बारबार घंटी बजने पर दीपा की आंखें खुलीं. बालों का जूड़ा बांधते हुए उस ने दरवाजा खोला. बाहर दूध वाला खड़ा था, ‘‘बहनजी, मैं दूसरी बार आ रहा हूं.’’
दीपा कुछ न बोली. दूध ले कर रसोई में रखा और मुंह धोने चली गई. रात की वारदात याद आते ही उस की आंखों से आंसू छलक आए.
चाय बना कर वह तनय के कमरे में आई, पर वह वहां नहीं था. मोबाइल पर उस का एक मैसेज था, जिसे वह पढ़ने लगी :
‘पूजनीय भाभीजी,
‘जब आप यह पढ़ रही होंगी, तब मैं शहर से बहुत दूर जा चुका हूंगा. मैं ने अपने दोस्त शिखर के भरोसे को तोड़ा है. शायद मेरी जिंदगी में आप का प्यार नहीं था. मैं हमेशा के लिए यह शहर छोड़ रहा हूं. मेरी यही सजा है. हो सके तो मुझे माफ कर देना.
‘आप का मुंहबोला देवर.’
दीपा ने नफरत और गुस्से से मोबाइल एक ओर पटक दिया और
पलंग पर जा कर लेट गई. रहरह कर
उसे गुजरे दिनों की बातें याद आने
लगी थीं.
पिछले साल दीपा ने 10वीं जमात पास की थी. मां ने उस की पढ़ाई
छुड़ा दी थी, इसलिए पड़ोस की चाची के यहां वह सिलाईकढ़ाई सीखने और 11वीं जमात की तैयारी करने के लिए जाने लगी.
एक दिन दीपा चाची के साथ बैठी थी कि एक नौजवान लड़के ने आते ही चाची के पैर छुए.
‘‘अरे शिखर, बहुत दिन बाद आया. तेरे बाबूजी कैसे हैं?’’ चाची ने पूछा.
‘‘ठीक हैं चाची,’’ कह कर शिखर चारपाई पर बैठ गया.
‘‘दीपा बेटी, यह मेरे जेठ का बेटा है. जा, चाय बना ला.’’
दीपा चाय बनाने चली गई.
शिखर को दीपा की खूबसूरती भा गई. अब तो वह हर तीसरेचौथे दिन चाची का हालचाल पूछने आने लगा. जब दीपा और शिखर का प्यार परवान चढ़ा, तो दीपा के मातापिता ने भी अपनी मंजूरी दे दी.
दोनों का जल्दी ही ब्याह हो गया. दीपा अपने सीधेसच्चे पति को पा कर बेहद खुश थी. सासससुर का प्यार पा कर वह फूली नहीं समाती थी.
मातापिता को शिखर का बारबार छुट्टी ले कर घर आना अच्छा न लगा. एक बार जब शिखर हफ्ते की छुट्टियां ले कर आया, तो मां ने कहा, ‘‘शिखर, अब जाएगा तो बहू को भी ले जाना. बेचारी कुछ दिन घूम आएगी. तुझे खाना भी गरमागरम मिल जाया करेगा.’’
शिखर को जैसे मन की मुराद मिल गई थी, लेकिन वह ऊपरी दिल से बोला, ‘‘मां, मैं तो सोच रहा था कि दीपा कुछ दिन आप की सेवा करती.’’
‘‘बसबस, रहने दे. हमारी खूब हो गई सेवा,’’ हंसते हुए मां ने जवाब दिया.
आटोरिकशा से अटैची उतारते हुए शिखर ने कहा, ‘‘दीपा उतरो. अपना घर आ गया है.’’
दीपा की पायलें छनछना उठीं. वह धीरे से शिखर का हाथ पकड़ कर नीचे उतर पड़ी. सामने एक पक्का मकान था.
आटोरिकशा वाले को पैसे दे कर शिखर ने ताला खोला. दीपा अंदर दाखिल हुई. भीतर सभी कुछ बिखरा पड़ा था. रसोईघर का तो और भी बुरा हाल था. दीपा ने कमरों का मुआयना किया और हंस पड़ी.
अपने आगोश में दीपा को ले कर शिखर बोला, ‘‘क्यों साहिबा, कैसा लगा हमारा घर?’’
‘‘हटोजी, कबाड़खाना है पूरा,’’ और दीपा घर की सफाई में जुट गई. सारा सामान ढंग से जमा कर फिर उस ने चाय बनाई.
थोड़ी देर बाद शिखर का दोस्त तनय भी आ गया. वह शिकायत करते हुए बोला, ‘‘क्यों भई, स्टेशन से फोन कर देते, बंदा कार ले कर हाजिर हो जाता.’’ फिर दीपा से बोला, ‘‘भाभीजी, नमस्ते.’’
‘‘नमस्ते,’’ मुसकराते हुए दीपा ने उत्तर दिया और बोली, ‘‘बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर वह रसोईघर में चली गई.
