पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- छींक: भाग 1
मैं ने उस दुकानदार की बात का जवाब देना जरूरी नहीं सम झा और उठ कर तेजी से बाहर आ गया. सब से पहले मैं ने अपना ही मुआयना किया. हैलमैट की वजह से सिर तो सलामत रह गया था, मगर घुटने और कुहनियां ऐसे लगने लगे थे, मानो किसी ने उन पर रंदा चला दिया हो. सूट भी फट गया था.
दूसरी ओर पड़े अधेड़ सज्जन बुरी तरह चीखते हुए मु झे गालियां दे रहे थे और मेरा ड्राइविंग लाइसैंस रद्द करने की मांग भी उठा रहे थे. आसपास के लोगों ने उन्हें अपने घेरे में ले रखा था और टटोलटटोल कर उन की चोटों का मुआयना कर रहे थे.
मैं ने वहां से निकल कर भागना चाहा और स्कूटर उठा कर उसे स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन नाजुक मौके पर वह भी धोखा दे गया.
तभी मोटाताजा सा एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘‘अपनेआप को हवाईजहाज का पायलट सम झता है क्या? और अब भागता है, चल इधर, उस आदमी को अस्पताल पहुंचा.’’
उस ने मु झे घसीटा, तो मैं मिमियाया, ‘‘भाई साहब, मेरा स्कूटर…’’ सामने ही एक स्कूटर मेकैनिक ने अपना दरबार फैला रखा था. वह दौड़ कर आया और स्कूटर को अपने कब्जे में लेते हुए बोला, ‘‘आप का स्कूटर मेरे पास है, शाम तक इसे बिलकुल चकाचक कर दूंगा.’’
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मैं विरोध करने की हालत में नहीं था और घिसटता हुआ घायल आदमी के पास चला गया. वह लगातार मरनेमारने की बात कर रहा था.
वह आदमी तभी थोड़ा शांत हुआ, जब मैं ने उस के इलाज का पूरा खर्चा उठाने का वादा किया. उस ने मु झे गालियां देना तो बंद कर दिया, मगर कराहना उस के बाद भी जारी रखा.
मैं परेशानी की हालत में उसे एक टैक्सी में लाद कर अस्पताल ले गया. वहां पर एक डाक्टर ने दूर से ही देख कर बता दिया कि उस के पैर की हड्डी चटक गई है, फिर वह मु झ से बोला, ‘‘आप काउंटर पर पैसा जमा करा दें, उस के बाद हम इलाज शुरू कर देते हैं.’’
‘‘आप इलाज शुरू कर दीजिए डाक्टर साहब. अभी तो जेब में पैसे नहीं हैं, थोड़ी देर बाद घर से मंगवा लेंगे,’’ मैं ने गुजारिश की.
डाक्टर बोला, ‘‘कोई बात नहीं, इलाज भी थोड़ी देर बाद हो जाएगा.’’
मैं उसे घूर कर रह गया और श्रीमतीजी को टैलीफोन करने के लिए वहीं रिसैप्शन की ओर बढ़ गया.
पूरी बात बता कर मैं ने श्रीमतीजी को घर में रखा सारा पैसा और इमर्जैंसी के लिए 2-4 गहने भी साथ ले कर फौरन अस्पताल पहुंचने के लिए कह दिया. वे फोन पर ही रोने लगी थीं, मगर मैं ने फोन काट दिया.
दफ्तर तो अब अगले 2-4 दिन भी जाने के आसार खत्म हो गए थे, इसलिए अगला फोन मैं ने दफ्तर में अपने बौस को किया और सारा हादसा उन्हें बता दिया.उन्होंने हमदर्दी जताने के बजाय मु झे फटकारा, ‘तुम ठीक समय पर हमेशा कुछ न कुछ गड़बड़ कर देते हो. स्कूटर ढंग से नहीं चला सकते थे क्या? अगर बड़े साहब तुम्हारी सीट से जुड़ी कोई जानकारी मांगने लगते, तो मैं किस का मुंह देखता.
‘कान खोल कर सुन लो, चाहे पूरे बदन पर पट्टियां बांध कर आना पड़े, मगर कल ठीक समय पर दफ्तर पहुंच जाना. बड़े साहब ने आज आने का प्रोग्राम रद्द कर दिया है. अब वह कल आएंगे,’ यह कह कर उन्होंने फोन काट दिया.
