सुहागरात मनाने के लिए रेशमा को सजा कर पलंग पर बैठाया गया था. विजय कमरे में आया. उस ने अपनी लुभावनी बातों से रेशमा को खुश करना चाहा, हथेली सहलाई, अपने पास खींचना चाहा, तो उस ने मना किया. कई बार उस के छेड़ने पर रेशमा उस से कटती रही, उस की आंखों से आंसू निकलते देख विजय ने सोचा कि पिता की एकलौती औलाद है, उसे पिता से बिछुड़ने की पीड़ा सता रही होगी, क्योंकि उस की मां न थी. बड़े लाड़प्यार से पिता ने पालापोसा और मांबाप दोनों का फर्ज अदा किया था. बहुत पूछने पर रेशमा ने बतलाया कि उसे पीरियड आ रहा है. कुछ रोज तक रेशमा उस की मंसा पूरी नहीं कर सकेगी.
चौथे दिन विवेक राय का मुनीम बड़ी कार ले कर यह बतलाने पहुंचा कि रेशमा के पिता की हालत एकाएक बेटी के चले जाने से खराब हो गई. वे बेटी को देखना चाहते हैं. रेशमा की विदाई कर दी जाए. मजबूरी में बिना सुहागरात मनाए रेशमा को विदा करना पड़ा. विजय ने साथ जाना चाहा, तो मुनीम ने यह समझाते हुए मना कर दिया कि पहली बार उन्हें ससुराल में इज्जत के साथ बुलाया जाएगा.
एक महीने से ज्यादा हो चुका था. रेशमा को वापस भेजने के लिए श्यामाचरन गुजारिश करते रहे, पर विवेक राय ने अपनी बीमारी की बात कह कर मना कर दिया.
डेढ़ महीने बाद विवेक राय खुद अपनी कार से रेशमा को ले कर श्यामाचरन के यहां आए और बेटी को छोड़ कर चले गए. डेढ़ महीने बाद फिर वही सुहागरात आई, तो दोनों के मिलन के लिए कमरा सजाया गया. रेशमा घुटनों में सिर छिपाए सेज पर बैठी रही. उस की आंखों से झरझर आंसू गिर रहे थे. विजय के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया, बस रोती ही रही.
इतने दिनों बाद पहली सुहागरात को विजय को रेशमा का बरताव बड़ा अटपटा सा लगा. उसे ऐसी उम्मीद जरा भी न थी. पहले सोचा कि रेशमा को अपने घर वालों से दूर होने का दुख सता रहा होगा, इसलिए याद कर के रोती होगी, कुछ देर बाद सामान्य हो जाएगी, पर वह नहीं हुई. जब रेशमा विजय की छेड़खानी से भी नहीं पिघली, तो उस ने पूछा, ‘‘रेशमा, सचसच बताओ, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं? अगर तुम्हें मेरे साथ सहयोग नहीं करना था, तो शादी क्यों की? पति होने के नाते अब मेरा तुम पर हक है कि तुम्हें खुश रख कर खुद भी खुश रह सकूं.’’
रेशमा के जवाब न देने पर विजय ने फिर पूछा, ‘‘रेशमा, डेढ़ महीने तुम्हारे तन से मिलने के लिए बेताबी से इंतजार करता रहा है. आज वह समय आया, तो तुम निराश करने लगी. सब्र की भी एक सीमा होती है, ऐसी शादी से क्या फायदा कि पतिपत्नी बिना वजह एकदूसरे से अलग हो कर रहें,’’ कहते हुए विजय ने रेशमा को अपनी बांहों में कस लिया और चूमने लगा. रेशमा कसमसाई और खुद को उस से अलग कर लिया. लेकिन जब विजय उसे बारबार परेशान करने लगा, तो वह चीख मार कर रो पड़ी.
‘‘आप मुझे परेशान मत कीजिए. मैं आप के काबिल नहीं हूं. मेरे दिल में जो पीड़ा दबी है, उसे दबी रहने दीजिए. मुझे इस घर में केवल दासी बन कर जीने दीजिए, नहीं तो मैं खुदकुशी कर लूंगी.’’ ‘‘खुदकुशी करना मानो एक रिवाज सा हो गया है. मैं शादी नहीं करना चाहता था, तो मेरे बाप ने खुदकुशी करने की धमकी देते हुए मुझे शादी करने को मजबूर कर दिया. शादी करने के बाद मेरी औरत भी खुदकुशी करने की बात करने लगी. अच्छा तो यही होगा कि सब की चाहत पूरी करने के लिए मैं ही कल सब के सामने खुदकुशी कर लूं.’’
‘‘नहीं… नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते. आप इस घर के चिराग हैं… पर आप मुझे मजबूर मत कीजिए. मैं आप के काबिल नहीं रह गई हूं. मुझे अपनों ने ही लूट लिया. मैं उस मुरझाए फूल की तरह हूं, जो आप जैसे अच्छे इनसान के गले का हार नहीं बन सकती. ‘‘मैं आप को अपने इस पापी शरीर के छूने की इजाजत नहीं दे सकती, क्योंकि इस शरीर में पाप का जहर भरा जा चुका है. मैं आप को कैसे बताऊं कि मेरे साथ जो घटना घटी, वह शायद दुनिया की किसी बेटी के साथ नहीं हुई होगी.
‘‘ऐसी शर्मनाक घटना को बताने से पहले मैं मर जाना बेहतर समझूंगी. मुझे मरने भी नहीं दिया गया. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई, मानो मौत भी मुझे जीने के लिए तड़पाती छोड़ गई. ‘‘उफ, कितना बुरा दिन था वह, जब मैं आजाद हो कर अंगड़ाई भी न ले
सकी और किसी की बदनीयती का शिकार बन गई.’’ इतना कह कर रेशमा देर तक रोती रही. विजय ने उसे रोने से नहीं रोका. अपनी आपबीती सुनातेसुनाते वह पलंग पर ही बेहोश हो कर गिर पड़ी.
विजय ने रेशमा के मुंह पर पानी के छींटे मारे. उसे होश आया, तो वह उठ बैठी. ‘‘मेरी आपबीती सुन कर आप को दुख पहुंचा. मुझे माफ कर दीजिए,’’ कह कर रेशमा गिड़गिड़ाई.
‘‘तुम ने जो बताया, उस से यह साफ नहीं हुआ कि किस ने तुम पर जुल्म किया? ‘‘अच्छा होगा, तुम उस का खुलासा कर दो, तो तुम्हें सुकून मिलेगा.
‘‘लो, एक गिलास पानी पी लो. तुम्हारा गला सूख गया है, फिर अपनी आपबीती मुझे सुना दो. भरोसा रखो, मैं बुरा नहीं मानूंगा.’’ विजय के कहने पर आंखें पोंछती हुई रेशमा अपनी आपबीती सुनाने को मजबूर हो गई.