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यदाकदा उस के मन में तूफान सा उठने लगता, वह अर्द्ध बीमार सी पत्नी पर गालियों की बौछार कर देता. कितनी सीधी और शांत औरत है. किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं. बस, एक मुसकान चिपकाए खाली सा चेहरा और उस की सुखसुविधाओं का ध्यान.

गृहस्थी की गाड़ी यों ही हिचकोले खाती चल रही थी. कभीकभी एक दुष्ट विचार उस के मन में गहरा जाता. काश, कोई अच्छी सी पत्नी आ सकती इस घर में. पर नई गृहस्थी बसाने की बात क्या सोची भी जा सकती है? वह नाना बन चुका है. नवासा 21 वर्ष का होने को आया. इंजीनियर बनने में कुल 2 साल ही तो शेष हैं. वही तो संभालेगा उस का फलताफूलता धंधा. रिश्ते के लिए अभी से लोग चक्कर लगाने लगे हैं. ऊपर की मंजिल उस के लिए तैयार कराई गई है, उस का एअरकंडीशंड बैडरूम और अनोखी साजसज्जा का ड्राइंगरूम. उस के लिए पत्नी के चुनाव के बारे में वह बहुत सजग है.

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नाश्ते की मेज पर बैठा वह पत्नी से वैभव के संबंध के बारे में सलाहमशवरा करना चाहता था लेकिन आज वह और भी पुरानी व बीमार दिखाई दे रही थी. उस की मेज की दराज में अनेक फोटो और पत्र वैभव के संबंध में आए पड़े हैं. लेकिन क्या इस फूहड़ स्त्री से ऐसे नाजुक प्रसंग को छेड़ा जा सकता है?

वह कुछ देर तक चुप बैठा ब्रैड के स्लाइस का टुकड़ा कुतरता रहा. मन ही मन अपनेआप पर झुंझलाता रहा. न जाने क्यों व्यर्थ का आवेश उस की आदत बन चुकी है. उस की दरिद्रता के दिनों की साथी, उस की सहायिका ही नहीं, अर्द्धांगिनी भी, न जाने क्यों आज उस के लिए बेमानी हो चुकी है? कभीकभी अपनी सोच पर वह बेहद शर्मिंदा भी होता.

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कमला को पति की भारी डाक देखने तक में कोई रुचि नहीं थी. नौकर गेट पर लगे लैटरबौक्स से डाक निकाल कर अपने साहब की मेज पर रख आता था. लेकिन आज नाश्ते के बाद बाहर टंगे झूले पर बैठी कमला ने पोस्टमैन से डाक ले कर झूले के हत्थे पर रख लिया.

2-3 मोटे लिफाफे झट से नीचे गिर पड़े. उस ने उन्हें उठाया तो उसे लगा लिफाफों में चिट्ठी के साथ फोटो भी हैं. सोचने लगी, किस के फोटो होंगे? उस ने उन्हें उलटापलटा, तो कम चिपका एक लिफाफा यों ही खुल गया. एक कमसिन सी लड़की की फोटो उस में से झांक रही थी. उस ने पत्र पढ़ा. वैभव के रिश्ते की बात लिखी थी. तो यह बात है, चुपचाप बहू लाने की योजना चल रही है. और उसे कानोंकान खबर तक नहीं.

क्या हूं मैं, केवल एक धाय मात्र? उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. सदा से सब की झिड़कियां खाती आई हूं. पहले सास की सुनती रही. उन से डरडर कर जीती रही. यहां तक कि छोटी ननदें भी जो चाहतीं, कह लेती थीं. उसे सब की सहने की आदत पड़ गई है. उस की अपनी बेटियां भी उस की परवा नहीं करतीं और अब यह व्यक्ति, जो कहने को पति है, उसे निरंतर तिरस्कृत करता रहता है.

