लेखक-परशीश
रावण जलने में कुल 10 दिन ही बचे हैं. शफ्फू भाई के हाथ तेजी से चल रहे हैं कि कुंभकर्ण और मेघनाद की तरह रावण का पुतला भी बन कर तैयार हो जाए.
शफ्फू भाई ने कल ही कुंभकर्ण का पुतला बनाने का काम खत्म किया है. उस से कुछ दिन पहले मेघनाद का काम खत्म हुआ था, पर शफ्फू यह भी जानते थे कि रावण का पुतला तैयार करना आसान नहीं है क्योंकि पुतले की कदकाठी को उस के नाम के अनुरूप बनाना बड़ी मेहनत और जीवट का काम है. हर साल उसे बनाने में शफ्फू भाई को पसीने छूट जाते हैं.
मेले में आए हर देखने वाले की निगाह रावण के पुतले पर ही तो टिकी रहती है. कैसा बना है इस बार का रावण. उस के चेहरे में, आंखों में कैसा भाव लाया गया है…फिर वही मक्कारी झलकती है उस की आंखों में या ढीठ, जिद्दी नजर आता है.
इस तरह के हजारों भाव लोग रावण के चेहरे में ढूंढ़ते हैं. इसी से उस के मुंह को बनाते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है.
रावण एक, भाव अनेक…जैसा समाज वैसा रावण…शफ्फू भाई सोच रहे हैं कि होंठों को किस तरह का कोण दें, भौहों का तिरछापन कितना हो ताकि देखने वाले देखें और संतोष से कहें कि हां, ऐसा ही होना चाहिए था रावण का मुंह.
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तकरीबन 2 दशकों से रामपुर महल्ले के लोग रावण दहन का आयोजन कर रहे हैं. शुरुआत की छोटी भीड़ धीरेधीरे बड़ी भीड़ में बदल चुकी है. अब तो लोगों की भीड़ संभालने के लिए कई पुलिस वाले भी जमा रहते हैं.
रामपुर महल्ले के दशहरे को देखने के लिए लोग दूरदूर से आते हैं और महीनों तक चर्चा का प्रमुख विषय होता है शफ्फू भाई के हाथों से बनाया गया रावण का मुंह. जाने उस के मुंह में वह कौन सी विशेषता भर देते थे कि लोग देख कर हैरान रह जाते.
रावण के अंदर की मक्कारी को दिखाने में शफ्फू भाई का जवाब नहीं था इसीलिए हर साल रावण बनाने का जिम्मा शफ्फू भाई पर ही होता था. हर साल आयोजक आ कर हिदायत भी दे कर जाते कि रावण का पुतला तो सिर्फ तुम्हारे ही हाथ का बना होना चाहिए. अब तो रावण का पुतला बनाने में वह इतने सिद्धहस्त हो चुके हैं और इतना नाम हो चुका है कि पर्वों का मौसम शुरू हुआ नहीं कि उन का आतिशबाज दिमाग रावण निर्माण में लग जाता.
शफ्फू भाई शहर के बहुत बड़े आतिशबाज हैं. उन की आतिशबाजी देखते ही बनती है. रावण दहन के समय उस के पेट और दसों सिर से चमक के साथ जो धमाके होते हैं और उन के साथ जिस तरह की रंगीन रोशनियां निकलती हैं उन्हें देख कर भीड़ दांतों तले उंगली दबा लेती है.
वैसे तो शफ्फू भाई शादी, विवाह, ईद, दीवाली सब में अपनी आतिशबाजी का कमाल दिखाते हैं पर रावण की देह में पटाखों की जो कला वह ‘फिट’ करते हैं, उस का कोई जवाब नहीं होता. अपनी इस कला के बारे में वह हंस कर बस, इतना ही कहते हैं कि मैं तो कुछ नहीं जानता, बस, इन हाथों से जो कुछ बन पड़ता है कर देता हूं. लोगों को पसंद आता है तो मुझे भी खुशी होती है.
