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हरीश जायसवाल

डवलपमैंट अथौरिटी की उस नईनवेली कालोनी के कौर्नर वाले बंगले की बाउंड्री वाल की छांव में वह सड़कों पर घूमने वाला आवारा कुत्ता आराम से सो रहा था. अचानक एक पत्थर तेज रफ्तार से उस की टांग पर आ लगा.

‘कूंकूं’ की आवाज करते हुए वह कुत्ता दर्द से बिलबिला पड़ा और अगले वार से बचने के लिए तेजी से भाग कर कुछ दूर खड़ा हो गया.

वह सोच रहा था कि शायद किसी शरारती बच्चे ने उसे परेशान करने के लिए पत्थर मारा होगा, लेकिन जब मिचमिची आंखों से उस ने देखा कि खुद बंगले के मालिक ने पूरी ताकत से यह पत्थर मारा है, तो उस की हैरानी का ठिकाना न रहा. एक उम्रदराज और समझदार आदमी ऐसी हरकत क्यों कर सकता है?

‘‘अरे, इस आवारा कुत्ते को यहां दीवार से सट कर मत बैठने दिया करो. पता नहीं, किसकिस गंदगी में लोट लगाता है और यहां आ कर दीवार से चिपक कर बैठ जाता है. इतना महंगा पेंट करवाया है. सब सत्यानाश कर देगा,’’ शाम के समय अपनी साइकिलिंग की ऐक्सरसाइज पर जाने के लिए साइकिल निकालते हुए बंगले का मालिक अपनी पत्नी से कह रहा था.

‘ओह, तो यह बात है. मैं तो यहां इसलिए बैठता हूं कि इस नईनई डवलप हो रही कालोनी में रहने आए सभी लोगों को पहचानने लगा हूं. कौर्नर होने के चलते तकरीबन सभी लोग इधर से ही गुजरते हैं.

‘मैं तो आज भी अपने पुरखों की तरह अजनबियों को देख कर गुर्राता हूं और भूंकता भी हूं, मगर शायद अब लोग इस आवाज को आवारा और सड़कछाप समझ कर मेरी अनदेखी कर देते हैं और मेरे संकेतों को समझ नहीं पाते.

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