वतन की हिफाजत के लिए अपने जिगर के टुकड़ों को कुरबान करने वाली मांएं खुद पर फख्र महसूस करती हैं. हालांकि बेटों के बिछोह का गम उन्हें कई बार टीस देता है, पर उस से ज्यादा अपने लोगों की बेरुखी तंग करती है.

इस दर्द के लिए शब्द नहीं

‘‘जवान बेटे के बिछोह के दर्द को कौन सी मां अपने शब्द दे सकती है...’’ कहतेकहते छाती में जमा दर्द उन की आंखों में आ कर पिघलने लगता है. तकरीबन सवा साल पहले अरुणाचल प्रदेश में 8 नक्सलियों से हुई मुठभेड़ में 34 साला मेजर आलोक माथुर मारे गए थे. पिछली 26 जनवरी को उन्हें मरणोपरांत वीरता सेना मैडल मिला था.

आलोक की मां मधु माथुर कहती हैं कि सरकारी नियमकायदों में मां की ममता के लिए कहीं कोई जगह नहीं है. अपने 2 नन्हे पोतों में उन्होंने बचपन के उस आलोक की इमेज को देखना चाहा था. जब वे रसोईघर में होती थीं और वह गलबहियां डालते हुए कहता, ‘मां, आज क्या पका रही हो?’

सरकार से जितनी भी रकम और दूसरी सुविधाएं मिलती हैं, वे सब मारे गए सैनिक की पत्नी के नाम से होती हैं. जवान पति की मौत के बाद ज्यादातर लड़कियां मायके में रहना पसंद करती हैं. मातापिता एक समय बाद उन की दूसरी शादी भी कर देते हैं, क्योंकि पहाड़ सी जिंदगी उन के सामने होती है.

हालांकि इस में कुछ गलत भी नहीं है. बहू को तो दूसरा जीवनसाथी मिल गया, मदद भी मिल गई, पर मां कहां ढूंढ़ेगी अपने खोए बेटे को?

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बेटे की बहादुरी पर फख्र

राजस्थान के झुंझुनूं जिले के जयपहाड़ी गांव के जगदीश सिंह शेखावत को याद कर उन की मां अजय कंवर अपने आंसू नहीं रोक पाती हैं.

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