राशि हाथों का सामान संभालती हुई तेजी से बिल्डिंग के अंदर घुस कर लिफ्ट की तरफ बढ़ी. लिफ्ट का दरवाजा खुला था. जल्दी से अंदर प्रवेश कर चौथी मंजिल का बटन दबा दिया. अब उस ने ध्यान दिया तो उस के पड़ोसी तीसरी मंजिल पर रहने वाले रोनितजी तना हुआ चेहरा लिए खड़े थे. राशि ने हलके से मुसकराने की कोशिश की यह सोच कर कि अगर रोनितजी के चेहरे पर कुछ सहज भाव दिखे तो वह दुआसलाम कर सकती है पर रोनितजी का तना चेहरा तना ही रहा.
कैसेकैसे लोग होते हैं इस दुनिया में… मिनटों की बात घंटों, घंटों की बात दिनों, दिनों की बात महीनों और महीनों की सालों… यहां तक कि पूरी जिंदगी याद रखते हैं, राशि मन ही मन बड़बड़ाई. रोनित तीसरी मंजिल पर बाहर निकल गए. अपने फ्लैट पर जा कर राशि ने बैल बजाई.
‘‘बहुत देर कर दी… मोबाइल भी नहीं उठा रही थी… मुझे बहुत चिंता हो रही थी,’’ सुमित राशि को देखते ही बोला. ‘‘उफ, अंदर तो आने दो… कितनी गरमी है बाहर… सड़क के शोर में मोबाइल की आवाज सुनाई नहीं दी होगी,’’ कह वह अंदर आ गई. सुमित उस के लिए पानी ले आया. अक्तूबर का महीना खत्म होने को था पर गरमी अभी भी जारी थी. राशि ने पंखा चला दिया और सुस्ताने बैठ गई.
‘‘पता है, अभी लिफ्ट में रोनितजी मिल गए… लगता है इन लोगों का गुस्सा तो जिंदगीभर खत्म नहीं होगा… मनीषा भी पता नहीं आए दिन क्या कह कर भरमाती रहती है अपने पति को… बात खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है,’’ राशि कुछकुछ हताश सी बोली. ‘‘छोड़ो न उन को…’’ सुमित उसे शब्दों से दिलासा देते हुए बोला, ‘‘मैं तो पहले ही सोसाइटी के फ्लैट्स में आने के पक्ष में नहीं था… अपना इंडीपैंडैंट घर चाहता था… फ्लैट्स में न फर्श अपनी न छत… कुछ भी गड़बड़ होती है तो ऊपरनीचे वालों के साथ मुश्किल हो जाती है… पर तुम्हें ही शौक था फ्लैट लेने का कि वहां साथ हो जाता है… मिलजुल कर तीजत्योहार मन जाते हैं…’’ ‘‘गलत भी तो नहीं कहा था… और लोग तो ठीक ही हैं… पर अपने निकट पड़ोसी ही ऐसे निकलेंगे सोचा नहीं था.’’ राशि हंसमुख स्वभाव की खुशमिजाज महिला थी. छोटेछोटे 2 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. अनामिका अपार्टमैंट नामक इस बिल्डिंग में 1 साल पहले ही उन्होंने फ्लैट खरीदा था. 4 मंजिला इस बिल्डिंग में कुल मिला कर 16 फ्लैट्स थे.
उन की सोसाइटी की एक समिति बनी हुई थी, जिस में हर तीजत्योहार या नया साल आने पर परिवार को कुछ रुपए जमा करने पड़ते थे. मिलजुल कर त्योहार मनता, डिनर होता अच्छा लगता था. कभी कपल्स के प्रोग्राम होते तो कभी सिर्फ लेडीज के. तीज, करवाचौथ या वूमंस डे पर लेडीज मिल कर प्रोग्राम कर लेतीं. 16 परिवारों में 2-3 परिवारों को छोड़ कर बाकी सब परिवार समझदार व मिलजुल कर रहने वाले थे. अलगअलग एजग्रुप के होने के बावजूद कभी किसी के बीच कोई खास दिक्कत नहीं आई.
जब 1 साल पहले उन्होंने यह फ्लैट खरीदा था तो सामने के फ्लैट में रहने वाली शिवानी ने उसे आगाह किया था कि तुम्हारे नीचे के फ्लैट में रहने वाली मनीषा से जरा बच कर चलना, बहुत ही सैंसिटिव नेचर की है. जराजरा सी बात पर बुरा मान कर मुंह फुला कर बैठ जाती है… अब ऐसा भी कहीं होता है, सब के साथ रह कर तो थोड़ाबहुत हंसीमजाक चलता ही है… छोटीछोटी बातें तो होती रहती हैं. नजरअंदाज करना आना चाहिए… पर मनीषा का स्वभाव ही निराला है… कोई ऐसा नहीं है, जिस से उस की नाराजगी न हुई हो. राशि ने यह बात जब सुमित को बताई, तो वह ठठा कर हंस पड़ा था, ‘‘हो गई न तेरीमेरी उस की बात शुरू… टिपिकल औरतों वाली बात… इन सब चक्करों में ज्यादा मत उलझना… तुम्हारा लेखन कार्य बाधित होगा… बस हैलो सब से रखो. खिचड़ी किसी के साथ मत पकाओ…’’ धीरेधीरे राशि की सब से जानपहचान होने लगी. मनीषा से शुरू में तो उसे कोई परेशानी नहीं महसूस हुई. वैसे भी वह किसी के व्यक्तिगत जीवन से अधिक लेनादेना नहीं रखती थी.
