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औफिस में अनन्या अपने सहकर्मियों के साथ जल्दीजल्दी लंच कर रही थी. लंच के फौरन बाद उस का एक महत्त्वपूर्ण प्रेजैंटेशन था, जिस के लिए वह काफी उत्साहित थी. इस मीटिंग की तैयारी वह 1 हफ्ते से कर रही थी. उस की अच्छी फ्रैंड सनाया ने टोका, ‘‘खाना तो कम से कम आराम से खा लो, अनन्या. काम तो होता रहेगा.’’

‘‘हां, जानती हूं, पर इस प्रेजैंटेशन के लिए बहुत मेहनत की है, राहुल का स्कूल उस का होमवर्क, उस का खानापीना सुमित ही देख रहा है आजकल.’’ ‘‘सच में, तुम्हें बहुत अच्छा पति मिला है.’’

‘‘हां, उस की सपोर्ट के बिना मैं कुछ कर ही नहीं सकती.’’ लंच कर के अनन्या एक बार फिर अपने काम में डूब गई. पवई की इस अत्याधुनिक बिल्डिंग के अपने औफिस के हर व्यक्ति की प्रशंसा की पात्र थी अनन्या. सब उस के गुणों की, मेहनत की तारीफ करते नहीं थकते थे. आधुनिक, स्मार्ट, सुंदर, मेहनती, प्रतिभाशाली अनन्या

10 साल पहले सुमित से विवाह कर दिल्ली से यहां मुंबई आई थी और पवई में ही अपने फ्लैट में अनन्या, सुमित और उन का बेटे राहुल का छोटा सा परिवार खुशहाल जीवन जी रहा था. अनन्या ने अपने काम से संतुष्ट हो कर घड़ी पर एक नजर डाली. तभी व्हाट्सऐप पर सुमित का मैसेज आया, ‘‘औल दि बैस्ट’, साथ ही किस की इमोजी. अनन्या को अच्छा लगा, मुसकराते हुए जवाब भेजा. अचानक उस के फोन की स्क्रीन पर मेघा का नाम चमका तो उस ने हैरान होते हुए फोन उठा लिया. मेघा उस की कालेज की घनिष्ठ सहेली थी. वह इस समय दिल्ली में थी.

मेघा ने कुछ परेशान सी आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘अनन्या, तुम औफिस में हो?’’ ‘‘अरे, क्या हुआ? न हाय, न हैलो, सीधे सवाल तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं अनन्या, पर बड़ी गड़बड़ हो गई.’’

‘‘क्या हुआ? कुछ बताएगी भी.’’ ‘‘मार्केट में राघव की आत्मकथा ‘‘बैलेंसशीट औफ लाइफ’’ आई है न. उस ने तेरा और अपना पूरा किस्सा इस में लिख दिया है.’’

‘‘क्या?’’ तेज झटका लगा अनन्या को.

‘‘हां, मैं ने अभी पढ़ी नहीं है पर मेरे पति संजीव को बुक पढ़ कर किसी ने बताया कि किसी अनन्या की कहानी लिख कर तो इस ने शायद उस की लाइफ में तूफान ला दिया होगा. संजीव समझ गए कि शायद यह अनन्या तुम ही हो, आज शायद संजीव यह बुक लाएंगे तो पढ़ूंगी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया सुन कर. सुमित जानता है न उस के बारे में?’’

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‘‘हां, जानता तो है कि मैं और राघव एकदूसरे को पसंद करते थे और हमारा विवाह उस के महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के चलते हो नहीं पाया और उस ने धनदौलत के लिए किसी बड़े बिजनैसमैन की बेटी से विवाह कर लिया था और आज वह भी देश का जानामाना नाम है.’’ मेघा ने अटकते हुए संकोचपूर्वक कहा, ‘‘अनन्या, सुना है तुम्हारे और उस के बीच होने वाले सैक्स की बात उस ने…’’

अनन्या एक शब्द नहीं बोल पाई, आंखें अचानक आंसुओं से भरती चली गईं. अपमान के घूंट चुपचाप पीते हुए, ‘‘बाद में फोन करती हूं.’’ कह कर फोन रख दिया.

मेघा ने उसी समय मैसेज भेजा, ‘‘प्लीज डौंट बी सैड, फ्री होते ही फोन करना.’’ कुछ पल बाद सनाया ने आ कर उसे झंझोड़ा तो जैसे वह होश में आई, ‘‘क्या हुआ अनन्या? एसी में भी इतना पसीना.. तेरी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हांहां, बस ऐसे ही.’’ ‘‘टैंशन में हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं,’’ अनन्या फीकी सी हंसी हंस दी. यों ही कह दिया, ‘‘प्रेजैंटेशन के बारे में सोच रही थी.’’ ‘‘कोई और बात है जानती हूं, तू इतनी कौन्फिडैंट है, प्रेजैंटेशन के बारे में सोच कर माथे पर इतना पसीना नहीं आएगा. नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं. ले, पानी पी और चल.’’

