मीनू ने आफिस जाते वक्त मेज पर परोसी गई थाली को हाथ मार कर नीचे गिरा दिया और जातेजाते अधीर से गुर्रा गई थी, ‘‘आइंदा मेरे लिए खाना मेज पर मत लगाना, वरना…’’
हुआ यह कि सुबह मीनू ने केवल अपने लिए चाय बनाई थी. अधीर को बड़ी कोफ्त हुई कि थोड़ी सी और चाय बढ़ा कर बनाई होती तो उस का क्या चला जाता. खैर, ऐसी टुच्ची हरकत तो वह रोज ही किया करती है.
उस के बाद वह किचन में घुस गया था. बाकायदा दालचावल के साथसाथ गोभी, आलू, मटर का दोपियाजा बनाया था. सोचा था कि मीनू का मूड दोपियाजे की खुशबू से बदल जाएगा पर उस की रसोईगीरी की मशक्कत का अंजाम यह हुआ कि मीनू ने सारा खाना ही जमीन पर छितरा दिया.
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इस घटना के बाद अधीर का मूड इतना खराब हुआ कि उस ने एक दाना भी हलक से नीचे नहीं उतारा.
उस ने छितरे खाने को बटोर कर डस्टबिन में डाला. फिर बचाखुचा खाना एक पालिथीन बैग में डाल कर नीचे पार्क के एक कोने में रख आया. महल्ले के कुत्तों को लगातार तीसरे दिन भी अच्छी दावत मिल गई थी. बहरहाल, अधीर को कुत्ते- बिल्लियों को खाना खिला कर बेहद सुकून मिलता था. कम से कम वे उस के खाने को पर्याप्त सम्मान तो देते थे.
सीढि़यां चढ़ते वक्त ही उस ने तय कर लिया कि वह आज भी दफ्तर नहीं जाएगा बल्कि घर में बैठ कर कुछ लिखेगापढ़ेगा. पिछले कई महीनों से उस ने न तो कोई कविता लिखी थी, न ही कोई कहानी. शायद कुछ लिखने के बाद उस का मूड भी ठीक हो जाए. इसलिए उस ने अपने अफसर रेड्डी को फोन कर दिया, ‘‘सर, मेरा फीवर अभी तक नहीं उतरा है, मैं आज भी…’’
रेड्डी ने उसे 1 दिन की और छुट्टी दे दी थी.
अधीर पहले से कहीं ज्यादा हताश होता जा रहा था. पहले उस के मन में उम्मीद की एक धुंधली किरण टिमटिमाती रहती थी कि एक न एक दिन मीनू के खयालात जरूर बदलेंगे और उन के गृहस्थ जीवन में रस पैदा होगा. पर आज की इस घटना ने उस की उम्मीद को और भी धुंधला किया है. मीनू जिस दिन से उस के आंगन में बहू के रूप में उतरी थी, वह हर रोज उग्र से उग्रतर होती जा रही थी. पिछले 10 सालों से संबंधों में कड़वाहट बढ़ती ही जा रही थी. इस का अन्य बातों के साथसाथ, एक मुख्य कारण यह भी था कि अधीर को जो कुछ भी दहेज में मिला था, उसे वह या तो अपने घर छोड़ आया था या अपनी छोटी बहन की शादी में दे चुका था.
शादी के 2 दिन बाद ही जब दहेज में मिला स्कूटर उस ने अपने छोटे भाई के हवाले किया तो मीनू ने पहली बार यह कह कर अपनी नाकभौं सिकोड़ी थी कि एक दिन तुम मुझे भी अपने भाइयों के हवाले कर देना.
तब वह यह सोचते हुए चुप रह गया था कि जब मीनू उस की रौ में बहेगी तो उस का सामान के प्रति प्रेम का बुखार उतर जाएगा और वह भौतिक जीवन से उचट कर उस की बौद्धिक दुनिया में कदम रखेगी, जहां सुकून है, जिंदगी का असल माने है.
शादी के बाद वह मीनू के साथ खाली हाथ ही हैदराबाद चला आया था. मीनू ने चलतेचलते कहा भी था कि तुम ने शादी का सारा सामान अपने लालची परिवार वालों के हवाले कर के अच्छा नहीं किया.
तब पहली बार अधीर उस की बात को बीच में काटते हुए झल्ला कर बोला था, ‘मीनू, मेरे घर वाले तो तुम्हारे घर वाले भी हैं. फिर उन्हें अपशब्द कह कर अपनी किस बैकग्राउंड का परिचय दे रही हो? पढ़ीलिखी लड़की हो, कम से कम कुछ तो शालीनता से पेश आओ.’
उस पल मीनू का चेहरा एकदम तमतमा गया था. अधीर को पहली बार एहसास हुआ कि वह बेइंतहा हिंसक भी हो सकती है. दोनों ने एकदूसरे की ओर पीठ किए हुए ही अपनी यात्रा पूरी की. सुबह जब टे्रन सिकंदराबाद पहुंची तो अधीर ने उठ कर उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा था, ‘डियर, रेडी हो जाओ. हैदराबाद आने ही वाला है.’
अधीर ने तब बर्थ पर बिखरे कंबल, चादर खुद समेट कर बैग और अटैची में रखे थे. मीनू तो उठ कर आईने के सामने सिर्फ अपने मेकअप को फाइनल टच देने में मशगूल थी.
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अधीर ने अपनी नवविवाहिता पत्नी को खुश करने के लिए हैदराबाद के उस किराए के फ्लैट में सारे इंतजाम कर रखे थे. कुंआरा रहते हुए भी उस ने किचन, बेडरूम और ड्राइंगरूम को जरूरी सामान से सुसज्जित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी, लेकिन उसे आश्चर्य हो रहा था कि मीनू ने उस के सलीकेदार बंदोबस्त के बारे में एक भी तारीफ भरा लफ्ज नहीं बोला.
समय दिन, हफ्ते, महीने और साल के रास्ते सरकता चला जा रहा था. 3 साल तक कोई संतान न होने का सारा लांछन अधीर को ही झेलना पड़ा, क्योंकि मीनू हर किसी को रटारटाया उत्तर देती, ‘लगता है इन में ही कोई कमी है.’
अधीर की दबंग सास जब हैदराबाद आईं तो वह दामाद को बाकायदा यह मशविरा दे बैठीं, ‘इस हैदराबाद में हमारे रिश्ते का एक डाक्टर है, तुम उसी से अपना चेकअप करा लो. उस ने कई बेऔलादों की तकदीर बदली है.’ और जब उस डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि अधीर में कोई कमी नहीं है, तो मीनू और उस की सास का चेहरा गुस्से से सूज गया. मीनू का गुस्सा तब तक खत्म नहीं हुआ जब तक कि वह मेडिकल जांच और इलाज के बाद गर्भवती नहीं हो गई.
पहले बेटे के बाद दूसरी बिटिया हुई. अफसोस कि अधीर के घर वाले दोनों बच्चों के पैदा होते समय वहां नहीं आ सके. मीनू ने तो इस बात पर खूब ताने दिए. जब अधीर सफाई पेश करता तो वह और विस्फोटक हो जाती.
अधीर ने शादी केवल इसलिए की थी कि वह हैदराबाद में नौकरी करते हुए अपने एकाकीपन से बोर हो गया था. उस के लिए घर का काम निबटा कर आफिस की ड्यूटी करना भारी पड़ रहा था, वरना तो वह अपनी जिंदगी से खुश था.
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