कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. चौकचौराहों पर लोग अलाव जला कर आग ताप रहे थे. रविवार का दिन था और विरेश के औफिस की छुट्टी थी. वह घर पर बैठा चाय पी रहा था कि उस की पत्नी शैली ने उस से कहा, ‘‘आज शौपिंग करने चलते हैं. आप के लिए एक कोट खरीद दूंगी. कितनी सर्दी पड़ रही है.’’
‘‘लेकिन, मेरे पास कोट तो है ही. मुझे इस की जरूरत नहीं है,’’ विरेश ने कहा.
‘‘अरे, वही पुराना ब्लैक कोट. उसे 3-4 सालों से पहन रहे हैं आप. इस बार ब्राउन रंग का कोट आप के लिए पसंद कर दूंगी. आप पर खूब जंचेगा,’’ पत्नी शैली ने मुसकरा कर कहा. विरेश ने आखिर पत्नी की बात मान ली.
शाम को शैली शौपिंग के लिए तैयार हो गई थी. शैली की खूबसूरती का क्या कहना, मेकअप ने उस का रूप और निखार दिया था. उस ने इतनी कंपकंपाती ठंड में भी हलकाफुलका सलवारकमीज ही पहना था. अलबत्ता, होंठों पर हलकी चौकलेटी लिपस्टिक लगाई थी, जिसे देख कर विरेश का दिल प्यार करने के लिए मचल उठा था.
‘‘किस पर बिजली गिराने का इरादा है?’’ विरेश ने चुटकी ली.
‘‘इस सर्दी में मेरे हुस्न की थोड़ी गरमी जरूरी है, नहीं तो आप को ठंड लग सकती है,’’ शैली ने मनमोहक अंदाज में हंस कर कहा.
विरेश ने उसे भरपूर नजर से निहारते हुए कहा, ‘‘लड़कियों और औरतों को क्या ठंड नहीं लगती है? चाहे कितनी भी सर्दी क्यों न पड़ रही हो, वे कम कपड़ों में ही घर से बाहर शौपिंग करने चली जाती हैं. उन पर ठंड का कोई असर नहीं होता है क्या?’’
‘‘अगर हम ठंड की परवाह करेंगी, तो अपना फैशन और हुस्न की नुमाइश कैसे करेंगी…’’ शैली ने विरेश को प्यार से समझाया.
विरेश और शैली प्यारभरी बातें करते हुए एक बड़े शोरूम में आ गए थे. शैली ने विरेश के लिए एक ब्राउन कलर का कोट पसंद कर दिया था, जिसे पहन कर विरेश वाकई स्मार्ट दिख रहा था.
बाजार में शैली ने अपनी पसंद की पापड़ी चाट खाई. वे दोनों 1-2 घंटे के बाद घर लौट आए थे.
रात के 11 बज रहे थे. दिन से ज्यादा रात में ठंड पड़ रही थी. अपने कमरे में विरेश और शैली रजाई के अंदर दुबक गए थे. अब दोनों एकदूसरे से लिपट कर सर्दी से थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे. 2 जवां जिस्म प्यार करने के लिए तड़प उठे थे. जिस्म की आग धीमेधीमे सुलगने लगी थी. विरेश शैली के उभारों को सहलाने लगा.
शैली ने विरेश के होंठों को चूम कर कहा, ‘‘आप शाम से ही रोमांटिक मूड में आ गए थे.’’
‘‘हां, क्यों नहीं. तुम खूबसूरत और सैक्सी जो लग रही थीं. इस ठंडी रात में प्यार करने के लिए मेरा दिल मचल उठा है,’’ विरेश शैली के ऊपर आते हुए बोला.
शैली ने विरेश को जोर से जकड़ लिया. रात में दोनों ने जीभर कर मजे लिए. जब जिस्म की प्यास बुझ गई, तब वे दोनों गहरी नींद में सो गए.
