कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुबह के 6 बजे थे. रोज की तरह सोमा की आंखें खुल गई थीं.  अपनी बगल में अस्तव्यस्त हौल में लेटे महेंद्र को देख वह शरमा उठी थी. वह उठने के लिए कसमसाई, तो महेंद्र ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था.

‘‘उठने भी दो, काम पर जाने में देर  हो जाएगी.’’

‘‘आज काम से छुट्टी, हम लोग आज अपना हनीमून मनाएंगे.’’

‘‘वाहवाह, क्या कहने?’’

पुरानी कड़वी बातें याद कर के वह गंभीर हो उठी, बोली, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ कि अपुन लोगों को शहर की इस कालोनी में मकान मिल गया है. यहां किसी को किसी की जाति से मतलब नहीं है.’’

‘‘सही कह रही हो. जाने कब समाज से ऊंचनीच का भेदभाव समाप्त होगा? लोगों को क्यों नहीं सम?ा में आता कि सभी इंसान एकसमान हैं.’’ महेंद्र बोला था.

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन अब उठने भी दो.’’

‘‘आज हमारे नए जीवन का पहलापहला दिन है. यह क्षण फिर से तो लौट कर नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारी बांहों में बांहें डाल कर मस्ती करूंगा. इस पल के लिए तुम ने मु?ो बहुत लंबा इंतजार करवाया है. आज ‘जग्गा जासूस’ पिक्चर देखेंगे. बलदेव की चाट खाएंगे. राजाराम की शिकंजी पिएंगे. तुम जहां कहोगी वहां जाऊंगा, जो कहोगी वह करूंगा. आज मैं बहुतबहुत खुश हूं.’’

‘‘ओह हो, केवल बातों से पेट नहीं भरने वाला है. पहले जाओ, दूध और डबल रोटी ले कर आओ.’’

‘‘मेरी रानी, दूध के साथसाथ, आज तो जलेबी और कचौड़ी भी ले कर आऊंगा.’’ यह कह कर वह सामान लेने चला गया.

वह उठ कर रोज की तरह ?ाड़ूबुहारू और बरतन आदि काम निबटाने लगी थी. लेकिन आज उस की आंखों के सामने बीते हुए दिन नाच उठे थे. अभी वह 25 वर्ष की होगी, परंतु अपनी इन आंखों से कितना कुछ देख लिया था.

अम्मा स्कूल में आया थीं. इसलिए उसे मन ही मन टीचर बनाने का सपना देखती रहती थीं. बाबू राजगीरी का काम करते थे. उन्हें पैसा अच्छा मिलता था. लेकिन पीने के शौक के कारण सब बरबाद कर लेते थे. वे 2 दिन काम पर जाते, तीसरे दिन घर पर छुट्टी मनाते. अपनी मित्रमंडली के साथ बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते और लंबीलंबी बातें करते.

ये भी पढ़ें- तुम सावित्री हो: क्या पत्नी को धोखा देकर खुश रह पाया विकास?

अम्मा जब भी कुछ बोलती तो गालीगलौज और मारपीट की नौबत  आ जाती.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में संभलपुर से थोड़ी दूर एक बस्ती थी जिसे आज की भाषा में चाल कह सकते हैं. लगभग

10-12 घर थे. सब की आपस में रिश्तेदारी थी. बच्चे आपस में किसी के भी घर में खापी लेते और सड़क पर खेल लेते. कोई काका था, कोई दादी तो कोई दीदी. आपस में लड़ाई भी जम कर होती, लेकिन फिर दोस्ती भी हो जाती थी.

वह छुटपन से ही स्कूल जाने से कतराती थी. वह लड़कों के संग गिल्लीडंडा और क्रिकेट खेलती. कभीकभी लंगड़ीटांग भी खेला करती थी.

अम्मा स्कूल से लौट कर आती तो सड़क पर उसे देखते ही चिल्लाती, ‘काहे लली, स्कूल जाने के समय तो तुम्हें बुखार चढ़ा था, अब सब बुखार हवा हो गया. बरतन मांजने को पड़े हैं. चल मेरे लिए चाय बना.

