राइटर- नीरज कुमार मिश्रा
नमिता अब भी बिस्तर पर पड़ी कसमसा रही थी. जब वह हथकड़ी से आजाद नहीं हो पाई, तो हार कर तरुण को ही उस के हाथों को खोलना पड़ा और उसे खोलते ही नमिता नीचे पड़े हुए अपने कपड़ों को पहनने लगी, तो तरुण उसे भद्दीभद्दी गालियां देने लगा और गुस्से में उसे 2 तमाचे और जड़ दिए.
‘‘तुम को मेरे साथ रहने का कोई हक नहीं है... तुम अभी और इसी समय मेरे घर से निकल जाओ,’’ एक फरमान सा सुना दिया था तरुण ने, जिसे सुनने के बाद नमिता इतना तो सम?ा गई थी कि इस समय तरुण के सामने रोने या गिड़गिड़ाने से कुछ नहीं होने वाला, इसलिए वह सिर ?ाकाए सुनती रही.
अपने पति के घर से निकाले जाने के बाद नमिता को कुछ सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे और कहां जाए...
सड़क के किनारे बहुत देर तक नमिता शून्य की हालत में खड़ी रही और सड़क पर आनेजाने वाले सैकड़ों लोगों को देखती रही. काफी देर बाद उस ने सुदेश को फोन लगाया, तो सुदेश का मोबाइल स्विच औफ आ रहा था. शायद उस ने ऐसा तरुण के डर के चलते किया होगा या फिर वह नमिता से पीछा छुड़ाना चाहता है? ऐसे ढेरों सवाल नमिता के मन में थे.
आज से पहले नमिता ने कभी नहीं सोचा था कि अपने ही शहर में वह एकदम बेगानी हो जाएगी... तो क्या उस ने
एक पराए मर्द के साथ शारीरिक संबंध बना कर जो अपराध किया है, उस की सजा तो मिलनी ही चाहिए उसे... पर कैसा अपराध?
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