जब दुनिया के वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर जिंदगी के सुराग ढूंढ़ रहे हैं, उस में भारतीय जनता पार्टी 1960 के आसपास के भारत की इमेज क्यों दुनिया के सामने पेश करना चाहती है?

1960 के आसपास की बात इसलिए उठाई है कि तब के भारत में अगर जातिवाद के दम पर नया भारत बनाने की बात कही या सुनी जाती तो कुछ पलों के लिए मान लिया जाता कि ऐसा हो सकता है, क्योंकि तब हम तकनीकी रूप से मजबूत नहीं हुए थे. पढ़ेलिखे लोगों की तब देश में कमी थी, खासकर गांवदेहात के स्कूलों में दलित समाज दिखता ही नहीं था. वह छिपा सा रहता था. आपसी तालमेल के लिए हमें एकदूसरे से रूबरू होना पड़ता था. दूरसंचार के साधनों की घोर कमी थी.

भारत तब गांवों में बसता था और चूंकि तब हमारे समाज पर जाति हावी थी, तो ऐसा माना जा सकता था कि इसे हथियार बना कर लोगों को बहकाया जा सकता?है.

भारत को आजाद हुए इतने साल बीतने के बाद भी देश में जातिवाद जैसी सामाजिक बुराई इस कदर हावी है कि आज भी अगर किसी शहर के पास कोई शख्स अपनी प्राइवेट कालोनी काट कर फ्लैट या घर बनवाता है, तो वह जिस जाति का होगा, चाहेगा कि उसी की जाति के लोग उस के प्लौट खरीदें ताकि पूरा इलाका एक ही जाति का हो जो आपस में खुल कर उठबैठ सके.

जहां ऊंची जाति के लोग ज्यादा होते हैं, वहां दलित या आदिवासी अपना आशियाना बनाने से कतराते हैं. अब तो यह ट्रैंड चल निकला है कि पूरी होम सोसाइटी ही ‘शाकाहारियों के लिए’ स्लोगन से बेची जाती है.

भारत में हिंदू धर्म के डर से शाकाहारी लोग बहुत कम हैं, उन में भी तथाकथित ऊंची जाति के ही हैं. ऐसे में मुसलिमों का ऐसी होम सोसाइटियों से पहले ही पत्ता साफ कर दिया जाता है.

मजबूरी में मुसलिम या दलित ऐसी जगह घर बनाते हैं या किराए पर रहते हैं जहां माहौल जैसा भी हो, लेकिन उन को अपनों का साथ मिल जाए.

जीने की बात छोडि़ए, पंजाब के शहर फगवाड़ा में हदिआबाद इलाके में अलगअलग जातियों के लिए अलगअलग श्मशान घाट बनाए गए हैं. बरसों से यह प्रथा चली आ रही है.

तेलंगाना की इंदिरा ऊंची जाति की हैं. तथाकथित अत्याचार के एक मामले में एक दलित साथी का साथ देना उन्हें भारी पड़ गया. इस बारे में इंदिरा ने बताया कि उन के पास 10 एकड़ जमीन है, जिस में से 2 एकड़ जमीन उन्होंने कोमापली लक्ष्मी को पट्टे पर दी है, जो उन की बचपन की दोस्त है और दलित समुदाय से ताल्लुक रखती है.

समस्या तब शुरू हुई जब पड़ोस के एक भूस्वामी ने लक्ष्मी को पट्टे पर दी गई जमीन के बगल में जमीन खरीदी. उस ने पट्टे पर ली गई जमीन पर एक दलित द्वारा खेती किए जाने पर एतराज जताया. इतना ही नहीं, अपनी जमीन में हो कर गुजरने पर भी रोक लगा दी. इतने से भी पेट नहीं भरा तो लक्ष्मी की फसल में आग लगा दी.

जब इस बात की शिकायत प्रशासन में की गई तो लक्ष्मी और इंदिरा पर हमला किया गया और यह दबाव डाला कि लक्ष्मी को दी गई जमीन वापस ले ली जाए. पर जब इंदिरा ने लक्ष्मी से दोस्ती होने की बात कह कर ऐसा करने से मना किया तो रेड्डी समुदाय ने इंदिरा को सामाजिक रूप से अलगथलग करने का ऐलान कर दिया.

