साहस को देखते ही आरुषी के मम्मीपापा के मन में बेटी की शादी का विचार आ गया. आखिर आता क्यों न. साहस राजकुमार की तरह सुंदर था. फिर वह डाक्टर भी था. शादी में शामिल होने के लिए साहस के मम्मीपापा भी आए थे.
साहस ने आरुषी के मम्मीपापा से अपने मम्मीपापा को मिलवाया. बातचीत में उन लोगों का काफी पुराना परिचय निकल आया. साहस और आरुषी की शादी की बात चल निकली. 2 दिन बाद साहस अपनी मम्मीपापा के साथ शादी की बात करने आरुषी के घर आ पहुंचा.
उस दिन आरुषी और साहस बहुत खुश थे. सभी ने दोनों को बात करने के लिए घर के बाहर लौन में भेज दिया. लौन में लगे झूले पर बैठते हुए साहस ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा हाथ कैसा है आरुषी?’’
‘‘अब तो काफी ठीक है. आप ने बहुत सही समय पर बर्फ ला कर लगा दी थी, इसलिए ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.’’ आरुषी ने कहा.
‘‘जरा अपना हाथ दिखाओ, देखूं तो कैसा है?’’
खूब शरमाते हुए आरुषी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो बहुत ही आराम से उस का हाथ पकड़ कर साहस देखने लगा. साहस के हाथ पकड़ने से आरुषी कुछ अलग तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी, जिसे शायद साहस ने महसूस कर लिया था.
इस के बाद अपना दूसरा हाथ उस के हाथ पर रख कर सहलाने लगा. आरुषी ने अपनी नजरें झुका लीं. पर अपना हाथ साहस के हाथों से छुड़ाने की कोशिश नहीं की.
उसे साहस का स्पर्श अच्छा लग रहा था. इसी छोटी सी मुलाकात में साहस ने आरुषी के दिल की स्थिति समझ ली थी. उस ने पूछा, ‘‘आरुषी तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’
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