रावण दहन से शफ्फू भाई को खास लगाव सा था क्योंकि उन के पूर्वज कभी हिंदू रहे थे और वे रामलीला में बहुत बढ़चढ़ कर भाग लिया करते थे. शायद यही वजह रही हो कि सबकुछ छूटतेछूटते भी रावण दहन से उन का प्रेम बचा रह गया हो और उसी प्रेम के वशीभूत हो रावण के पुतले के निर्माण में लगे रहते हैं.
वही शफ्फू भाई अब रावण बनाना तो दूर रावण दहन हो इस के भी खिलाफ हो चले हैं, बिलकुल खिन्न…बिलकुल अनमने.
पर क्यों? उन का मन कुरेदकुरेद कर उन से पूछता, फिर समझाता, यह तो बुराई पर अच्छाई की जीत है. इस से आज के बिगड़ते समाज को सही दिशा मिलती है. अब तो ऐसी लीलाओं की समाज को और भी जरूरत है. कारण, समाज ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा पड़ा है. देश के बड़े नेता से ले कर पंडित, मुल्लामौलवी, यहां तक कि छोटेछोटे कर्मचारी भी भ्रष्टाचार के कुंभ में डुबकियां लगा रहे हैं. कुआरी मांएं बेखौफ घूम रही हैं. खुद ही खुद पर फिल्में बनवा रही हैं. जब तक डी.एन.ए. टेस्ट नहीं होता अवैध बच्चे का बाप राम बना खड़ा रहता है.
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समाज जो कुछ झेल रहा है उसे झेलना शफ्फू भाई जैसे लोगों के वश की बात नहीं है. राम के चरित्र को निभाने वाले पात्र अपने निजी जीवन में कई औरतों के साथ बलात्कार कर चुके हैं. वे रेप करने के तरीकों पर भी अनेक प्रयोग करते हैं. कभी ट्रेन में, कभी चलती कार में.
कई बार शफ्फू भाई का मन चीख- चीख कर कहता, नहीं, मैं रावण नहीं बनाना चाहता. मुझे बख्श दो मेरे भाई… मेरे रावण का मजाक मत उड़ाओ. मेरे रावण ने तो सीता को सिर्फ कैद कर रखा था. वह उस से नित्य विवाह प्रस्ताव करता था. प्रणय निवेदन भी करता था, मगर यह सब भी आग्रह के साथ करता था, कोई जोरजबरदस्ती नहीं. आज के राम तो रावण जैसे पात्र पर पलीता लगाने के बजाय खुद अपने पर ही पलीता लगा रहे हैं.
इस बार के रावण दहन के मुख्य अतिथि का नाम सुन कर शफ्फू भाई और भी जमीन में गड़ गए थे.
भोला बाबू अभी 2 माह पहले ही वार्ड का चुनाव जीत कर जनता के नए हमदर्द बने हैं. शफ्फू भाई के मुंह से अनायास ही बोल फूटे, कल का चोर आज का नेता है. अरे, इस के बारे में जो न जानता हो उस के लिए तो यह मजाक हो सकता है पर आश्चर्य तो यह है कि अतीत में जिनजिन को इस ने डंसा है वे भी अब इसे महान समाज सुधारक कहते नहीं थकते हैं.
यहां के लोग तो यह भी भूल चुके हैं कि यही भोला बाबू कुछ दिन पहले ही 2 समुदायों में झगड़ा करा कर खुद हाथ सेंक रहे थे. जाने कितने घरों को लूटा कि देखतेदेखते उस की छोटी सी झोंपड़ी विशाल बंगले में बदल गई.
शफ्फू भाई ने दंगों के दौरान ही भोला के असली चेहरे को देखा था और तभी वह समझ भी गए थे कि गुंडा और नेता दोनों की जात और धर्म एक होता है. उस सांप्रदायिक आग की लपटों में जलते शहर को बचाने के बजाय भोला ने सीता और सलमा दोनों को लूटा था. रात में खून की होली खेली थी. हर सुबह यही आदमी गिरगिट की तरह रंग बदल कर समाज सुधारक बना और सब की मदद करता था.