सुबह की कुनकुनी धूप खिली हुई थी. धूप में कुरसी पर बैठा विरेश अखबार पढ़ रहा था. अखबार में खबर छपी थी, ‘ठंड ने कहर बरपाया. 2 लोगों की मौत. शीतलहर का प्रकोप जारी.’
खबर पढ़ कर विरेश सहम गया. तभी रसोईघर से शैली ने किसी काम से विरेश को अपने पास बुलाया, ‘‘मेरा एक काम कर दो.’’
‘‘क्यों नहीं. पर पहले वह नेक काम तो बताओ?’’ विरेश ने कहा.
‘‘वह पुराना ब्लैक कोट किसी गरीब को दे दीजिए. किसी जरूरतमंद का ठिठुरती ठंड से बचाव हो जाएगा. अपनी अलमारी में नए कोट की जगह भी बन जाएगी.’’
विरेश ने कुछ सोचते हुए शैली से कहा, ‘‘संतोख को वह कोट दे देते हैं. वही मजदूर जो ईंटबालू ढोने से ले कर साफसफाई का हमारा काम कर देता है.’’
‘‘ठीक मजदूर है, उसी को वह पुराना कोट दे दीजिएगा,’’ शैली ने अपनी रजामंदी जताई.
दूसरे दिन विरेश वह पुराना कोट ले कर संतोख की झोंपड़ी की तरफ चला गया.
कालोनी में छोटेबड़े मकानों के बीच जो थोड़ी सी जगह बची थी, वहां कुछ मजदूर, मिस्त्री, रिकशे वाले अपनी झोंपड़ी बना कर रहते थे. संतोख भी यहीं रह कर शहर में मजदूरी करता था.
विरेश को संतोख अपनी झोंपड़ी के पास मिल गया था.
‘‘कहिए साहब, कुछ काम है क्या?’’ संतोख हैरानी से विरेश को देखते हुए बोला.
‘‘कोई काम तो अभी नहीं है. बस, यह कोट तुम्हें देने चला आया,’’ विरेश ने कहा.
‘‘अरे साहब, मेरे लिए इतना अच्छा कोट. पूरे जाड़े इसी कोट को पहनूंगा,’’ कहते हुए संतोख ने वह कोट ले लिया.
‘‘संतोख, इस कोट को संभाल कर रखना,’’ कह कर विरेश चला गया.
विरेश घर पर आ गया था. शैली ने पूछा, ‘‘क्या संतोख मिल गया था?’’
‘‘हां, मिल गया था. उसे कोट दे कर आ रहा हूं,’’ विरेश ने कहा.
‘‘हम लोग के हाथों एक बढि़या काम तो हो गया. संतोख जैसे जरूरतमंद को वह कोट जाड़े में बहुत काम आ जाएगा,’’ कह कर शैली घरेलू काम में लग गई.
संतोख सुबह में मजदूरी करने जा रहा था. वह विरेश का दिया हुआ कोट पहने हुए था. उसे रास्ते में मुकेश मिल गया. मुकेश बिजली मिस्त्री था. उस की नजर संतोख के कोट पर पड़ी. उसे संतोख का कोट पसंद आ गया.
मुकेश मन ही मन सोचने लगा कि इस कोट को संतोख से किसी तरह ले लूं, तो इस कंपकंपाती ठंड में बड़ी राहत हो जाएगी.
यह सोच कर मुकेश ने संतोख से कहा, ‘‘संतोख, यह कोट बेचोगे. मैं इसे खरीदना चाहता हूं.’’
संतोख पलभर के लिए सोच में पड़ गया. लेकिन रुपए मिलने के लालच ने उस का ईमान डिगा दिया,’’ मुकेश, तुम इस कोट के कितने रुपए दोगे?’’
‘‘700 रुपए दे दूंगा,’’ मुकेश ने ललचाई नजरों से कोट की तरफ देखते हुए कहा.
