मेरा नाम रोशनी है. यह मेरी कहानी है और एक ऐसी जगह से शुरू होती है, जहां पिछले कुछ दिनों से मच्छरों ने हम सब का जीना हराम कर दिया था. जिन गरीबों के पास जालीदार दरवाजे लगाने के पैसे नहीं होते, उन्हें मच्छरों के साथ जीना भी सीखना पड़ता है.

मच्छरों से बचने के लिए मैं ने पंखे की रफ्तार बढ़ाई और डबलबैड की चादर ओढ़ कर सोने की कोशिश करने लगी. मुझे लगा कि इतनी बड़ी चादर मुझे मच्छरों से बचा लेगी. मैं ने मन ही मन प्रमिला मैडम को शुक्रिया कहा, जिन्होंने आज ही यह चादर मां को दी थी.

मेरी मां प्रमिला मैडम के घर का सारा काम करती हैं… झाड़ूपोंछे से ले कर रसोई के बरतन और घर के दूसरे काम भी. प्रमिला मैडम बहुत दयालु हैं. वे हमें जबतब बहुत सा सामान देती रहती हैं. सामान भले ही पुराना हो, लेकिन वह बड़े काम का होता है.

प्रमिला मैडम ने हमारे इस छोटे से घर को कई तरह के सामान से भर दिया है, जिस में एक छोटा एलईडी, पुरानी मिक्सी, वाशिंग मशीन और कूलर भी हैं. इस सामान को देख कर सगेसंबंधी हम से जलते हैं.

सुबह मां ने जगाया, तो मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और बोली, ‘‘वाह मां, वाह, आज तो बहुत अच्छी नींद आई. मच्छर मुझे जरा भी न काट सके. यह सब इस चादर की ही करामात है वरना सिंगल बैड की चादर में तो मच्छर आसानी से घुस जाते हैं और फिर तो खुजलातेखुजलाते मेरा बुरा हाल.’’

मां शायद जल्दी में थीं. वे बोलीं, ‘‘बेटी, मैं मैडम के यहां जा रही हूं. तू जल्दी से उठ कर बाकी काम निबटा कर कालेज चली जाना.’’

‘‘ठीक है मां, आप जाओ,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने जब से होश संभाला है, तब से मां को जिंदगी की जद्दोजेहद झोलते या उस से लड़तेरोते ही देखा है. मैं ने जिस जाति में जन्म लिया है, उस में ऐसा कोई घर नहीं, जहां घर के लोग पियक्कड़ न हों और यही वजह हमारी जाति के पिछड़ेपन की भी रही है.

घर के मर्द शराब पी कर घर की औरतों को बुरी तरह मारतेपीटते हैं, उन्हें भद्दीभद्दी गालियां देते हैं और औरत के कमाए पैसे भी झपट कर अपनी झूठी मर्दानगी दिखाते हैं. घर के बच्चे भी यह सब देख कर दहशत में जीते हैं.

मैं ने घर में सब से बड़ी औलाद के रूप में जन्म लिया था. मां मेरे जन्म के बाद मुझे सीने से चिपकाए पता नहीं कितने घरों में जा कर झाड़ूपोंछा, बरतन धोने का काम करती थीं.

सुबह वे घर से रोटी बना कर निकलती थीं, तो शाम को ही वापस घर का मुंह देखती थीं. घर पर आ कर ही मां को पता चलता था कि बापू आज बेलदारी पर गए हैं या नहीं.

अगर बापू घर पर मिलते, तो मां को गालियों का सामना करना पड़ता था और उन्हें बापू को कुछ रुपए शराब पीने के लिए देने ही पड़ते थे. अगर बापू बेलदारी के लिए चले जाते, तो उन के घर न लौटने तक ही शांति रहती थी. जब वे घर लौटते थे, तो शराब के नशे में चूर हो कर लड़खड़ाते कदमों से घर में घुसते और हमारी जिंदगी नरक बना देते थे.

जब मैं ने मां का हाथ पकड़ कर चलना सीख लिया था, तभी मां के पैर फिर भारी हो गए थे और इस तरह उन की मुसीबतें भी और ज्यादा बढ़ गई थीं.

मैं ने रसोईघर में आ कर कटोरदान देखा… मां कल शाम की बनाई एक रोटी चाय के साथ खा कर चली गई थीं. यह रोजाना का सिलसिला था, क्योंकि मां कभी कोई नागा नहीं करती थीं, जब तक कि उन्हें तेज बुखार न चढ़ जाए.

आटा गूंदते हुए मैं फिर से उन दिनों में गोता लगाने लगी थी, जब मेरे खेलनेकूदने के दिन थे. यह बात अलग है कि मु?ो खेलनाकूदना जरा भी पसंद नहीं था.