वह जोर से बोलती, ‘आई अम्मा.’ लेकिन अपने खेल में मगन रहती जब तक अम्मा पकड़ कर उसे घर के अंदर न ले जाती. वे उस का कान खींच कर कहतीं, ‘अरी कमबख्त, कभी तो किताब खोल लिया कर.’

अम्मा की डांट का उस पर कुछ असर न होता. इसी तरह खेलतेकूदते वह बड़ी हो रही थी. लेकिन हर साल पास होती हुई वह बीए में पहुंच गई थी. कालेज घर से दूर था, इसलिए बाबू ने उसे साइकिल दिलवा दी थी.

बचपन से ही उसे सजनेसंवरने का बहुत शौक था. अब तो वह जवान हो चुकी थी, इसलिए बनसंवर कर अपनी साइकिल पर हवा से बातें करती हुई कालेज जाती.

वहां उस की मुलाकात नरेन सिंह से हुई. वह उस की सुंदरता पर मरमिटा था. कैफेटेरिया की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उस की बाइक पर बैठ कर वह अपने को महारानी से कम न सम?ाती. 19-20 साल की कच्ची उम्र और इश्क का भूत. पूरे कालेज में उन के इश्क के चर्चे सब की जबान पर चढ़ गए थे. वह उस के संग कभी कंपनीबाग तो कभी मौल तो कभी कालेज के कोने में बैठ कर भविष्य के सपने बुनती.

एक दिन वे दोनों एकदूसरे को गलबहियां डाले हुए पिक्चरहौल से निकल रहे थे, तभी नरेन के चाचा बलवीर सिंह ने उन दोनों को देख लिया था. फिर तो उस दिन घर पर नरेन की शामत आ गई थी.

सोमा की जातिबिरादरी पता करते ही नरेन को उस से हमेशा के लिए दूर रहने की सख्त हिदायत मिल गई थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश जाटबहुल क्षेत्र है. वहां की खाप पंचायतें अपने फैसलों के लिए कुख्यात हैं. जाट लड़का किसी वाल्मीकि समाज की लड़की से प्यार की पेंग बढ़ाए, यह बात उन्हें कतई बरदाश्त नहीं थी.

वे लोग 15-20 गुडों को ले कर लाठीडंडे लहराते हुए आए. और शुरू कर दी गालीगलौज व तोड़फोड़.

वे लोग बाबू को मारने लगे, तो वह अंदर से दौड़ती हुई आई और चीखनेचिल्लाने लगी थी. एक गुंडा उस को देखते ही बोला, ऐसी खूबसूरत मेनका को देख नरेन का कौन कहे, किसी का भी मन मचल उठे.’

बाबू ने उसे धकेल कर अंदर जाने को कह दिया था. पासपड़ोस के लोगों ने किसी तरह उन लोगों को शांत करवाया, नहीं तो निश्चित ही उस दिन खूनखराबा होता.

पंचायत बैठी और फैसला दिया कि महीनेभर के अंदर सोमा की शादी कर दी जाए और 10 हजार रुपए जुर्माना.

उस का कालेज जाना बंद हो गया और आननफानन उस की शादी फजलपुर गांव के सूरज के साथ, जो कि स्कूल में मास्टर था, तय कर दी गई.

ये भी पढ़ें- रेप के बाद: अखिल ने मानसी के साथ क्या किया

उस के पास अपना पक्का मकान था. थोड़ी सी जमीन थी, जिस में सब्जी पैदा होती थी. अम्माबाबू ने खुशीखुशी यहांवहां से कर्ज ले कर उस की शादी कर दी.

बाइक, फ्रिज, टीवी, कपड़ेलत्ते, बरतनभांडे, दहेज में जाने क्याक्या दिया. आंखों में आंसू ले कर वह सूरज के साथ शादी के बंधन में बंध गई थी.