‘‘700 रुपए तो नहीं, 800 रुपए में यह कोट दे दूंगा. अगर मंजूर है, तो बोलो?’’ संतोख ने कहा.
‘‘700 रुपए ही दूंगा, लेकिन 100 रुपए की शाम को शराब की पार्टी कर दूंगा,’’ मुकेश ने कहा.
‘‘ठीक है, यह लो कोट. चलो, अब फटाफट रुपए निकालो.’’
मुकेश ने 700 रुपए जेब से निकाल कर संतोख को दे दिए. संतोख ने कोट उतार कर उसे दे दिया. मुकेश खुशी से कोट ले कर चला गया.
कोट खरीद कर मुकेश ने जाड़े से बचाव का एक रास्ता पा लिया था, वहीं संतोख ने चंद रुपए की खातिर जाड़े में ठंड लगने का खतरा मोल ले लिया था.
शाम हो गई थी. मुकेश संतोख के साथ शराब के ठेके पर पहुंच गया.
उस ने अपने पैसे से शराब की बोतल खरीदी और संतोख के साथ शराब पीने बैठ गया.
एक गिलास के बाद दूसरा गिलास. इस तरह दोनों ने पूरी शराब की बोतल खाली कर डाली. जब संतोख पर नशा हावी हो गया, तब वह बैठने लगा, ‘‘शराब में बहुत गरमी होती है. जाड़े में शराब पीने से देह गरम हो जाती है. इस के पीने से सर्दी बिलकुल नहीं लगती है.’’
मुकेश ने कहा, ‘‘संतोख, तुम ठीक कहते हो. शराब पीने से मजा तो आता ही है, ठंड भी भाग जाती है. शराब पी लो तो ठंड में भी भलेचंगे रहोगे. देह में गरमी और फुरती बनी रहेगी.’’
दोनों नशे में लड़खड़ाते हुए अपने घर चले गए. 2 दिन बाद जब संतोख मजदूरी कर के घर लौटा, तब उस के बदन व सिर में तेज दर्द हो रहा था. उस की बीवी लाजो ने उस का बदन छू कर देखा, ‘‘अरे, आप का बदन तो बहुत गरम लग रहा है. आप को बुखार हो गया है.’’
‘‘मुझे बहुत ठंड लग रही है. जल्दी से मुझे कंबल ओढ़ा दो,’’ संतोख ने मरियल आवाज में कहा. लाजो ने उसे कंबल ओढ़ा दिया.
संतोख ने बुखार में तपते हुए किसी तरह रात बिताई. दूसरे दिन वह डाक्टर के पास गया.
डाक्टर ने संतोख का चैकअप किया, ‘‘तुम को ठंड लग गई है. कुछ दवाएं लिख देता हूं.’’
डाक्टर ने दवाएं परचे पर लिख दीं. डाक्टर ने संतोख से पूछा, ‘‘क्या तुम ने 1-2 दिन पहले शराब पी थी?’’
‘‘हां, डाक्टर साहब,’’ संतोख ने सकुचाते हुए कहा.
‘‘देखो, उसी शराब ने तुम को बीमार कर दिया. अब कभी शराब मत पीना,’’ कह कर डाक्टर ने इशारे से उसे जाने को कहा. संतोख डाक्टर के चैंबर से बाहर आ गया.
संतोख के जाते ही डाक्टर ने अपने पास बैठे जूनियर डाक्टर को बुलाया, ‘‘शराब गरम होती है. जब कोई शराब पीता है, तो एकाएक उस के बदन में गरमी आ जाती है. लेकिन बाहर तो सर्दी पड़ रही है. सर्दी के असर से ठंड लगने का डर बढ़ जाता है. संतोख के साथ भी यही हुआ?है.’’
‘‘लेकिन, ये लोग मानते कहां हैं. शराब पीना नहीं छोड़ते हैं,’’ जूनियर डाक्टर ने कहा.
