लेखिका- रेखा विनायक नाबर
भैया अमेरिका जाने वाले हैं, यह जान कर मैं फूला न समाया. भैया से भी ज्यादा खुशी मुझे हुई थी. जानते हो क्यों? अब मुझे उन के पुराने कपड़े, जूते नहीं पहनने पड़ेंगे. बस, यह सोच कर ही मैं बेहद खुश था. आज तक मैं हमेशा उन के पुराने कपड़े, जूते, यहां तक कि किताबें भी इस्तेमाल करता आया था. बस, एक दीवाली ही थी जब मुझे नए कपड़े मिलते थे. पुरानी चीजों का इस्तेमाल करकर के मैं ऊब गया था.
मां से मैं हमेशा शिकायत करता था, ‘मां, मैं क्या जिंदगीभर पुरानी चीजें इस्तेमाल करूं?’
‘बेटे, वह तुम से 2 साल ही तो बड़ा है. तुम बेटे भी न जल्दीजल्दी बड़े हो जाते हो. अभी उसे तो एक साल में कपड़े छोटे होते हैं. उसे नए सिलवा देती हूं. लेकिन ये कपड़े मैं अच्छे से धो कर रखती हूं, देखो न, बिलकुल नए जैसे दिखते हैं. तो क्या हर्ज है? जूतों का भी ऐसे ही है. अब किताबों का पूछोगे तो हर साल कहां सिलेबस बदलता है. उस की किताबें भी तुम्हारे काम आ जाती हैं. देखो बेटे, बाइंडिंग कर के अच्छा कवर लगा कर देती हूं तुम्हें. क्यों फुजूल खर्च करना. मेरा अच्छा बेटा. तेरे लिए भी नई चीजें लाएंगे,’ मां शहद में घुली मीठी जबान से सम?ाती थीं और मैं चुप हो जाता था.
मु?ो कभी भी नई चीजें नहीं मिलती थीं. स्कूल के पहले दिन दोस्तों की नईर् किताबें, यूनिफौर्म, उन की एक अलग गंध, इन सब से मैं प्रभावित होता था. साथ ही बहुत दुख होता था. क्या इस खुशी से मैं हमेशा के लिए वंचित रहूंगा? ऐसा सवाल मन में आता था. पुरानी किताबें इस्तेमाल कर के मैं इतना ऊब गया था कि 10वीं कक्षा पास होने के बाद मैं ने साइंस में ऐडमिशन लिया. भैया तब 12वीं कौमर्स में थे. 11वीं कक्षा में मु?ो पहली बार नई किताबें मिलीं. कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल में मु?ो चक्कर आने लगे. बदन पर धब्बे आने लगे. कुछ घर के उपाय करने के बाद पिताजी डाक्टर के पास ले गए.
‘अरे, इसे तो कैमिकल की एलर्जी है. कैमिस्ट्री नहीं होगी इस से.’
‘इस का मतलब यह साइंस नहीं पढ़ पाएगा?’
‘बिलकुल नहीं.’
डाक्टर के साथ इस बातचीत के बाद पिताजी सोच में पड़ गए. आर्ट्स का तो स्कोप नहीं. फिर क्या, मेरा भी ऐडमिशन कौमर्स में कराया गया, और फिर से उसी स्थिति में आ गया. भैया की वही पुरानी किताबें, गाइड्स. घर में सब से छोटा करने के लिए मैं मन ही मन मम्मीपापा को कोसता रहा. भैया ने बीकौम के बाद एमबीए किया और मैं सीए पूरा करने में जुट गया. सोचा, चलो पुरानी किताबों का ?ामेला तो खत्म हुआ. एमबीए पूरा होने के बाद भैया कैंपस इंटरव्यू में एक विख्यात मल्टीनैशल कंपनी में चुने गए. यही कंपनी उन्हें अमेरिका भेज रही थी. भैया भी जोरशोर से तैयारी में जुटे थे और मैं भी मदद कर रहा था. वे अमेरिका चले गए. समय के साथ मेरा भी सीए पूरा हुआ. इंटरव्यू कौल्स आने लगे.
‘‘मां, इंटरव्यू कौल्स आ रहे हैं, सोचता हूं कुछ नए कपड़े सिलवाऊं.’’
मां ने भैया की अलमारी खोल कर दिखाई, ‘‘देखो, भैया कितने सारे कपड़े छोड़ गया है. शायद तुम्हारे लिए ही हैं. नए ही दिख रहे हैं. सूट भी हैं. ऐसे लग रहे हैं जैसे अभीअभी खरीदे हैं. फिर भी तुम्हें लगता हो, तो लौंड्री में दे देना.’’
