’’ अमीना बेगम गुस्से में बोलीं. ‘‘नहीं अम्मी, आप को समझाने की कोशिश कर रहा हूं. जो भूल आप ने अनवर के साथ की है, उस भूल को मेरे साथ न दोहराएं. अम्मी, किसी मासूम की जिंदगी से खेलना अच्छा नहीं होता…’’ ‘‘वसीम, मैं तुम्हारी दूसरी शादी करूंगी.’’ ‘‘अगर दूसरी बीवी से भी लड़कियां पैदा हुईं, तब आप क्या करेंगी…?’’ ‘‘ऐसा नहीं होगा…’’ अमीना बेगम ने जोर दे कर कहा. ‘‘लेकिन, मुझे आप की बात मंजूर नहीं है,’’ कहते हुए वसीम आगे बढ़ा.
‘‘वसीम, एक बात कान खोल कर सुन लो, तुम ने आज तक अपनी जिद की है. इस बार भी तुम जिद कर रहे हो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखूंगी.’’ ‘‘अम्मी, आप समझती क्यों नहीं? शमीम बहुत ही नेक औरत है.’’ ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब ‘हां’ या ‘न’ में चाहिए.’’ ‘‘मुझे दूसरी शादी नहीं करनी,’’ वसीम ने दोटूक जवाब दिया. ‘‘ठीक है, आज के बाद तुम मुझ से कभी भी मिलने की कोशिश मत करना,’’ इतना कह कर अमीना बेगम तेज कदमों से आगे बढ़ गईं. वसीम ने एक गहरी सांस ली और वार्ड में चला गया. सामने ही शमीम लेटी हुई थी. सफेद कपड़ों में उस का पीला चेहरा बुरी तरह मुरझाया हुआ था. आंखों से आंसू बह रहे थे.
शमीम को रोते देख कर वसीम उस के ही बैड पर बैठ गया और उंगली से उस के आंसू पोंछते हुए बोला. ‘‘शमीम, तुम रो रही हो. लगता है, तुम ने मेरी और अम्मी की बातें सुन ली हैं.’’ ‘‘ठीक ही तो कहती हैं अम्मी. उन्हें पोता चाहिए. आप दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?’’ ‘‘शमीम, क्या हमारे मुहब्बत की डोर इतनी नाजुक है कि एक हलका सा झटका उसे तोड़ दे.’’ ‘‘लेकिन, हम अम्मी को तो नाराज नहीं कर सकते…’’ ‘‘तुम इस बारे में जरा भी मत सोचो, तुम्हें आराम की जरूरत है,’’ वसीम ने शमीम की बगल में सो रही बच्ची को प्यार किया और वहीं पर रखी एक कुरसी पर गुमसुम सा बैठ गया. अमीना बेगम के 2 बेटे थे, वसीम और अनवर. उन के शौहर कई साल पहले गुजर गए थे.
उन्होंने मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे अपने बच्चों की परवरिश की थी. वसीम अनवर से 2 साल बड़ा था. अनवर की शादी हुए 8 साल बीत गए थे और उस के 4 लड़के थे. वह केवल इंटर तक पढ़ पाया था. अम्मी की जिद पर उस ने जल्दी ही शादी कर ली थी. उस के कंधों पर परिवार का बोझ आ गया, तो वह नौकरी खोजने लगा. नौकरी न मिलने पर वह बसस्टैंड पर फल बेचने का धंधा करने लगा. धीरेधीरे परिवार बड़ा होने लगा. अनवर की आमदनी कम थी और परिवार की जरूरतें ज्यादा. इसी वजह से न तो वह सुख में था और न ही उस का परिवार. वह अंदर ही अंदर घुटता रहता था. वसीम अनवर से बड़ा था, लेकिन उस ने शादी अनवर के बाद में की थी. वैसे, उस की अम्मी ने उस के लिए ऊंचे रिश्ते की पेशकश की थी, मगर उस ने साफ कह दिया था कि वह तब तक शादी नहीं करेगा, जब तक कि अपने पैरों पर खड़ा न हो जाए. कठिनाइयों से जूझते हुए अपनी मेहनत के बल पर वसीम ने एम. कौम पास किया.
