लेखक- प्रीतम सिंह
बचपन से ही अपनी आंखों में पेंटर बनने का सपना लिए नीतू अब जा कर उसे पूरा कर पाई है. जब वह स्कूल में थी, तब कौपियों के पीछे के पन्नों पर ड्राइंग किया करती थी, मगर अब एक मैगजीन में हिंदी कहानियों के चित्रांकन का काम करती है.
अपनी चेयर को आगे खिसका कर वह आराम से बैठी और बुझेमन से एक पत्र उठा कर पढ़ने लगी. वह जब भी चित्रांकन करती, उस से पहले कहानी को अच्छी तरह पढ़ती थी ताकि पात्रों में जान डाल सके.
2 कहानियों के पढ़ने में ही घड़ी ने एक बजा दिया. जब उस की नजर घड़ी पर पड़ी, तो वह थोड़ी परेशान हो गई.
वह सोचने लगी, अरे, लंच होने में सिर्फ एक घंटा ही बचा है और अभी तक 2 ही कहानियां पूरी हुई हैं. कैसे भी 3 तो पूरी कर ही लेगी. और वह फिर से अपने काम में लग गई.
लंच भी हो गया. उस ने 3 कहानियों का चित्रांकन कर दिया था. वह खाना खाती जा रही थी और सोचती जा रही थी कि बाकी दोनों भी 4 बजे तक पूरा कर देगी. साथ ही, उस के मन में यह डर था कि कहीं मैम पांचों स्कैच अभी न मांग लें.
खाना खा कर नीतू मैम को देखने उन के केबिन की ओर गई, परंतु उसे मैम न दिखीं.
रीता से पूछने पर पता चला कि मैम किसी जरूरी काम से अपने घर गई हैं.
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इतना सुनते ही उस की जान में जान आई. लंच समाप्त हो गया.
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