इसलिए उस की अधिकतर लोगों से पट जाती थी. उस ने ध्यान दिया कि मनीषा, रजनी व संजना की आपस में खूब बनती थी. संजना राशि के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी और रजनी शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में यानी सारा कबाड़ मेरे आसपास ही इकट्ठा है. राशि मन ही मन हंसी. मनीषा, संजना व रजनी ये तीनों महिलाएं अपने असहयोगी स्वभाव के लिए पूरे अनामिका अपार्टमैंट में बदनाम थीं और जानेअनजाने उन के पति भी. राशि को अभी कुछ ही महीने हुए थे यहां आए हुए. एक दिन सुबह दूधवाले के घंटी बजाने पर उस ने दरवाजा खोला तो ठीक दरवाजे पर कुत्ते ने पौटी की हुई थी. सुबहसुबह पौटी देख कर दिमाग भन्ना गया. दूध ले कर वह अंदर चली गई. उस दिन सफाई वाली से मिन्नत कर के अलग से पैसे दे कर उस ने पौटी साफ करवा दी. लेकिन उस के बाद यह रोज ही होने लगा. एक दिन राशि ने तैश में आ कर सामने शिवानी के फ्लैट की घंटी बजा दी.
शिवानी बाहर आ गई. ‘‘शिवानी, यह कुत्ता किस ने पाल रखा है… रोज मेरे दरवाजे पर पौटी कर जाता है… मैं परेशान हो गई हूं.’’ जवाब में शिवानी के होंठों पर रहस्यमय मुसकराहट उभर आई. बोली, ‘‘मनीषा ने पाल रखा है… छोड़ देती है उसे सुबह बाहर… फिर यह नहीं देखती कि नीचे गया या ऊपर… आजकल ऊपर आने की आदत पड़ गई होगी… मैं भी परेशान हो गई थी इस बात से… कुछ बोलो तो बुरा मान जाती है…’’ कुछ सोच कर राशि नीचे उतरी और मनीषा के फ्लैट की घंटी दबा दी. दरवाजा खुलने तक वह अपने चेहरे पर शांत मुसकराहट ले आई थी. मनीषा ने दरवाजा खोला, तो राशि ने कहा, ‘‘हैलो मनीषा…’’ ‘‘अरे राशि तुम… आओआओ बैठो…’’ ‘‘नहीं इस समय मैं बैठने नहीं आई हूं… बस एक छोटी सी समस्या थी… दरअसल, तुम्हारा डौगी रोज ऊपर जा कर मेरे दरवाजे के सामने पौटी कर देता है… मुझे रोज सफाई करवानी पड़ती है… बहुत दिक्कत होती है… मैं सोच रही थी, अगर तुम उसे चेन से बांध कर सड़क पर ले जाओ तो मेरी परेशानी खत्म हो जाएगी और डौगी को भी अच्छी आदत पड़ जाएगी.’’ सुनते ही मनीषा का चेहरा गुस्से से तन गया, ‘‘राशि तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे तुम ने उसे खुद पौटी करते देखा हो… बिल्डिंग का गेट खुला रहता है हर वक्त. दरबान भी ध्यान नहीं रखता है… आसपास के अपार्टमैंट वाले भी अपनाअपना कुत्ता खुला छोड़ देते हैं सड़क पर… पता नहीं कौन आ कर जाता होगा.’’ मनीषा की ऊंची होती आवाज से राशि संकोच से गड़ गई कि आसपास के फ्लैट्स के दरवाजे न खुलने लग जाएं. ‘‘हो सकता है मनीषा,’’ कह कर वह बात खत्म कर लौट गई.
पर उस के बाद उस के दरवाजे पर कुत्ते की पौटी बंद हो गई. इस के बाद वह जब भी मनीषा से टकराई, मनीषा ने सीधे मुंह बात नहीं की. उस का व्यवहार देख कर राशि सोच में पड़ गई कि आखिर उस की गलती क्या है. शायद शिवानी सही कहती है. उस दिन राशि सुबह उठी तो फ्लश जाम हो गया. फ्लश से पानी नीचे नहीं जा पा रहा था और ऊपर के फ्लैट से फ्लश हो कर पानी नीचे न जा पाने के कारण नाली में भर कर उन के पौट से बाहर निकलने को हो रहा था.