मेरी इच्छा हुई कि अपना बचाखुचा सूट भी फाड़ कर बराबर कर दूं. कुछ ही देर बाद श्रीमतीजी अस्पताल पहुंच गईं और मु झे टटोलटटोल कर रोने लगीं.
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उन्हें देख कर घायल हुए सज्जन अपना दर्द भूल कर मु झ से पूछ बैठे, ‘‘किसी की मौत हो गई है क्या?’’
‘‘नहीं, होतेहोते रह गई,’’ मैं ने उन्हें घूरते हुए कहा और श्रीमतीजी से रुपए ले कर पहले उन का ‘कर्जा’ चुकाया और उस के बाद इलाज का पैसा भी जमा करा दिया.
पहले मैं ने उन सज्जन की टांग पर प्लास्टर चढ़वाया और बाहर ले जा कर उन्हें एक आटोरिकशा पर बैठा दिया.
मु झे चलताफिरता देख श्रीमतीजी ने रोना बंद कर दिया था और सारा कुसूर मेरे सिर थोपते हुए कहने लगीं, ‘‘तुम्हें आज घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहिए था. मु झे तो पहले ही पता था कि पड़ोसी की छींक कोई साधारण छींक नहीं है. दफ्तर में बड़ा अफसर ही तो आ रहा था, कोई जल्लाद तो नहीं जो तुम्हें फांसी पर चढ़ा देता… और आज आया भी नहीं, क्यों नहीं आया वह?’’
‘‘अरे, मु झे क्या पता?’’ मैं ने हकलाते हुए कहा.
श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘किसीकिसी छींक का असर टोटके से भी नहीं टूटता या टूटने में कुछ ज्यादा ही समय ले लेता है. तुम्हें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी.’’
डाक्टर हमारी बातें बड़े गौर से सुन रहा था. वह अचानक हंसने लगा और हमें देख कर बोल उठा, ‘‘शक्लसूरत से तो आप पढ़ेलिखे लगते हैं.’’
‘‘जी हां,’’ मैं ने अकड़ कर कहा.
डाक्टर मजाक उड़ाते हुए बोला, ‘‘कमाल है, फिर भी आप भूल गए कि ‘छींक’ आना एक आम बात है, अच्छेबुरे से इस का कोई संबंध नहीं होता. हमारे आतेजाते पता नहीं कितने लोग छींकते हैं. पता नहीं, कितनी बिल्लियां रास्ता काट जाती हैं. अगर हम भी रुक कर टोटका करवाने लगें, तो यहां अस्पताल में इस बीच पता नहीं क्याक्या हो जाए.’’
‘लेकिन डाक्टर साहब, हमारी हालत तो आप देख ही रहे हैं,’ हम दोनों एकसाथ बोले.
‘‘स्कूटर चलाते समय जल्दबाजी करोगे, तो हालत इस से भी बुरी हो सकती थी. छींक के चक्कर में न उल झ कर ठीक समय पर घर से निकलते तो यह सब क्यों होता? आप को तो अपनी बीवी को सम झाना चाहिए था, मगर आप भी उन का ही साथ देने लगे…
‘‘अगर आप सम झते हैं कि आप के साथ यह सबकुछ छींक की वजह से हुआ है, तो उस बेचारे की टांग क्यों टूटी? आप का पड़ोसी उस के सामने तो छींकने नहीं गया था.’’
हम शर्मिंदा हो उठे. हमारी श्रीमतीजी सोच में डूबी दिखाई देने लगी थीं.
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मेरी मरहमपट्टी करने के बाद डाक्टर बोला, ‘‘अब आप जा सकते हैं. 3 दिन बाद पट्टियां बदलवाने आ जाना और हो सके तो अपने पड़ोसी को भी यहां ले आना, हम उस की छींक भी बंद कर देंगे,’’ इतना सुन कर झेंपी हुई मुसकान के साथ मैं अपनी श्रीमतीजी का हाथ पकड़े हुए अस्पताल से बाहर निकल गया.अभी हम अस्पताल से बाहर निकले ही थे कि एक आदमी ने सामने आ कर एक जोरदार छींक मारी. मैं ठिठक कर रुक गया, तभी श्रीमतीजी मु झे धकेलते हुए बोलीं, ‘‘अरे, छींक आना एक आम बात है, पढ़ेलिखे हो कर इतना भी नहीं जानते?’’मैं अपनी श्रीमतीजी के कंधे से कंधा मिला कर आगे की ओर बढ़ गया.