रेड्डी समाज को बाकायदा यह कहना पड़ा कि इंदिरा से बात करने वाले पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगेगा. इंदिरा के भाई पर उन की बेटी की शादी में शामिल होने पर 20,000 रुपए का जुर्माना देने पर मजबूर किया गया.

ऐसे एक नहीं बल्कि हजारों उदाहरण हैं जब किसी को जाति के नाम पर सताया गया है. कभी मूंछ रखने का बहाना,  कभी नाम के आगे ‘सिंह’ लगाने की तोहमत. और कोई बहाना नहीं मिलता तो कहते हैं कि दलित हो तो घोड़ी पर नहीं चढ़ोगे. बरात में डीजे नहीं बजाओगे. आजादी के दिन तिरंगा फहराने की हिम्मत मत करना या मिड डे मील देने के वक्त स्कूलों में दलित बच्चों को अलग बिठा कर खाना परोसने जैसी गैरइनसानी हरकतें हमारी नसों में बसे जातिवाद के जहर को उगाजर कर देती हैं. हर जाति के नौजवानों में यह जहर फैल रहा है और मारपीट करने में वे ही आगे रहते हैं.

ऐसा नहीं है कि जातिवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी गई है. आज से कई साल पहले डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने जाति की इस विषबेल के खिलाफ दलित और आदिवासी समुदाय को जागरूक करने का काम किया था.

उन का मानना था कि यह देश के लिए शर्म की बात है कि ऊंची जातियों में हिंदू उतने ही बुरे हैं जितने कि उन के नेता. ऐसे नेता हिंदुओं को मुसीबत की ओर ले जाते हैं. इस की अहम वजह है उन का हर चीज पर कब्जा करने का लालच और जिंदगी की अच्छी चीजों को दूसरों के साथ बांटने की अनिच्छा.

अगड़ों का पढ़ाईलिखाई और जमीनजायदाद पर तो पहले से ही पूरा कंट्रोल था, अब वे राजनीति के दम पर देश पर भी कब्जा जमा लेना चाहते थे. इस के लिए जरूरी था कि दलितों को पढ़ाईलिखाई से दूर रखा जाए. उन्हें खेतीबारी तो करने दी जाए पर वे जमीन के मालिक न बन सकें. इस के लिए अगड़ों ने धर्मग्रंथों का सहारा लिया और निचले तबके के दिमाग में कूटकूट कर यह भरा जाने लगा कि उन की जिंदगी का मकसद ही ऊंची जाति वालों की सेवा करना है. ऐसा करने से ही उन्हें मरने के बाद मोक्ष मिलेगा.

अब भारत में दोबारा से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है. लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांट कर सियासी रोटियां सेंकने की पूरी तैयारी की जा रही है.

केंद्र की भाजपा सरकार लोगों की जातिगत भावनाओं को भड़का कर उस का फायदा उठाने में माहिर हो चुकी है. अब उस के नेता बेरोजगारी, गरीबी, खेतीबारी, रिजर्वेशन, पढ़ाईलिखाई, देश की तरक्की पर बात न कर के भीमराव अंबेडकर के कोट का नीला रंग भगवा में बदलने का खेल खेल रहे हैं. दलितों के घर जा कर खाना खाने की नौटंकी वे इसलिए कर रहे हैं ताकि दूसरे दलों के दलित वोट बैंक में सेंध लगा सकें.

ऐसे में शशि थरूर की चिंता भी जायज है, क्योंकि अगर उन के कहे मुताबिक भविष्य में भारत ‘हिंदू पाकिस्तान’ बनने की राह पर चल पड़ा तो इस से देश के मानचित्र और उस के देशवासियों के दिलों पर नफरत की ऐसी तलवारें चल जाएंगी जो पूरे समाज को तारतार कर देंगी.

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