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‘जब उन का समय आएगा, देखा जाएगा,’ मां उस का विवाह संबंध पक्का हो जाने से इतनी प्रसन्न थीं कि उस के आगे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं.

जब मां ने अजित को देखा तो वह निहाल ही हो गईं, ‘कैसा सुंदरसजीला दूल्हा मिला है तुझे,’ वह ऋचा से बोलीं.

पर वर पक्ष की भारी मांग को देखते हुए ऋचा चाह कर भी खुश नहीं हो पा रही थी.

धीरेधीरे अजित घर के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. लगभग तीसरेचौथे दिन बैंक से लौटते समय वह आ जाता. तब अतिविशिष्ट व्यक्ति की भांति उस का स्वागत होता या फिर कभीकभी वे दोनों कहीं घूमने के लिए निकल जाते.

‘मुझे तो अपनेआप पर गर्व हो रहा है,’ उस दिन रेस्तरां में बैठते ही अजित, ऋचा से बोला.

‘रहने दीजिए, क्यों मुझे बना रहे हैं?’ ऋचा मुसकराई.

‘क्यों, तुम्हें विश्वास नहीं होता क्या? ऐसी रूपवती और गुणवती पत्नी बिरलों को ही मिलती है. मैं ने तो जब पहली बार तुम्हें देखा था तभी समझ गया था कि तुम मेरे लिए ही बनी हो,’ अजित अपनी ही रौ में बोलता गया.

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ऋचा बहुत कुछ कहना चाह रही थी, पर उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा था. जब अजित ने पहली ही नजर में समझ लिया था कि वह उस के लिए ही बनी है तो फिर वह मोलभाव किस लिए. कैसे दहेज की एकएक वस्तु की सूची बनाई गई थी. घर के छोटे से छोटे सदस्य के लिए कपड़ों की मांग की गई थी.

ऋचा के मस्तिष्क में विचारों का तूफान सा उठ रहा था. पर वह इधरउधर देखे बिना यंत्रवत काफी पिए जा रही थी.

तभी 2 लड़कियों ने रेस्तरां में प्रवेश किया. अजित को देखते ही दोनों ने मुसकरा कर अभिवादन किया और उस की मेज के पास आ कर खड़ी हो गईं.

‘यह ऋचा है, मेरी मंगेतर. और ऋचा, यह है उमा और यह राधिका. हमारी कालोनी में रहती हैं,’ अजित ने ऋचा से उन का परिचय कराया.

‘चलो, तुम ने तो मिलाया नहीं, आज हम ने खुद ही देख लिया अपनी होने वाली भाभी को,’ उमा बोली.

‘बैठो न, तुम दोनों खड़ी क्यों हो?’ अजित ने औपचारिकतावश आग्रह किया.

‘नहीं, हम तो उधर बैठेंगे दूसरी मेज पर. हम भला कबाब में हड्डी क्यों बनें?’

राधिका हंसी. फिर वे दोनों दूसरी मेज की ओर बढ़ गईं.

‘राधिका की मां, मेरी मां की बड़ी अच्छी सहेली हैं. वह उस का विवाह मुझ से करना चाहती थीं. यों उस में कोई बुराई नहीं है. स्वस्थ, सुंदर और पढ़ीलिखी है. अब तो किसी बैंक में काम भी करती है. पर मैं ने तो साफ कह दिया था कि मुझे चश्मे वाली पत्नी नहीं चाहिए,’ अजित बोला.

‘क्या कह रहे हैं आप? सिर्फ इतनी सी बात के लिए आप ने उस का प्रस्ताव ठुकरा दिया? यदि आप को चश्मा पसंद नहीं था तो वह कांटेक्ट लैंस लगवा सकती थीं,’ ऋचा हैरान स्वर में बोली.

‘बात तो एक ही है. चेहरे की तमाम खूबसूरती आंखों पर ही तो निर्भर करती है, पर तुम क्यों भावुक होती हो. मुझे तो तुम मिलनी थीं, फिर किसी और से मेरा विवाह कैसे होता?’ अजित ने ऋचा को आश्वस्त करना चाहा.

कुछ देर तो ऋचा स्तब्ध बैठी रही. फिर वह ऐसे बोली, मानो कोई निर्णय ले लिया हो, ‘आप से एक बात कहनी थी.’

‘कहो, तुम्हारी बात सुनने के लिए तो मैं तरस रहा हूं. पर तुम तो कुछ बोलती ही नहीं. मैं ही बोलता रहता हूं.’

‘पता नहीं, मांपिताजी ने आप को बताया है या नहीं, पर मैं आप को अंधेरे में नहीं रख सकती. मैं भी कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं,’ ऋचा बोली.

‘क्या?’

पर तभी बैरा बिल ले आया. अजित ने बिल चुकाया और दोनों रेस्तरां से बाहर निकल आए. कुछ देर दोनों इस तरह चुपचाप साथसाथ चलते रहे, मानो कहने को उन के पास कुछ बचा ही न हो.

‘मैं अब चलूंगी. घर से निकले बहुत देर हो चुकी है. मां इंतजार करती होंगी,’  वह घर की ओर रवाना हो गई.

कुछ दिन बाद-

‘क्या बात है, ऋचा? अजित कहीं बाहर गया है क्या? 3-4 दिन से आया ही नहीं,’ मां ने पूछा.

‘पता नहीं, मां. मुझ से तो कुछ कह नहीं रहे थे,’ ऋचा ने जवाब दिया.

‘बात क्या है, ऋचा? परसों तेरे पिताजी विवाह की तिथि पक्की करने गए थे तो वे लोग कहने लगे कि ऐसी जल्दी क्या है. आज फिर गए हैं.’

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‘इस में मैं क्या कर सकती हूं, मां. वह लड़के वाले हैं. आप लोग उन के नखरे उठाते हैं तो वे और भी ज्यादा नखरे दिखाएंगे ही,’ ऋचा बोली.

‘क्या? हम नखरे उठाते हैं लड़के वालों के? शर्म नहीं आती तुझे ऐसी बात कहते हुए?  कौन सा विवाह योग्य घरवर होगा जहां हम ने बात न चलाई हो. तब कहीं जा कर यहां बात बनी है. तुम टलो तो छोटी बहनों का नंबर आए मां की वर्षों से संचित कड़वाहट बहाना पाते ही बह निकली.

ऋचा स्तब्ध बैठी रह गई. अपने ही घर में क्या स्थिति थी उस की? मां के लिए वह एक ऐसा बोझ थी, जिसे वह टालना चाहती थी. अपना घर? सोचते हुए उस के होंठों पर कड़वाहट रेंग आई, ‘अपना घर तो विवाह के बाद बनेगा, जिस की दहलीज पार करने का मूल्य ही एकडेढ़ लाख रुपए है. कैसी विडंबना है, जहां जन्म लिया, पलीबढ़ी न तो यह घर अपना है, न ही जहां गृहस्थी बसेगी वह घर अपना है.’

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