आखिर क्या दोष है उस का? कल घर में धेवते की बहू आएगी तो क्या समझेगी उसे? घर की मालकिन या कोने में पड़ी एक दासी? उस की दशा क्या होगी? उस की आज जो हालत है उस का जिम्मेदार कौन है? क्यों डरती है वह हर किसी से?

उस के पति ने भी कभी उस के रूप की सराहना की थी. उसे प्यार से दुलराया था. छाती से चिपटा कर रातें बिताई थीं. अब वह एक खाली ढोल हो कर रह गई है. साजसज्जा की सामग्री से अलमारियां भरी हैं. साडि़यों और सूटों से वार्डरोब भरे पड़े हैं. लेकिन इस बीमार थुलथुल देह पर कुछ सोहता ही नहीं.

कम्मो झूले से उठ खड़ी हुई और ड्रैसिंग मेज पर जा कर खुद को निहारने लगी. क्या इस देह में अब भी कुछ शेष है? उसे लगा, उस के अंदर से एक धीमी सी आवाज आ रही है, ‘कम्मो, अपनी स्थिति के लिए केवल तू ही जिम्मेदार है. तू अपने पति की उन्नति में सहायक बनी लेकिन उस की साथी नहीं बनी. वह ऊंचाइयां छूता गया और तू जमीन का जर्रा बनती गई. वह आधी रात को घर में घुसा, तू ने कभी पूछा तक नहीं. बस, उस के स्वागत में आंखें बिछाए रही.’

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उस की इच्छा हुई वह भी आज गुलाब की पंखडि़यों में नहाए. उस ने बाथरूम के लंबे टब में गुलाब की पंखडि़यां भर दीं, गीजर औन कर दिया. गरम फुहारों से टब लबालब भर गया तो उस में जा कर लेटी रही. उस में से कुछ समय बाद निकली तो काफी हलका महसूस कर रही थी. आज उस ने अपनी मनपसंद साड़ी पहनी और हलका मेकअप किया.

अब वह जिएगी तो अपने लिए, कोई परवा करे या न करे. एक आत्मविश्वास से वह खिलने लगी थी. स्नान के बाद ऊपर जा कर धूप में जाने की इच्छा उस में प्रबल हो उठी, लेकिन एक अरसे से वह सीढि़यां नहीं चढ़ी थी. घर की ड्योढ़ी लांघती तो उस की सांस बेकाबू हो जाती है, फिर इतनी अधिक सीढि़यां कैसी चढ़ेगी? फिर भी, आज उसे स्वयं को रोक पाना असंभव था. उस ने धीरेधीरे 3-4 सीढि़यां चढ़ीं, तो सांस ऊपरनीचे होने लगी.

वह बैठ गई. सामान्य होने पर फिर चढ़ने लगी. कुछ समय बाद वह छत पर थी. नीले आसमान में सूर्य चमक रहा था. उसे अच्छा लगा. वह आराम से झुक कर सीधी हो सकती है. बिना कष्ट के उस ने आगेपीछे, फिर दाएंबाएं होने का यत्न किया तो एक लचक सी शरीर में दौड़ गई. तत्पश्चात थोड़ी देर बाद वह बिना किसी परेशानी के नीचे उतर आई.

रसोई में रसोइया खाना बनाने की तैयारी कर रहा था. कमला काफी समय से वहां नहीं झांकी थी. नंदू पूछता, ‘क्या बनेगा’ तो बेमन से कह देती, ‘साहब की पसंद तू जानता ही है.’ पुराना नौकर मालिकों की आदतें जान गया था. इसलिए बिना अधिक कुछ कहे वह उन के लिए विभिन्न व्यंजन बना लेता. समय पर नाश्ता और खाना डायनिंग टेबल पर पहुंच जाता. घी, मसालों में सराबोर सब्जियां, चावल, रायता, दाल, सलाद सभी कुछ. कमला तो बस 2-4 कौर ही मुंह में डालती थी, पर फिर भी काया फूलती ही गई. उस का यही बेडौल शरीर ही तो उसे पति से दूर कर गया है.

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