सोम के मित्र अतुल ने उन्हें ड्रिंक का गिलास औफर किया. श्यामलीजी ने घबरा कर कहा, ‘‘मैं ड्रिंक नहीं करती.’’
सोम ने गिलास ले कर जबरदस्ती उन के मुंह में लगा दिया, ‘‘छोड़ो भी यह बी ग्रेड देहाती मैंटेलिटी. अब तुम रईसों वाले शौक करो और ऐश की जिंदगी जीयो.’’
श्यामलीजी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी. वे कोने में जा कर बैठ गईं. नौनवैज खाना देख खाने के पास भी नहीं गईं.
उस दिन उन के कारण सोम को अपनी बेइजती महसूस हुई थी. वे सारे रास्ते उन्हें भलाबुरा कहने के साथसाथ गालियां भी देते रहे थे.
इतनी गालीगलौज के बाद भी वे श्यामलीजी के तन को रौंदना नहीं भूले थे. वे रातभर सिसकती रही थीं. समझ नहीं पा रही थीं कि उन्हें ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. अगली सुबह सब कुछ उलटपुलट कर उन के जीवन में अघटित घट गया. पापाजी रात में सोए तो उन्होंने सुबह आंखें ही नहीं खोलीं. सब कुछ बदल चुका था. मम्मीजी श्यामलीजी को अपशगुनी कहकह कर रो रही थीं. उन की शादी को अभी मात्र 2 महीने ही हुए थे.
नातेरिश्तेदारों की भीड़ के सामने मम्मीजी का एक ही प्रलाप जारी रहता कि बिना दानदहेज की तो बहू लाए और वह भी ऐसी आई कि मेरी जड़ ही खोद दी. इस ने तो हमें बरबाद कर दिया.
यह ठीक था कि सोम दुखी थे, लेकिन वे मम्मीजी को चुप भी तो करा सकते थे, परंतु नहीं. वे उन से खिंचेखिंचे से रहते, लेकिन रात में उन के शरीर पर उन का पूरा अधिकार होता. उन की इच्छाअनिच्छा की परवाह किए बिना वे अपनी भूख मिटा कर करवट बदल कर खर्राटे भरने लगते.
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