मां क्या कह रही हैं, मैं सम?ा गया. मैं पहले ही इंटरव्यू में पास हो गया. मां खुश हुईं और बोलीं, ‘‘देखो, भैया के कपड़े की वजह से पहले ही इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. वह बड़ा खुश होगा.’’ एक तो पुराने कपड़े पहन कर मैं ऊब गया था और मां जले पर नमक छिड़क रही थीं. क्या मेरी गुणवत्ता का कोई मोल नहीं? मां का भैया की ओर ?ाकाव मुझे दिल ही दिल में खाए जा रहा था. पहली सैलरी में कुछ अच्छे कपड़े खरीद कर मैं ने इस चक्रव्यूह को तोड़ा था. भैया के कपड़े मैं ने अलमारी में लौक कर डाले. मैं अपने लिए नईनई चीजें खरीदने लगा.
भैया अमेरिका में सैटल हो गए. अब उन्हें शादी के लिए उच्चशिक्षित, संपन्न रिश्ते आ रहे थे. भैया के कहेअनुसार हम लड़की देखने जा रहे थे. आखिरकार हम ने भैया के लिए 4 लड़कियां चुनीं. एक महीने बाद भैया इंडिया लौटे. सब लड़कियों से मिले और शर्मिला के साथ रिश्ता पक्का किया. शर्मिला ने बीकौम किया था, मांबाप की वह इकलौती लड़की थी. उस के पिता देशमुख का स्पेयरपार्ट का कारखाना था. शर्मिला सुंदर व सुशील थी.
‘‘क्यों पक्या, भाभी पसंद आई तुझे?’’ भैया ने पूछा.
‘‘क्यों नहीं, शर्मिला टैगोर भी मात खाएगी, इतनी सुंदर और शालीन मेरी भाभी हैं. ऐसी भाभी किस को अच्छी नहीं लगेंगी. जोड़ी तो खूब जंच रही है आप की.’’
जल्दी ही सगाई हुई और 3 हफ्ते बाद शादी की तारीख तय हुई. बाद में एक महीने बाद दोनों अमेरिका जाने वाले थे. यह सब भैया ने ही तय किया था. दोनों साथसाथ घूमने लगे थे. सब खुशी में मशगूल थे. दोनों ओर शादी की शौपिंग चल रही थी.
‘‘चल पक्या, मेरे साथ शौपिंग को. सूट लेना है मु?ो.’’
‘‘मैं? सूट तो आप को लेना है. तो भाभी को ले कर जाओ न.’’
‘‘भाभी? ओह शर्मिला, ये क्या पुराने लोगों जैसा भाभी बुलाते हो. शर्मिला बुलाओ, इतना अच्छा नाम है.’’
‘‘तो उन्हें बताइए मु?ो प्रकाश नाम से बुलाए.’’
‘‘ओफ्फो, तुम दोनों भी न…बताता हूं उसे, लेकिन हम दोनों आज शौपिंग करने जा रहे हैं. नो मोर डिस्कशन.’’
हम शौपिंग करने गए. उन्होंने मेरे लिए भी अपने जैसा सूट खरीदा. यह मेरे लिए सरप्राइज था. शादी के दिन पहनने की शेरवानी भी दोनों की एकजैसी थी.
‘‘भैया शादी तुम्हारी है. मेरे लिए इन सब की क्या जरूरत थी?’’
‘‘अरे तेरी भी तो जल्दी शादी होगी. उस वक्त जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए.’’
‘‘लगता है जेब गरम है आप की.’’
‘‘पूरी तैयारी के साथ आया हूं. शर्मिला के लिए अमेरिकन डायमंड का सैट भी ले कर आया हूं. मम्मीडैडी को भी शौपिंग करवाने वाला हूं. मेरे पुराने कपड़े तु?ो पहनने पड़ते थे. चल, आज तु?ो खुश कर देता हूं.’’
हमें कहां मालूम था कि यह खुशी दो पल की ही है. भैया के लिए मेरे मन में कृतज्ञता थी. कितने बड़े दिल के हैं भैया. उन्हें पूरा सहकार्य देने का मैं ने मन ही मन प्रण कर लिया. हम सब खुशी के 7वें आसमान पर थे, तब नियति हम पर हंस रही थी.
शादी का नजारा तो पूछो ही मत. शर्मिला सोलह सिंगार कर के मंडप में आई थी. सब की नजरें उस पर ही टिकी थीं. लड़की वालों ने शादी में किसी बात की कमी नहीं की. हम सब खुशी की लहर पर सवार थे.
