Hindi Family Story, लेखिका - डा. के. रानी
वन संरक्षक के पद पर काम करते हुए अविनाश को 5 साल हो गए थे. नौकरी के दौरान उन का ज्यादातर समय बहुत अच्छा बीता था. उन की पत्नी रूही ने अपने परिवार की खातिर कभी जौब करने के बारे में सोचा ही नहीं. वे घर पर रह कर बच्चों को पूरा समय देतीं और विभागीय कार्यक्रम के साथ समाजसेवा में बढ़चढ़ कर भाग लेतीं.
समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था. अविनाश की दोनों बेटियां नताशा और न्यासा पढ़ने में बहुत अच्छी थीं. नताशा अभी ग्रेजुएशन कर रही थी. पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद न्यासा का रु?ान सिविल सेवा की ओर था. वह उस के लिए तैयारी भी कर रही थी, लेकिन उस की मेहनत कामयाब नहीं हो पा रही थी.
रूही ने बेटियों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे. खुद भी वे संस्कारवान थीं, लेकिन अविनाश का स्वभाव थोड़ा उग्र था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन शांति की कमी थी.
रूही को अविनाश की ऊपरी कमाई से एतराज था. वे दबे स्वर में इस का कई बार विरोध भी कर चुकी थीं, लेकिन अविनाश कुछ सुनने को तैयार नहीं थे.
‘‘घर में ये जितने ठाटबाट हैं न, ये केवल तनख्वाह से नहीं आते. इस के लिए और कुछ भी करना पड़ता है,’’ अविनाश बोले.
‘‘हमारे पास सबकुछ अविनाश. हमें इस की जरूरत क्या है?’’ रूही बोलीं.
‘‘यह तुम नहीं समझोगी. अच्छा होगा कि तुम इस मामले में दखल न दिया करो और चैन की जिंदगी बसर करो. मौज करो और बेटियों को भी कुछ सिखाओ. हर समय घर के अंदर किताबों में घुसी रहती हैं. न कामयाबी हासिल कर पा रही हैं और न ही अपने लिए कोई अच्छा वर,’’ अविनाश गुस्से से बोले.
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