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रामआसरेजी जब से विधायक बने थे किसी न किसी कारण हाईकमान से खिंचे रहते थे. खुद को जनता का सर्वश्रेष्ठ सेवक समझने वाले रामआसरे के घर आज उन्हीं जैसे 5 और असंतुष्टों की बैठक थी. भीमा, राजा भैया, प्रताप सिंह, सिद्दीकी और गायत्री देवी एक के बाद एक कर जनतांत्रिक दल के अध्यक्ष रवि और मुख्यमंत्री के खिलाफ आग उगल रहे थे.

‘‘बहुत हो गया, अब हम और चुप नहीं रहेंगे. हम ने तो तनमनधन से दल की सेवा की पर उन्होंने हमें दूध में गिरी मक्खी की भांति निकाल फेंका.’’ राजा भैया बहुत क्रोध में थे.

‘‘वही तो, मंत्रिमंडल का 3 बार विस्तार हो गया, पर हम लोगों के नाम का कहीं अतापता ही नहीं. मैं ने रवि बाबू से शिकायत की तो हंसने लगे और बोले कि तुम आजकल के छोकरों की यही समस्या है कि सेवा से पहले ही मेवा खाना चाहते हो,’’ प्रताप सिंह बोले थे.

‘‘40 वसंत देख चुके नेता उन्हें कल के छोकरे नजर आते हैं तो उस में हमारा नहीं उन का दुर्भाग्य है. जब तक दल में नए खून को महत्त्व नहीं देंगे, दल कभी तरक्की के रास्ते पर अग्रसर नहीं हो सकता,’’ रामआसरे खिन्न स्वर में बोेले थे.

‘‘दल की उन्नति और अवनति की किसे चिंता है, सब को अपनी पड़ी है. सच पूछो तो मेरा तो राजनीति से पूरी तरह मोहभंग हो गया है. महिलाओं की दशा तो और भी अधिक दयनीय है,’’ गायत्री देवी रोंआसे स्वर में बोली थीं.

तभी टेलीफोन की घंटी के तेज स्वर ने इस वार्त्तालाप में बाधा डाल दी.

‘‘नमस्ते, नमस्ते सर,’’ दूसरी ओर से दल के अध्यक्ष रवि बाबू का स्वर सुन कर रामआसरेजी सम्मान में उठ खड़े हुए थे.

‘‘रामआसरेजी, आप के लिए शुभ समाचार है,’’ रवि बाबू अपने चिरपरिचित अंदाज में हंसते हुए बोले थे.

‘‘विधायकों का एक शिष्टमंडल एड्स की रोकथाम और चिकित्सा के अध्ययन के लिए मलयेशिया जा रहा है. उस में आप का नाम भी है.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा है.’’

‘‘कानों पर विश्वास करना सीखिए, रामआसरेजी. कुछ वरिष्ठ नेतागण आप के नाम को नहीं मान रहे थे, पर मैं अड़ गया कि रामआसरेजी जाएंगे तभी शिष्टमंडल मलयेशिया जाएगा नहीं तो नहीं. अंतत: उन्हें मानना ही पड़ा.’’

वार्त्तालाप के बीच में ही रामआसरेजी ने अपनी नजर वहां बैठे अपने अन्य साथी विधायकों पर डाली थी, जो उन का वार्त्तालाप सुनने की चाहत में बेचैन हो उठे थे. तब मोबाइल कानों से लगाए रामआसरेजी धीरे से डग भरते कक्ष के बाहर बरामदे में आ गए थे.

‘‘और कौनकौन है शिष्टमंडल में?’’

‘‘आप को आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं,’’ रवि बाबू संयमित स्वर में बोले थे.

‘‘वही समझ लीजिए, हमारे और भी साथी हैं रवि बाबू. वे नहीं गए और मैं चला गया तो बुरा मान जाएंगे.’’

‘‘कौनकौन हैं वहां पर?’’ रवि बाबू ने तनिक गंभीर स्वर में पूछ लिया था.

‘‘कौन? कहां? रवि बाबू?’’ रामआसरेजी हड़बड़ा गए थे.

‘‘घबराइए मत, रामआसरेजी, राजनीति में आंखकान खुले रखने पड़ते हैं,’’ रवि बाबू ने ठहाका लगाया था.

‘‘हम लोग तो यों ही चायपार्टी के लिए जमा हुए हैं. आप ने शायद गलत समझ लिया.’’

‘‘देखो, मैं ने गलतसही कुछ भी नहीं समझा है. मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया था कि हाईकमान को आप की कितनी चिंता है. आप के अन्य मित्रों को भी शिष्टमंडल में शामिल कर लिया गया है,’’ रवि बाबू बोले थे.

‘‘यानी भीमा, राजा भैया, प्रतापसिंह और सिद्दीकी भी शिष्टमंडल में हैं.’’

‘‘जी हां, और गायत्री देवी भी.’’

‘‘गायत्री देवी…यह आप ने क्या किया रवि बाबू. वह भला एड्स संबंधित अध्ययन में क्या भूमिका निभाएंगी. उन्हें तो किसी महिला सम्मेलन में भेजते.’’

‘‘ऐसा मत कहिए. गायत्री देवी ने सुन लिया तो आप की खैर नहीं. स्त्री शक्ति का सम्मान करना सीखिए, रामआसरेजी.’’

‘‘मैं तो उन का बहुत सम्मान करता हूं, रवि बाबू, पर शायद हम लोगों के साथ वह सहज अनुभव नहीं कर पाएंगी.’’

‘‘उस की चिंता आप छोडि़ए और जाने की तैयारी कीजिए,’’ कहते हुए रवि बाबू ने फोन काट दिया था.

बातचीत खत्म कर रामआसरेजी किसी विजेता की मुद्रा में कमरे में घुसे और अपने खास अंदाज में सोफे पर पसर गए.

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