तब मेरा छोटा भाई राजू घुटने के बल चलने लगा था और मां लोगों के घरों में जातीं, तो राजू को मेरे भरोसे छोड़ कर बेफिक्र हो जाती थीं.

राजू को छोड़ कर मैं कोई भी काम नहीं कर सकती थी, लेकिन जब वह थक कर सो जाता था, तब मैं जल्द से जल्द सारे काम निबटाने की कोशिश किया करती थी.

बापू को शराब पीने की लत बहुत ज्यादा बढ़ गई थी और उन्होंने काम पर जाना तकरीबन बंद ही कर दिया था. वैसे भी नशे में चूर रहने वाले को कौन काम पर रखेगा?

बापू के शराब के पैसे की कमी मां की खूनपसीने की कमाई से ही पूरी होती थी. अगर कभी मां के पास पैसे न होते, तो गालियों के अलावा मां को मार भी खानी पड़ती थी.

तब मां रोतेरोते कहती थीं, ‘‘मु?ो इस जिंदगी में सुख तो तभी मिलेगा, जब मेरा राजू बड़ा होगा और मैं घरबैठे उस के कमाए पैसों से चैन से रह सकूंगी.’’

‘‘मां, अपनी बिरादरी में तो सारे मर्द औरतों पर जुल्म करने के लिए ही पैदा होते हैं, इसलिए तुम्हें राजू से कोई आस नहीं बांधनी चाहिए,’’ मेरी बात को मां ने सिरे से कई बार खारिज कर दिया था.

मां को यकीन था और वे कहती थीं, ‘‘नहीं, राजू हमारी बिरादरी के मर्दों जैसा नहीं होगा. वह अपनी मां के साथ हो रही नाइंसाफी की वजह से कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाएगा.’’

‘‘काश, ऐसा ही हो मां,’’ मेरे मुंह से यह बात निकलती थी.

दिन हवा में उड़ान भरतेभरते एक दिन ठहर से गए. उस दिन मां के पास पैसे न होने के चलते बापू ने उन्हें बहुत मारा था… मारतेमारते किसी तरह बापू के हाथ मां की एकमात्र पैर की उंगली में अटकी चांदी की बिछिया को छू गए.

बस, फिर क्या था. बापू ने बिछिया को इतनी तेजी से खींचा कि मां की बिछिया के निकलने के साथ ही पैर की उंगली भी लहूलुहान हो गई. खैर, बापू को तो मां की बिछिया से मतलब था, खून निकलने से नहीं.

बापू के पास शराब पीने का इंतजाम होते ही वे पीने चले गए और मां को रोताबिलखता छोड़ गए.

उस दिन मां ने दिल से बापू के मरने की कामना की थी. उन की इस कामना को मेरा भी साथ मिला था… और शाम को सचमुच उन की लाश ही घर पर आई. बापू मां की बिछिया बेच कर दिनभर शराब ही पीते रहे और अचानक लुढ़क गए.

कुछ दिनों तक रोनापीटना हुआ, फिर घर में मां की मेहनत की कमाई का एकदम सही इस्तेमाल होने लगा. हालांकि, मां ने मेरा दाखिला सरकारी स्कूल में ही कराया था, लेकिन मैं अपना ध्यान पढ़ाई पर देने में कामयाब रही.

पता नहीं, मुझे अपनी जाति के समाज के सामने एक उदाहरण बनने की सनक सवार हो गई कि जिस जाति में सब के सब मर्द पियक्कड़ और आवारा हैं, उसी समाज की एक लड़की ऐसे मर्दों को पछाड़ कर बहुत आगे भी निकल सकती है. इतना ही नहीं, पढ़लिख कर और अच्छा पद पाने के बाद उस लड़की पर समाज के मर्दों की मनमानी नहीं चल सकती.

हालांकि मां ने राजू का दाखिला एक प्राइवेट इंगलिश मीडियम स्कूल में कराया था, लेकिन उस का मन कभी भी पढ़ने में लगा ही नहीं. मैं उसे पढ़ाने की कोशिश करती, तो वह उलटे मुझ पर ही बरसने लगता था. मुझे न जाने क्यों लगता था कि वह बापू की ही तरह का बरताव करने पर आमादा रहता है.

राजू ने मां की कुछ हजार रुपए की कमाई पर पानी फेर दिया था और एक बिगड़ैल लड़के का तमगा लगा कर उसे स्कूल के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

उस दिन मां फूटफूट कर रोई थीं. मां के सपने की उड़ान एकाएक ही क्रैश हो गई थी.