अनन्या ने उस दिन कैसे अपना प्रेजैंटेशन दिया, वही जानती थी. अतीत की परछाईं से उस ने स्वयं को बड़ी मुश्किल से निकाला था. मन अतीत में पीछे ले जाता रहा था और दिमाग वर्तमान पर ध्यान देने के लिए आगे धकेलता रहा था. तभी वह सफल हो पाई थी. उस के सीनियर्स ने उस की तारीफ कर उस का मनोबल बढ़ाया था. ‘‘तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही,’’ कह कर वह घर के लिए जल्दी निकल गई. राहुल स्कूल से डे केयर में चला जाता था. सुमित आजकल उसे लेता हुआ ही घर आता था, वह चुपचाप घर जा कर बैड पर पड़ गई.

राघव उस का पहला प्यार था. कौलेज में वह उस के प्यार में ऐसे मगन हुई कि यही मान लिया कि जीवन भर का साथ है. राघव एक छोटे से कसबे से दिल्ली में किराए का कमरा ले कर पढ़ता था. राघव के बहुत बार आग्रह करने पर वह एक ही बार उस के कमरे पर गई थी. वहीं भावनाओं में बह कर अनन्या ने पूर्ण समर्पण कर दिया था. आगे विवाह से पहले कभी ऐसा न हो, यह सोच कर फिर कभी उस के कमरे पर नहीं गई थी. पर दिल्ली के मशहूर धनी बिजनैसमैन की बेटी गीता से दोस्ती होने पर राघव को गीता के साथ ही भविष्य सुरक्षित लगा तो कई बहानों से दूरियां बनाते हुए राघव अनन्या से दूर होता चला गया.

अनन्या भी राघव में आए परिवर्तन को भलीभांति भांप गई थी. उस ने पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई, कैरियर पर लगा दिया था और अपने प्यार को कई परतों में दिल में दबा कर यह जख्म समय के ऊपर ही भरने के लिए छोड़ दिया था. कुछ समय बाद मातापिता की पसंद सुमित से विवाह कर मुंबई चली आई और सुमित व राहुल को पा बहुत संतुष्ट व सुखी थी पर आजकल जो आत्मकथा लिखने का फैशन बढ़ता जा रहा है, उस की चपेट में कहीं उस का वर्तमान न आ जाए, यह फांस अनन्या के गले में ऐसे चुभ रही थी कि उसे एक पल भी चैन नहीं आ रहा था. जिस प्यार के एहसास की खुशबू को अपने दिल में ही दबा उस की स्मृति से लंबे समय तक सुवासित हुई थी, आज जैसे उस एहसास से दुर्गंध आ रही थी.

अपनी सफलता, प्रसिद्धि के नशे में चूर राघव ने अपनी आत्मकथा में उस का प्रसंग लिख उस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. कहीं ससुराल वाले, मायके और राहुल बड़ा हो कर यह सब जान न ले. कितने ही अपने, दोस्त, परिचत, रिश्तेदार उस के चरित्र पर दाग लगाने के लिए खड़े हो जाएंगे. औफिस में जिन लोगों की नजरों में आज अपने लिए इतना स्नेह और सम्मान दिखता है, उस का क्या होगा? राघव ने यह क्यों नहीं सोचा? अपने लालच, फरेब, महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में लिख कर अपनी चालबाजियां दुनिया के सामने रखता, एक लड़की जो अब कहीं शांति से अपने परिवार के साथ जी रही है, उस के शांत जीवन में कंकड़ मार कर उथलपुथल मचाने का क्या औचित्य है?

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अनन्या के मन में क्रोध, अपमान की इतनी तेज भड़ास थी कि उस ने मेघा को फोन मिलाया. मेघा ने फोन उठाते ही प्यार से कहा, ‘‘अनन्या, तू बिलकुल परेशान मत होना, पढ़ कर तुझे बताऊंगी क्या लिखा है उस ने.’’

‘‘नहीं, रहने दे मैं कल औफिस जाते हुए खरीद लूंगी, अगर बुक स्टोर में दिख गई तो. पढ़ लूं फिर बताऊंगी उसे, छोड़ूगी नहीं उसे.’’ दोनों ने कुछ देर बातें करने के बाद फोन रख दिया.

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