एक बैंक में क्लर्क हो गया. इस के बाद उस ने अपनी अम्मी की इच्छा से एक साधारण परिवार की लड़की शमीम से शादी कर ली. वसीम का पारिवारिक जीवन सुखी था और उस की अम्मी उस के साथ ही रहती थीं. अगर उस के जीवन में कोई अभाव था, तो वह संतान का न होना था. शादी हुए 4 साल बीत गए थे, मगर संतान के बिना उस का घर सूना पड़ा था. उस दिन उस नवजात बच्ची ने इस कमी को दूर कर दिया था. वसीम ने एक गहरी सांस ले कर शमीम की ओर देखा, जो उस की ओर ही देखतेदेखते सो गई थी. वसीम कुरसी से उठा और पिछली खिड़की खोल कर बाहर देखने लगा. दूर पेड़ों की ओट में सूरज डूब रहा था. कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद शमीम अपने घर वापस आ गई. वसीम ने अपनी बेटी का नाम नीलोफर रखा था. शमीम उसे प्यार से ‘नीलो’ कहती थी. वह दोनों अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे. समय का पंछी पंख फड़फड़ाया, मौसम बदले, साल दर साल गुजरते चले गए.
नीलो बहुत ही सुंदर और पढ़नेलिखने में होशियार थी. उस दिन नीट का नतीजा निकलना था. वह सुबह से ही रिजल्ट देखने चली गई थी. शमीम अपने छोटे से घर के ड्राइंगरूम में बैठी हुई एक पत्रिका पढ़ रही थी. वह बड़ी बेकरारी से अपनी बेटी के आने का इंतजार कर रही थी, तभी शहद की तरह मीठी आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘अम्मी…’’ शमीम ने देखा, हाथ में खूबसूरत सा फूलों का गुलदस्ता उठाए नीलो दौड़ती हुई उस की ओर आ रही थी, ‘‘अम्मी देखो… मैं ने नीट की परीक्षा में पहले 25 में जगह पाई है.’’ ‘‘मेरी बेटी… मेरी लाल,’’ शमीम ने आगे बढ़ कर नीलो को गले लगा लिया, ‘‘मुझे पूरा भरोसा था कि मेरी बेटी अपने अब्बा का नाम जरूर रोशन करेगी.’’ ‘‘और एक दिन डाक्टर भी बनूंगी… क्यों अम्मी?’’ नीलो मुसकराई. ‘‘हां… हमारी बेटी हमारा यह सपना जरूर पूरा करेगी.’’ ‘‘अम्मी, अब्बा कहां हैं…?’’ ‘‘मैं यहां हूं बेटी. मुझे मालूम था कि हमारी बेटी जरूर नीट क्लियर कर पाएगी. देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या इनाम लाया हूं,’’ वसीम मुसकराता हुआ घर के अंदर आया. ‘‘अब्बा,’’ नीलो वसीम की ओर दौड़ पड़ी, ‘‘आप मेरे लिए क्या लाए हैं?’’ ‘‘यह आईफोन… यही इनाम तो मांगा था तुम ने,’’ वसीम ने नीलो को फोन पकड़ा दिया. नीलो खुशी से उछलती घर में इधरउधर दौड़ने लगी.
शमीम और वसीम उस दिन बहुत खुश थे, तभी वसीम को अचानक कुछ ध्यान आया और बोला, ‘‘शमीम, जानती हो इस बार भी अम्मी ने मनीऔर्डर नहीं लिया.’’ ‘‘क्यों नहीं किसी दिन समय निकाल कर आप खुद उन से मिल आते?’’ ‘‘सोचा मैं ने भी यही था, लेकिन जब से मुझे प्रमोशन दे कर जोधपुर भेजा गया है, तब से अपने पुराने शहर में जाने का मौका ही नहीं मिला. न अम्मा ने बुलाया और न उन्होंने अनवर को मुझ से मिलने दिया.’’ वसीम फिर भी मनीऔर्डर से पैसे भेजता था, जो अकसर वापस आ जाते थे. कुछ के बारे में पता नहीं चलता था. एक शहर से दूसरे शहर में घूमते हुए वसीम 20 साल बाद फिर उसी अपने शहर में वापस आ गया था. उस के आने की खबर सुन कर उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मिलने आए, लेकिन उस की अम्मी नहीं आईं. वसीम और शमीम उन से मिलने भी गए, लेकिन उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया. वसीम का छोटा भाई अनवर उस से जरूर मिला. अपने भाई की हालत देख कर वसीम का दिल कचोटने लगा था.