मैं ने मां को बहुत प्यार से सम?ाया, ‘‘मेरी अच्छी मां, तुम मत रोओ… भले राजू न सही, लेकिन मैं तुम्हें कुछ

अच्छा बन कर दिखाऊंगी… और मैं ने सोच लिया है कि मेरी नौकरी लगते ही तुम्हें किसी के घर में काम करने नहीं दूंगी.’’

मां ने तुरंत कहा, ‘‘शादी के बाद तो बेटी पराई हो जाती है पगली.’’

‘‘तो मां, शादी कर कौन रहा है? और क्या तुम उम्मीद करती हो कि मैं किसी पियक्कड़ या शराबी के लिए हां भर दूंगी?’’

मां को चुप हो जाना पड़ा.

इंगलिश में एमए और बीऐड करने के बाद उन दिनों मैं स्कूल टीचर के पद के लिए तैयारी में जुटी थी कि एकाएक छोटा भाई पहली बार शराब पी कर घर में घुसा था.

राजू को नशे की हालत में देख कर मैं और मां सकते में आ गईं.

पहली बार मां का हाथ अपने बेटे पर उठा… मां गुस्से में चिल्लाई थीं, ‘‘तो अब यही देखना बाकी रह गया था. तेरे बाप ने भी शराबी बन कर मुझे खूब मारापीटा और मेरी जिंदगी तबाह कर दी थी.

‘‘मैं ने तुझे अच्छे संस्कार दिए और तुझे कभी शराब को हाथ न लगाने का पाठ पढ़ाया था, लेकिन तू… तू भी वही शैतान की औलाद निकला.

‘‘मैं ने खूब कोशिश की थी कि तू पढ़लिख जाए और इसीलिए तुझे अपना पेट काट कर एक सभ्य इनसान बनाने की कोशिश करती रही, लेकिन आज यह दिन दिखाने के लिए तुझे बड़ा किया था मैं ने? अरे, कुछ तो सीख ले लेता अपनी बड़ी बहन से, लेकिन नहीं… तू तो गंदी नाली के कीड़े की जिंदगी ही जीना चाहता है न, बिलकुल अपने बाप की ही तरह?’’

‘‘मां, आज तू ने थप्पड़ मारा है मुझे? मैं ने क्या गुनाह कर दिया? शराब ही तो पी है, बल्कि शराब न पीना एक भद्दा मजाक ही तो है हमारे समाज में और मैं तो वही कर रहा हूं, जो सब करते हैं. और नहीं पीऊंगा तो मजाक नहीं उड़ेगा मेरा?’’

मां को कोने में पड़ी एक लकड़ी दिखाई दे गई. मां ने वही उठा ली थी… वह फुफकारी, ‘‘इस के पहले कि शराब तुझे पी कर खत्म करे, मैं ही तुझे खत्म कर देती हूं.’’

मैं किताबें छोड़ कर भागी और लपक कर मां को पकड़ लिया और बोली, ‘‘नहीं मां, मैं तुम्हें यह नहीं करने दूंगी, कभी नहीं. राजू के शराब पीने की सजा तुम्हें नहीं भुगतने दूंगी.’’

‘‘हो जाने दे मुझे जेल… लेकिन, लोगों के घरों में जिंदगीभर जूठे बरतन रगड़ने से तो अच्छा है, हो जाए मुझे जेल. कम से कम एक जगह बैठ कर चैन से जी तो सकूंगी. मुझे जिंदगीभर घर में तो सुख नहीं मिला, शायद जेल में ही मिल जाए?’’

मां दहाड़ें मार कर रो रही थीं और महल्ले वाले इकट्ठा हो कर तमाशा देखने लगे.

मां टूट गई थीं आज. मैं ने उन्हें इतना हताश कभी नहीं देखा था. मुझे लगा, कोई भी पत्नी अपने बिगड़ैल पति को एक बार सहन कर सकती है, लेकिन जिस बेटे से इतनी उम्मीद पाल ले, उसे गड्ढे में गिरते देख कर वह बरदाश्त नहीं कर सकती.

खैर, कुछ दिनों के बाद मेरी पहली कोशिश में ही एक दूसरे जिले के सरकारी स्कूल में इंगलिश टीचर की नौकरी मिल गई.

मां को निराशा के भंवर से निकालते हुए मैं ने कहा, ‘‘मां, तुम्हारे लिए यह घर किसी मनहूस से कम नहीं. तुम्हें सुख ही क्या मिला है इस घर में? मैं चाहती हूं कि तुम अब मेरे साथ वहीं रहो. हम किराए के मकान में खुशीखुशी साथ रह लेंगे.’’

जाते समय मकान को राजू के हवाले कर मैं ने कहा, ‘‘वादा करो भाई कि अब कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाओगे. जिस मां ने हम को इतने कष्ट सह कर बड़ा किया, उस का रत्तीभर कर्ज भी अगर उतार सकें तो बड़ी बात होगी. और उसे सुख नहीं तो कम से कम दुख तो न ही दें.’’