ऐसे में बूआ ने मां को सलाह दी, ‘‘भाभी, प्रसाद के लिए शर्मिला तो ले आईं, अब प्रकाश के लिए उर्मिला ले आओ.’’ मैं ने तय किया अपनी पत्नी का नाम मैं उर्मिला ही रखूंगा, शर्मिला की मैचिंग. शादी की रस्में चल रही थीं. बीचबीच में दोनों की कानाफूसी चल रही थी. शर्मिला की मुसकराहट देख कर लग रहा था मानो दोनों मेड फौर ईच अदर हैं.’’ शर्मिला के आने से घर में एक अजीब सी सुगंध फैल गई. बहुत ही कम समय में वह सारे घर में घुलमिल गई. शादी के बाद सब रस्में पूरी कर नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए बेंगलुरु रवाना हुआ. वे दोनों एक हफ्ते बाद लौटने वाले थे. उस के 2 हफ्ते बाद वे अमेरिका जाने वाले थे. भैया ने ही यह सारा प्रोग्राम तय किया था.
‘‘देखो न, कितनी जल्दी दिल जीत लिया. 8 दिनों के लिए गईर् तो घर सूनासूना लग रहा है. हमेशा के लिए गई, तो क्या हाल होगा? मां ने फोन पर भैया को कहा?’’ मगर मां घर तो नहीं रख सकते हैं न,’’ भैया बोले. उस के बाद 2 दिन दोनों लगातार फोन पर संपर्क में थे. लेकिन फिर वह काला दिन आया. छुट्टी का दिन था, इसलिए मैं घर पर ही था. दोपहर 3 बजे मेरा मोबाइल बजा.
‘‘हैलो मैं…मैं…शर्मिला, प्रकाश, एक भयंकर घटना घटी है,’’ वह रोतेरोते बोल रही थी. घबराईर् लग रही थी. मैं भी सहम सा गया.
‘‘शर्मिला, शांत हो जाओ, रोना बंद करो. क्या हुआ, ठीक से बताओ. भैया कैसे हैं? आप कहां से बोल रही हो?’’
‘‘प्रसाद नहीं हैं.’’
वह सिसकसिसक कर रोने लगी. तनाव और डर से मैं अपना संयम खो बैठा और जोर से चिल्लाया.
‘‘नहीं हैं, मतलब? हुआ क्या है? प्लीज, जल्दी बताओ. मेरी टैंशन बढ़ती जा रही है. पहले रोना बंद करो.’’
अब तक कुछ विचित्र हुआ है, यह मांबाबूजी के ध्यान में आ गया था. वे भी हक्केबक्के रह गए थे.
‘‘प्रकाश, प्रसाद अमेरिका चले गए.’’
‘‘कुछ भी क्या बोल रही हो, आप को छोड़ कर कैसे गए? और आप ने जाने कैसे दिया? सब डिटेल में बताओ. कुछ तो सौल्यूशन निकालेंगे. हम सब तुम्हारे साथ हैं. चिंता मत करो. मगर हुआ क्या है यह तो बताओ. खुद को संभालो और बताओ, क्या हुआ?’’
वह धीरज के साथ बोली, ‘‘प्रसाद सुबह 10 बजे कोडाइकनाल की टिकटें निकालने के लिए बाहर गए. 2 दिन उधर रह कर मुंबई वापस आने का प्लान था. अगर उन्हें आने में देर हुई तो खाना खाने को कह गए थे. मैं ने 2 बजे तक उन का इंतजार किया. उन का मोबाइल स्विचऔफ है. खाना खाने का सोच ही रही थी तो रूमबौय एक लिफाफा ले कर आया. मुझे लगा बिल होगा. खोल कर देखा तो ‘मैं अमेरिका जा रहा हूं’ ऐसा चिट्ठी में लिखा था और प्रसाद ने नीचे साइन किया था. मेरे ऊपर मानो आसमान टूट पड़ा. बेहोश ही होना बाकी था. जैसेतैसे हिम्मत जुटाई. बाद में देखा तो मेरे गहने भी नहीं थे जो रात को मैं ने अलमारी में रखे थे. मेरे पास पैसे भी नहीं हैं. मैं बहुत असहाय हूं. क्या करूं मैं अब पिताजी को भी नहीं बताया है.’’
वह फिर से रोने लगी. मैं भी अंदर से पूरा हिल गया. खुद को संभाल कर उसे धीरज देना आवश्यक था. ‘‘आप ने अपने पिताजी को नहीं बताया, यह अच्छा किया. शर्मिला, रोओ मत. आप अकेली नहीं हो. आप के पिताजी को कैसे बताना है, यह मैं देखता हूं. बहुत कठिन परिस्थिति है, लेकिन कोई न कोईर् हल जरूर निकालेंगे. आप होटल में ही रुको. कुछ खा लो. मैं सब से बात कर के उधर आप को लेने आता हूं. आज रात नहीं तो सुबह तक हम लोग पहुंच जाएंगे. फोन रखता हूं.’’
मां-बाबूजी को सारी कहानी सुनाई. बाबूजी बहुत शर्मिंदा थे. मां तो फूटफूट कर रोने लगीं.