बड़े परिवार की जिम्मेदारियों और परेशानियों ने उसे वक्त से पहले ही बूढ़ा कर दिया था. अनवर के 4 बेटे थे, लेकिन कोई भी किसी रोजगार में नहीं लग सका था. बड़े परिवार की उलझनों के चलते वह अपने बच्चों को पूरा समय भी न दे पाता था. यही वजह थी कि उस के 2 बेटे आवारा हो गए थे. एक बेटा फलों का कारोबार संभालता था, उस से छोटा कपड़ों की सिलाई का काम करता था. परिवार काफी बड़ा था. इसी वजह से अनवर की माली हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी. अपने भाई की हालत देख कर वसीम ने उस की कुछ मदद भी कर दी थी. मगर वह बात उस की अम्मी अमीना बेगम को नहीं मालूम थी. तभी कार के रुकने की आवाज सुन कर शमीम खुशी से उछल पड़ी. पुरानी यादों का सिलसिला एकाएक टूट गया था. वह बैठक से बाहर आई, तो नीलो दौड़ कर उस के सीने से लग गई, ‘‘अम्मी… देखो, आप की बेटी ने आप का सपना पूरा कर दिया. मैं डाक्टर बन गई हूं.’’
‘‘हां बेटी… हां…’’ बेशुमार खुशी के चलते शमीम की आंखें भर आईं. सभी बैठक की ओर बढ़ गए. नीलो हंसहंस कर अपने कालेज की बातें सुनाने लगी. अगले दिन रविवार था. तड़के सुबह किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई, तो वसीम को नींद खुल गई. वह अपने बिस्तर से नीचे उतरे. उस से पहले ही रसोईघर से निकल कर नीलोफर ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर एक अनजान और बूढ़ी औरत को देख कर नीलोफर चौंक गई और बोली, ‘‘आ… आप, किस से मिलना है आप को?’’ ‘‘मुझे वसीम से मिलना है बेटी.’’ ‘‘लेकिन, अब्बा तो अभी सो कर नहीं उठे हैं. आप थोड़ी देर बाद आ जाइए.’’ ‘‘मगर, मेरा उन से मिलना बहुत जरूरी?है.’’ ‘‘नीलो बेटी, कौन?है…?’’ तभी वसीम वहां पहुंच गए. जैसे ही उन की नजर उस बूढ़ी औरत पर पड़ी, वे चौंक गए. वसीम ने लपक कर उस औरत को अपने हाथों का सहारा दिया, ‘‘अम्मी… आप?’’ ‘‘मैं तुम्हारे पास एक जरूरी काम से आई हूं बेटे…’’ अमीना बेगम कमजोरी से कंपकंपा रही थीं. ‘‘नीलो… ये तुम्हारी दादीजान हैं.’’ ‘‘ओह, मेरी प्यारी दादीजान,’’ नीलोफर आगे बढ़ कर दादी के सीने से लग गई. ‘‘मेरी बच्ची… यह तो बहुत बड़ी हो गई है,’’
अमीना बेगम ने अचरज से नीलोफर की ओर देखा. ‘‘अम्मी, यह कल ही डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर के वापस लौटी है.’’ ‘‘तुम सच कह रहे हो?’’ अमीना बेगम को मानो इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था. ‘‘हां अम्मी, मैं ने आप से एक दिन कहा था न कि मेरी बेटी बड़ी हो कर मेरा नाम रोशन करेगी.’’ ‘‘तुम ने ठीक कहा था बेटे,’’ अचानक ही अमीना बेगम की आंखों से ढेर से आंसू निकल पड़े. आंसू पछतावे के थे या खुशी के, वसीम और नीलो समझ न सके. वसीम अपनी अम्मी को साथ ले कर बैठक में आए. एक कुरसी पर बैठते हुए अमीना बेगम बोलीं, ‘‘बेटा, अनवर तो शर्म से नहीं आया, मुझे भेज दिया. उस की तबीयत भी ठीक नहीं. कुछ देर पहले ही पुलिस अनवर के बड़े बेटे रजाक को पकड़ कर ले गई?है. उस पर इलजाम है…’’ अमीना पूरी बात कह न सकीं.