तनय बरात में गया था. इसलिए दीपा उसे पहचानती थी. कई सालों से तनय और शिखर भाइयों की तरह इस घर में रह रहे थे. दोनों एकदूसरे को बेहद चाहते थे. उस दिन से तनय दूसरे कमरे में रहने लगा था.
अब तो तनय और शिखर के दिन मजे से बीतने लगे. दोनों कपड़ों और घर की सफाई पर लड़तेझगड़ते थे. अब इन मुसीबतों से छुटकारा मिल गया था.
तनय अपनी भाभी को बेहद
चाहता था. वह घर के कामकाज में दीपा का हाथ बंटाता. शिखर अपने दोस्त की ओर से एकदम बेफिक्र था. तनय की शादी हुई नहीं थी और वह अपने घर
में न रह कर शिखर के घर में ज्यादा रहता था.
पड़ोस के घरों में अकसर उन के रिश्ते को ले कर खुसुरफुसुर होती थी. लेकिन वे परवाह न करते थे. वैसे भी अब लोग एकदूसरे के मामलों में कम दखल देते थे. उस के पड़ोसी ऊंची जातियों के थे और शिखर व तनय को अपने से नीचा समझते थे, इसलिए कोई हंगामा भी खड़ा नहीं हुआ.
तनय की अभी शादी नहीं हुई थी. वह कभीकभार दीपा से सैक्सी चुहलबाजी कर बैठता तो वह मुसकरा कर देवर सा प्यार जताती. उसे फ्लर्टिंग बुरी नहीं लगती. शिखर अपनी पत्नी से बेहद खुश था.
एक दिन शिखर को दफ्तर के काम से 3 दिन के लिए बाहर जाना पड़ा. दीपा की आंखों में आंसू भर आए.
तब शिखर बोला, ‘‘पगली, चिंता क्यों करती है? अपना तनय जो है.
उस के रहते चिंता की कोई बात नहीं. फिर तनय के पास कार भी है, उस के साथ फिल्म देख आना, मन बहल जाएगा.’’
शिखर चला गया. दीपा घर की सफाई में लग गई.
थोड़ी देर बाद तनय आ गया, तो दीपा बोली, ‘‘अरे, तुम अच्छे आ गए. वह जरा शक्कर का डब्बा पकड़ाना.’’ स्टूल पर चढ़ेचढ़े दीपा बोली.
दीपा ने उस समय केवल टाइट टौप और एक हाफ पैंट पहनी हुई थी.
डब्बा उठा कर तनय बोला, ‘‘भाभीजी, आप क्यों तकलीफ करती हैं? मैं रख देता हूं.’’
‘‘मुझे क्या कमजोर समझ रखा है,’’ कहते हुए दीपा उस से डब्बा लेने लगी. लेकिन लड़खड़ा गई और तनय से टकराते हुए फर्श पर गिर गई. दीपा के सुडौल जिस्म से टकराते ही तनय के जिस्म में जैसे बिजली सी दौड़ गई. वह दीपा को सहारा देते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, कहीं चोट तो नहीं आई?’’
‘‘नहीं,’’ दीपा खुद को संभालने लगी. हालांकि उसे तनय की छुअन अच्छी लगी थी और उसे कुछ सैकंड ज्यादा पकड़े रही. तनय ने उस का मतलब कुछ और निकाल लिया.
रात का खाना खा कर तनय अपने कमरे में चला गया. दीपा भी अपने कमरे में जा कर पलंग पर लेट गई. वह किताब उठा कर पढ़ने लगी कि तनय ने दरवाजा खटखटाया.
दरवाजा खोलते हुए दीपा ने पूछा, ‘‘क्या है?’’
‘‘कुछ नहीं भाभी, अपनी फाइल लेने आया था,’’ तनय बोलते समय जैसे कांप रहा था.
‘‘अच्छा, ले लो.’’
शिखर की मेज पर तनय फाइल खोजने लगा. फिर एक फाइल उठा कर बोला, ‘‘मैं जाऊं?’’
‘‘और कुछ काम है क्या?’’ दीपा ने पूछा.
‘‘भाभी, तुम कितनी खूबसूरत
हो,’’ कहते हुए तनय ने दीपा का हाथ पकड़ना चाहा. दीपा जैसे चौंक पड़ी. लेकिन संभलते हुए वह बोली, ‘‘यह क्या…? तुम्हें तो मैं अपना देवर सा मानती हूं.’’
‘‘अरे, कहां का देवर,’’ कहते हुए तनय दीपा की ओर लपका, ‘‘जब मेरी बांहों में आई थीं, तो मैं तो उसी समय होश खो बैठा था.’’
दीपा चीख कर बोली, ‘‘तनय, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे रात को इस समय छूने की. निकल जाओ, नहीं तो शोर मचा दूंगी.
‘‘तुम मेरे प्यार का गलत मतलब न निकालो. जो तुम चाहते हो, उसे करने के बाद कोई औरत जिंदगीभर अपने खुद के सामने सिर उठा कर नहीं चल सकती. निकल जाओ बाहर,’’ उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.
तनय बुझा हुआ कमरे से बाहर निकल गया. दीपा कमरे में कुंडी लगा कर फफक पड़ी.