‘‘नहींनहीं, संगीता, यह कोई मजाक नहीं. हम सचमुच तुम्हारी जिया को पूरी कानूनी कार्यवाही के साथ अपनी बेटी बनाना चाहते हैं.’’
संगीता के सामने कीमती कपड़ों और गहनों से लदी एक धनवान औरत आज अपनी झोली फैलाए बैठी थी लेकिन वह न तो उस की खाली झोली भर सकती थी और न ही अपनी झोली पर गुमान ही कर सकती थी. उस की आंखों से आंसू बह चले.
श्रीमती दीक्षित जानती हैं कि उन्होंने एक मां से उस के दिल का टुकड़ा मांगा है लेकिन वे भी क्या करें? अपने सूने जीवन और सूने आंगन में बहार लाने के लिए उन्हें मजबूर हो कर ऐसा फैसला लेना पड़ा है. वरना सालों से वे (दीक्षित दंपती) किसी दूसरे का बच्चा गोद लेने के लिए भी कहां तैयार हो रहे थे. कल जिया को देख कर पता नहीं कैसे उन का मन इस के लिए तैयार हो गया था.
उन्होंने संगीता की गरीबी पर एक भावुकता भरा पैंतरा फेंका, ‘‘संगीता, क्या तुम नहीं चाहोगी कि तुम्हारी बेटी बंगले में पहुंच जाए और राजकुमारी जैसा जीवन जिए?’’
‘‘हम गरीब हैं बीबीजी, हमारे जैसे साधन, वैसे ही सपने. हमें तो सपनों में भी फांके और अभाव ही आते हैं,’’ संगीता अपने आंसू पोंछते हुए बोली.
‘‘इसलिए कहती हूं कि कीमती सपने देखने का एक अवसर मिल रहा है तो उस का लाभ उठा और अपनी छोटी बेटी मेरी झोली में डाल दे,’’ श्रीमती दीक्षित ने फिर अपना पक्ष रखा.
‘‘कोई कितना भी गरीब क्यों न हो बीबीजी, अपनी जरूरत के वक्त गहना, जमीन, बरतन आदि बेचेगा, पर औलाद तो कोई नहीं बेचता न?’’ कहते हुए संगीता उठ कर चल दी.
‘‘ऐसी कोई जल्दी नहीं है संगीता, तू अपने आदमी से भी बात कर, हो सकता है उसे हमारी बात समझ में आ जाए,’’ श्रीमती दीक्षित ने संगीता को रोकते हुए कहा.
‘‘नहीं बीबीजी, मरद से क्या पूछना है? हमारी बेटियां हमारी जिम्मेदारी बेशक हैं, बोझ नहीं हैं. मैं तो कुछ और ही सोच कर आई थी,’’ कहते हुए संगीता तेज कदमों से बाहर निकल गई.
घर पहुंचते ही संगीता रिया और जिया को सीने से चिपटा कर फूटफूट कर रो पड़ी. विक्रम को समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. वह कुछ पूछता इस से पहले संगीता ने ही उसे सारी कहानी सुना दी.
सब सुन कर विक्रम को अपनी गरीबी पर झुंझलाहट हुई. फिर भी अपने को संयत कर उस ने संगीता को समझाया कि जब वह अपनी जिया को देने के लिए तैयार ही नहीं है तो कोई क्या कर लेगा. लेकिन मन ही मन वह डर रहा था कि पैसे वालों का क्या भरोसा. कहीं जिया को अगवा कर विदेश ले गए तो वह कहां फरियाद करेगा और कौन सुनेगा उस गरीब की?
वह रात संगीता और विक्रम पर बहुत भारी गुजरी. कितने ही बुरेबुरे खयाल रात भर उन्हें परेशान करते रहे. उन का प्यार और जिया का भविष्य रात भर तराजू में तुलता रहा. रात भर आंखें डबडबाती रहीं, दिल डूबता रहा.
सुबह होते ही दीक्षित साहब ने विक्रम को कोठी पर बुलवाया. बुलावे के नाम पर तिलमिला गया और वहां पहुंचते ही चिल्लाया, ‘‘नहीं दूंगा मैं अपनी बेटी. नहीं चाहता मैं कि मेरी बेटी राजकुमारी सा जीवन जिए. आप इतने ही दयावान हैं तो दुनिया भरी है गरीबों से, अनाथों से, हम पर ही इतनी मेहरबानी क्यों?’’
उस की बात सुन कर दीक्षित दंपती को जरा भी बुरा नहीं लगा. बड़े प्यार से उस का स्वागत किया और उसे अपने बराबर सोफे पर बिठाया. बड़ी सहजता से उन्होंने पूरी बात समझाते हुए अपनी याचना उस के सामने रखी, लेकिन विक्रम बारबार मना ही करता रहा. तब उन्होंने विक्रम के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रख दिया जिसे सुन कर वह हैरान रह गया. उस ने तो पहले इस बारे में कभी सुना ही नहीं था.
दीक्षित दंपती ने विक्रम के सामने संगीता की कोख किराए पर लेने का प्रस्ताव रखा था. विक्रम का चेहरा बता रहा था कि वह कुछ नहीं समझा है तो उन्होंने विक्रम को समझाया कि जैसे आजकल हम जरूरतमंदों को अपना खून, आंखें, दान करते हैं वैसे ही किसी निसंतान दंपती को संतान का सुख देने के लिए कोख का भी दान किया जा सकता है. ऐसे निसंतान मातापिता को किसी की संतान गोद नहीं लेनी पड़ती बल्कि वे अपनी ही संतान पा सकते हैं.
विक्रम तब भी कुछ नहीं समझा तो दीक्षित साहब ने उसे फिर समझाया, ‘‘बस, तुम इतना समझो कि ऐसे में डाक्टरों की मदद से संतान के इच्छुक पिता का बीज किराए की कोख में रोप दिया जाता है जिसे 9 महीने तक गर्भ में रख कर शिशु का रूप देने वाली मां, सैरोगेट मां कहलाती है. हमारी सरकार ने इसे कानूनी तौर पर वैध भी घोषित कर दिया है.’’
इतना ही नहीं उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस दौरान वे संगीता के इलाज, दवाइयों, अस्पताल के खर्च के अलावा उस की खुराक आदि का पूरा खयाल रखेंगे. संगीता भले ही लड़के को जन्म दे या लड़की को उन्हें वह बच्चा स्वीकार्य होगा और वे उसे ले कर विदेश जा बसेंगे. यह सब पूरी लिखापढ़ी और कानूनी कार्यवाही के साथ होगा. संगीता जिस दिन डाक्टरी प्रक्रिया से गुजर कर गर्भवती हो जाएगी उन्हें पहली किस्त के रूप में 50 हजार रुपए दे दिए जाएंगे. उस के बाद बच्चे के जन्म पर उन्हें 2 लाख रुपए और दिए जाएंगे.
दीक्षित साहब ने सबकुछ विक्रम को कुछ इस तरह समझाया कि उस ने संगीता को इस काम के लिए राजी कर लिया. एक परिवार का सूना आंगन बच्चे की किलकारियों से गूंज उठेगा और उन का अपना जीवन अभावों की दलदल से निकल कर खुशियों से भर जाएगा. जल्दी ही पूरी डाक्टरी प्रक्रिया और कागजी कार्यवाही से गुजर कर विक्रम और संगीता अपनी बेटियों के साथ दीक्षित की कोठी के पीछे नौकरोें के क्वार्टर में रहने को आ गए. उन्हें पहली किस्त के रूप में 50 हजार रुपए भी मिल गए थे.
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