राजू बोला, ‘‘ठीक है बड़ी बहन. मैं वादा करता हूं, शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊंगा और काबिल इनसान बन कर भी दिखाऊंगा.’’

भाई द्वारा किए इस वादे को मैं गांठ बांध कर साथ ले गई.

मां को मेरी काम करने की जगह पर आ कर बहुत सुकून मिला. मां ने जिंदगीभर न जाने कितने कष्ट सहे और अपनी काया को मशीन की तरह बना दिया था. अब जा कर उन्होंने चैन की सांस ली थी. बीते दिनों में बेटे ने मां की काया को इतना छील दिया था कि अब वे उस का नाम भी नहीं लेना चाहती थीं.

धीरेधीरे कर के मैं ने सभी जरूरी सामान खरीद लिया था और मकान भी थोड़ा और सुविधाजनक ही लिया था.

अभी 6 महीने ही गुजरे थे कि एक दिन राजू मेरे स्कूल में कार ले कर चला आया और बोला, ‘‘बड़ी बहन, मैं ने आप से जो वादा किया था, बिलकुल भी नहीं तोड़ा है और न कभी तोड़ूंगा. लेकिन एक संकट खड़ा हो गया है.’’

‘‘कैसा संकट…?’’ मैं ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘आप के यहां आने के बाद मैं ने सोचा था कि एक कार लोन पर ले कर टैक्सी के रूप में चलाऊं?’’

‘‘लोन कैसे मिला?’’

‘‘इस के लिए मुझे मकान के कागजात बैंक में रखने पड़े और 10 लाख रुपए का लोन जुटा कर यह कार खरीदी.

‘‘मैं 6 महीने से टैक्सी चला रहा हूं, लेकिन पूरी किस्तें नहीं चुका पा रहा हूं. क्या करूं? अब बैंक वाले तकाजा कर रहे हैं.’’

भरी दोपहरी में सूरज की गरमी जब सहन नहीं हुई, तो मैं राजू को नीम के पेड़ के नीचे ले आई और पूछा, ‘‘कितना लोन लिया और किस्त कितनी है?’’

‘‘लोन 10 लाख रुपए का है और किस्त 20,000 रुपए महीना.’’

‘‘तो आमदनी कितनी हुई?’’

‘‘जो आमदनी हुई, उस से 2 किस्तें ही चुका पाया हूं.’’

‘‘तो कार बेच दो.’’

‘‘कार के 6 लाख रुपए से ज्यादा नहीं मिलेंगे.’’

‘‘जितने भी मिलें… फिर जो किस्त आएगी, देखेंगे. किस्त नहीं चुकाने से मकान की नीलामी हो जाएगी न.’’

‘‘इसीलिए मजबूर हो कर आया हूं बड़ी बहन.’’

‘‘भाई, बड़ी बहन हूं, इसलिए अपना फर्ज निभाने से पीछे नहीं हटूंगी. कार बेच कर पहले जो पैसा मिले, वह सारा बैंक वालों को जमा करा दो. फिर मुझे बैंक से डिटेल्स ले कर माहवार किस्त का ब्योरा भेज देना, ताकि मैं हर महीने किस्त समय पर सीधे बैंक में भेज सकूं.’’

‘‘ठीक है, मैं यह काम जाते ही करता हूं.’’

‘‘सुनो भाई, ध्यान रहे कि नया धंधा ऐसा हो जिस में पैसा कम लगे, नुकसान भी न हो. अगर तुम ईमानदार रहोगे तभी मुझ से मदद की उम्मीद कर पाओगे. कभी मेरा भरोसा मत तोड़ना. तुम्हारा शराब पीना मां ही नहीं, मैं भी सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘बड़ी बहन, मेरा वादा है कि जिंदगी में किसी भी हालात में शराब के पास नहीं फटकूंगा और आप का भरोसा कभी तोड़ने की हिम्मत तो हरगिज नहीं करूंगा.’’

‘‘फोन पर अपडेट करते रहना,’’ मेरे कहने पर उस ने हां भरी, फिर पूछा, ‘‘मां कैसी हैं?’’

‘‘अब ठीक हैं.’’

वह बोला, ‘‘मैं उन से तभी मिलूंगा, जब कुछ कमाने लायक हो जाऊंगा,’’ कहते हुए उस ने विदा ली. कार स्टार्ट होने से ले कर उस के वहां से जाने तक मैं बुत बनी खड़ी रह गई.

इस बीच सूरज बादलों की ओट में छिप गया था. चारों ओर सुहावनी छाया घिर आई थी. मैं उम्मीद से भरी अपने क्लासरूम में लौट आई.

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