4-5 दिन बीत जाने के बाद भी संतोख का मर्ज ठीक होने के बजाय बढ़ता ही गया. महंगी दवाएं खरीदने से घर का खर्च चलाना मुश्किल होने लगा. चारपाई पर पड़े हुए बीमार संतोख ने लाजो से कहा, ‘‘कुछ रुपए विरेश
बाबू से मांग कर ले आओ. उन को बोलना कि ठीक हो जाने पर रुपए वापस कर दूंगा.’’ लाजो बिना देर किए विरेश से रुपए मांगने चली गई.
‘‘विरेश बाबू, संतोख बीमार है. घर का खर्च चलाने के लिए पैसे नहीं है. 500 रुपए मिल जाते तो… बाद में पैसे वापस कर दूंगी,’’ लाजो ने कहा.
‘‘संतोख को हुआ क्या है?’’ विरेश ने कहा.
‘‘उसे ठंड लग गई है,’’ लाजो ने सकुचाते हुए कहा.
‘‘मैं अभी आता हूं. तुम घर जाओ. रुपए संतोख के हाथ में ही दूंगा और उस से तबीयत का हाल भी पूछ लूंगा,’’ विरेश ने कहा.
विरेश थोड़ी ही देर में संतोख को देखने उस की झोंपड़ी में चला गया, ‘‘कैसी तबीयत है अब? कुछ सुधार लग रहा है?’’ विरेश ने संतोख से पूछा.
‘‘कुछ सुधार नहीं है, साहब. तबीयत बिगड़ती ही जा रही?है,’’ संतोख ने कहा.
‘‘जो कोट दिया था, उसे पहना कि नहीं?’’ विरेश ने पूछा.
संतोख ने कोई जवाब नहीं दिया. वह खामोश ही रहा. तभी उस की बीवी लाजो ने कहा, ‘‘क्या कहूं साहब, संतोख उस कोट को बेच कर दारू पी गया.’’
यह सुन कर विरेश को बहुत बुरा लगा. उस के दिल पर चोट लगी थी.
‘‘ऐसा क्यों किया संतोख. मैं ने कोट इस कड़कड़ाती ठंड में तुम्हें पहनने के लिए दिया था,’’ विरेश ने उदास हो कर कहा.
संतोख कुछ नहीं बोला. उस की आंखों में आंसू छलक आए. विरेश ने उस के हाथ में 5 सौ रुपए रखे और झोंपड़ी से बाहर निकल गया.
घर आ कर विरेश ने शैली को बताया, ‘‘संतोख ने तो वह कोट पहना तक नहीं. उसे ठंड लग गई है. उस कोट को बेच कर वह शराब पी गया.’’
यह सुनते ही शैली संतोख को भलाबुरा कहने लगी, ‘‘ये छोटे लोग होते ही ऐसे हैं. इन को किसी की भलाई नहीं चाहिए. चंद रुपए के लिए हमारा दिया हुआ कोट बेच दिया. वह भी ठेके पर जा कर शराब पीने के लिए. अब बीमार पड़ा है. मरने दीजिए उसे.’’
विरेश खामोश हो कर शैली की बात सुनता रहा. वह कुछ न बोला. शैली अपना गुस्सा संतोख पर उतार चुकी थी.
4-5 दिन बीते थे. विरेश और शैली मार्केट से घर लौट रहे थे. संतोख की झोंपड़ी के पास लोगों की भीड़ लगी हुई थी. झोंपड़ी से संतोख की बीवी लाजो के रोने की आवाजें आ रही थीं. विरेश और शैली किसी अनहोनी के डर से ठिठक कर रुक गए.
विरेश ने वहां खड़े एक शख्स से पूछा, ‘‘क्या बात है? संतोख ठीक तो है न?’’
‘‘संतोख तो मर गया. उस की बीवी लाजो बहुत रो रही है साहब,’’ उस आदमी ने बताया. विरेश और शैली यह सुन कर सन्न रह गए.