वह रावण दहन के लिए भी बड़ी मुश्किल से तैयार हुए हैं. वह भी इसीलिए कि रावण के माध्यम से भोला बाबू समाज को बताना चाहते हैं कि देखो, कितना दुष्ट था रावण. इसी के कारण सोने की लंका नष्ट हो गई. इस ने लात मार कर अपने छोटे भाई विभीषण का अनादर किया. सीता माता का अपहरण कर कैद कर लिया. अबलाएं कितनी असुरक्षित थीं उस के राज में. तभी तो राम को अपना बल प्रयोग करना पड़ा. आप सभी राम बन कर समाज में पनप रहे रावणों को जला कर खत्म कर दें…
शफ्फू भाई को लगता है कि भोला बाबू रावण से भी बड़े महारावणों की कतार में खड़े हैं. अगर कोई तौले तो रावण का सारा अपराध उन के कुकर्मों के आगे बहुत कम वजन का होगा.
शफ्फू भाई को गुस्सा आता है पर वह कर भी क्या सकते हैं? किसे मना करें कि रावण दहन मत करो, ऐसे कलयुगी रावण का दहन करो. पर जनता तो भेड़चाल चलती है. जो देखेगी बस, वही करती जाएगी. जिस हाथ से चाबुक की मार खाती है उसी हाथ को प्यार करती है.
शफ्फू भाई अब पूरे मनोयोग के साथ रावण का मुंह बना रहे हैं, यह सबकुछ सोचतेसोचते आधा मुंह बन कर तैयार हो गया था, पर जब पूरा हुआ तो वे चौंक उठे.
उन्हें लगा, अनजाने में यह तो भोला बाबू का चेहरा उतर गया है.
वह तो सिर्फ सोच रहे थे और मन ही मन भोला बाबू को कोस रहे थे. उन की आकृति बनाने का उन का कोई इरादा नहीं था. पर अब बन ही गया है तो क्या किया जाए. हां, यह हो सकता है कि इस बार रावण का मुंह यही रहने दिया जाए. इस तरह उन का अपना अपराध कम हो जाएगा. और भोला बाबू अनजाने में रावण का नहीं खुद का दहन कर देंगे. आगे की ऊंचनीच पर गौर करने के बाद कि कहीं आयोजक किसी मुसीबत में न फंस जाएं, शफ्फू भाई ने झब्बू मूंछ वाले भोला बाबू की इस मुखाकृति में बदलाव के लिए तीरनुमा मूंछ बना दी ताकि देखने वालों की आंखों को धोखा हो जाए. यही नहीं, आंखों को नीला कर दिया और दांतों को थोड़ा बाहर निकाल दिया जबकि पहले वे अंदर थे.
अब शफ्फू भाई ने ध्यान से देखा तो उन्हें ऐसा लगा कि यह चेहरा भोला का तो नहीं लगता पर इस में भी झलक किसी नाम वाले नेता की ही है.
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मक्कार कहीं का. रावण दहन का उद्घाटन करने आ रहे हैं. देश, राज्य, शहर, महल्ले, घरघर में रावणों की फौज खड़ी है. फिर बेचारे इस रावण का दहन कैसा और वह भी ऐसे हाथों से जिस के हाथ खुद खून से रंगे हों.
इस रावण ने तो एक ही सीता पर बुरी निगाह डाली थी. आज का रावण तो इतना गिर गया है कि महल्ले की हर बहूबेटी को रात के अंधेरे में लूट लेना चाहता है.
4 दिन बाद भोला बाबू रावण दहन का उद्घाटन कर रहे थे और रावण को देखते हुए मन ही मन सोच रहे थे कि रावण के रूप वाले इस चेहरे को उन्होंने कहीं देखा है पर कहां यह याद नहीं आ रहा था.
नेताओं को भी तो चेहरा तभी याद आता है जब वह किसी एक का हो. भीड़ का चेहरा किसे याद आता है और शफ्फू भाई ने इस बार ‘कामन’ शक्ल का रावण बनाया था. द्य