ससुराल का कच्चा खपरैल वाला घर देख उस के सपनों पर पानी फिर गया था. 10-15 दिन तक सूरज उस के इर्दगिर्द घूमता रहा था. वह दिनभर मोबाइल में वीडियो देखता रहता था. आसपास की औरतों से भौजीभौजी कह कर हंसीठिठोली करता या फिर आलसियों की तरह पड़ा सोता रहता.

रोज रात में दारू चढ़ा कर उस के पास आता. नशा करते देख उसे अपने बाबू याद आते. एक दिन उस ने उस से काम पर जाने को कहा. तो, नशे में उस के मुंह से सच फूट पड़ा. न तो वह बीए पास है और न ही सरकारी स्कूल में मास्टर है. यह सब तो शादी के लिए ?ाठ बोला गया था. वह रो पड़ी थी. फिर उस ने सूरज को सुधारने का प्रयास किया था. वह उसे सम?ाती, तो वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता.

आलसी तो वह हद दर्जे का था. पानमसाला हर समय उस के मुंह में भरा ही रहता.

जुआ खेलना, शराब पीना उस के शौक थे. यहांवहां हाथ मार कर चोरी करता और जुआ खेलता.

उस का भाई भी रात में दारू पी कर आता और गालीगलौज करता.

कुछ पैसे अम्मा ने दिए थे. कुछ उस के अपने थे. वह अपने बक्से में रखे हुए थी. सूरज उन पैसों को चुरा कर ले गया था. एक दिन उस ने अपनी पायल उतार कर साफ करने के लिए रखी थी. वह उस को यहांवहां घंटों ढूंढ़ती रही थी. लेकिन जब पायल हो, तब तो मिले. वह तो उस के जुए की भेंट चढ़ गई थी. यहां तक कि वह उस की शादी की सलमासितारे जड़ी हुई साड़ी ले गया और जुए में हार गया.

अस्तव्यस्त बक्से की हालत देख वह साड़ी के गायब होने के बारे में जान चुकी थी. वह खूब रोई. जा कर अम्माजी से कहा, तो वे बोली थीं, ‘साड़ी ही तो ले गया, तु?ो तो नहीं ले गया. मैं उसे डांट लगाऊंगी.’

उस की शादी को अभी साल भी नहीं पूरा हुआ था, लेकिन उस ने मन ही मन सूरज को छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया था. वह नशे में कई बार उस की पिटाई भी कर के उस के अहं को भी चोट पहुंचा चुका था.

वह बहुत दुखी थी, साथ ही, क्रोधित भी थी. सूरज नशा कर के देररात आया. आज कुछ ज्यादा ही नशे में था. बदबू के भभके से उस का जी मिचला उठा था. फिर उस के शरीर को अपनी संपत्ति सम?ाते हुए अपने पास उसे खींचने लगा. पहले तो उस ने धीरेधीरे मना किया, पर वह जब नहीं माना, तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया. वह संभल नहीं पाया और जमीन पर गिर गया. कोने में रखे संदूक का कोना उस के माथे पर चुभ गया और खून का फौआरा निकल पड़ा.

ये भी पढ़ें- मजबूरी: समीर को फर्ज निभाने का क्या परिणाम मिला?

फिर तो उस दिन आधीरात को जो हंगामा हुआ कि पौ फटते ही उसे उस के घर के लिए बस में बैठा कर भेज दिया गया.

बाबूअम्मा ने उसे देख अपना सिर पीट लिया था. अम्मा बारबार उसे ससुराल भेजने का जतन करती, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रही.

उसे अब किसी काम की तलाश थी क्योंकि अब वह अम्मा पर बो?ा बन कर घर में नहीं बैठना चाहती थी.

सब उसे सम?ाते, आदमी ने पिटाई की तो क्या हुआ? तुम ने क्यों उस पर हाथ उठाया आदि.

अम्मा ने अमिता बहनजी से उस की नौकरी के लिए कहा तो उन्होंने उसे अपने कारखाने में नौकरी पर रख लिया. अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. वहां शर्ट सिली जाती थी. उसे बटन लगा कर तह करना होता था. इस काम में कई औरतेंआदमी लगे हुए थे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...