Short Story : आंगन में धमधम की आवाज से मोहिनी यह समझ गई कि रामजीवन आ गया है. अपने यकीन को पुख्ता करने के लिए वह उठी और देखा कि आंगन में एक मिट्टी का ढेला पड़ा है, क्योंकि आज रामजीवन के आने पर इसी इशारे का वादा था. रामजीवन और मोहिनी का प्यार परवान पर था. रामजीवन के बगैर मोहिनी एक पल भी नहीं रहना चाहती थी. लेकिन मोहिनी के घर वाले रामजीवन की कहानी जानते थे.

रामजीवन सही आदमी नहीं था. वह झोलाछाप डाक्टरी के अलावा और भी गैरकानूनी धंधे करता था. उस ने दहेज के लालच में अपनी बीवी तक को मार डाला था. लेकिन न जाने मोहिनी पर रामजीवन का कौन सा जादू छाया था. वैसे रामजीवन था तो मोहिनी की बिरादरी का ही, मगर मोहिनी के घर वाले अपनी बेटी पर उस की छाया भी नहीं पड़ने देना चाहते थे.

मोहिनी का पूरा परिवार पढ़ालिखा था. भाई भी नौकरी करते थे और खुद मोहिनी भी इंटर पास थी. रामजीवन को आया जान मोहिनी घर के जेवर व नकदी एक थैले में डाल कर छत पर चढ़ गई. घर के सभी लोग सो रहे थे. सारे गांव में सन्नाटा था. आज गली के कुत्तों को भी नींद आ गई थी. उन का भूंकना बंद था. वह धीरेधीरे चलती हुई पिछवाड़े की मुंड़ेर पर पहुंच गई. रामजीवन वहीं खड़ा इंतजार कर रहा था.

मोहिनी रामजीवन की बांहों में जल्द से जल्द समा जाना चाहती थी. पड़ोस की खपरैल से होते हुए वह रामजीवन के बहुत नजदीक पहुंच गई. रामजीवन ने उस का थैला थामा और उसे एक ओर रख कर अपने हाथों का सहारा दे कर मोहिनी को भी नीचे उतार लिया.

रात आधी से ज्यादा बीत गई थी. दोनों सारी रात चलते रहे. सुबह होने तक वे एक काफी सुनसान जगह पर आ कर रुक गए. सवेरा हो गया था. जहां वे लोग रुके थे, वहीं पास में ही रामजीवन का खेत था, जहां रामजीवन के खास साथी डेरा डाल कर रहते थे. मोहिनी को वहीं छोड़ रामजीवन अपने एक साथी को ले आया.

उस साथी को मोहिनी के पास बैठा कर रामजीवन खुद खाना लाने के बहाने एक ओर चला गया. जातेजाते रामजीवन ने मोहिनी से झोले में क्याक्या है, जानना चाहा था. तब मोहिनी ने बताया था कि 80 हजार की नकदी और सोनेचांदी के जेवर हैं.

एक नजर थैले पर डाल मोहिनी को तसल्ली देते हुए वह बोला, ‘‘इसे मैं अपने साथ लिए जा रहा हूं. कुछ नकद का और इंतजाम कर के मैं शाम तक आ जाऊंगा, फिर कहीं दूर चले जाएंगे.’’ वहां बैठा साथी, जिस का नाम शंकर था, उन की बातें गौर से सुन रहा था. शंकर जानता था कि आज ठाकुर सोने की चिडि़या फांस कर लाए हैं लेकिन वह चुप था.

दिन बीता रात आई लेकिन रामजीवन नहीं आया. अब शंकर से रहा नहीं गया. वह बोला, ‘‘कहां रहती हैं आप?’’ ‘‘किशनपुर में,’’ मोहिनी ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, जहां मालिक डाक्टरी करते हैं?’’ शंकर ने पूछा. मोहिनी चुप रही.

शंकर ने फिर पूछा, ‘‘क्या नाम है आप का?’’ ‘‘मोहिनी,’’ उस ने छोटा सा जवाब दिया.

‘‘जैसा नाम वैसा गुण,’’ शंकर कहे बिना नहीं रह सका. सचमुच वह रात में चांदनी की तरह चमक रही थी. शंकर ने पूछा, ‘‘घर क्यों छोड़ा आप ने?’’ मोहिनी ने लजा कर कहा, ‘‘तुम्हारे मालिक के साथ रहने के लिए.’’

शंकर मन ही मन सोच रहा था, ‘अजब जादू चलाया है मालिक ने. न जाने क्या हाल होगा इस का?’ फिर उस ने सोचा, ‘बेवकूफ लड़की, तू ने ठीक नहीं किया. मांबाप हमेशा अपनी औलाद का भला ही चाहते हैं, बुरा तो सपने में भी नहीं सोच सकते. कसाई भी अपने बच्चों को खुश व सुखी देखना चाहते हैं.’ मन ही मन शंकर चुप ही रहा. इसी दौरान किसी के पैरों की आहट से उन का ध्यान बंटा.

रात के 10 बजे होंगे. दोनों चौकन्ने हो गए. दूर कहीं सियार की डरावनी आवाज सुनाई दे रही थी. पास आता एक चेहरा अब साफ दिखाई दे रहा था, यह रामजीवन ही था. नजदीक आ कर रामजीवन शंकर को एक ओर ले गया, जहां उस ने शंकर की छाती पर रामपुरी चाकू रख दिया. शंकर के पैरों तले जमीन खिसकने लगी, सामने मौत जो खड़ी थी. उस का हलक सूख गया था.

रामजीवन ने कहा, ‘‘मरना चाहते हो कि…’’ शंकर की सूखी जबान से खरखराती आवाज निकली, ‘‘म… म… म… मालिक.’’

‘‘ले चाकू और मार दे उस लड़की को. नहीं तो तू भी फंसेगा और मैं भी. पुलिस हम दोनों को ढूंढ़ रही है,’’ रामजीवन ने धीरे से, पर कड़कती आवाज में कहा. ‘‘न… न… नहीं मालिक, यह काम मैं नहीं कर पाऊंगा. मैं ने कभी मुरगी तक नहीं…’’ शंकर हकलाया.

‘‘तो ले, तू ही मरने को…’’ शंकर अब तक संभल चुका था. वह सहमते हुए बोला, ‘‘मालिक, चाहे मुझे मार दो, मगर मुझ से यह काम नहीं होगा.’’

रामजीवन कुछ ढीला हो कर बोला, ‘‘एक शर्त पर तू बचेगा. तू किसी से कुछ नहीं कहेगा. जो मैं कहूंगा वही करेगा.’’ ‘‘हर शर्त मंजूर है मालिक,’’ शंकर ने डरते हुए कहा.

‘‘आओ,’’ ऐसा कहते हुए रामजीवन मोहिनी के पास गया. शंकर दूर खड़ा अनहोनी का अंदाजा लगा रहा था. रामजीवन मोहिनी को एक टीले की ओर ले गया. दूर झींगुरों की आवाज से रात और भी डरावनी हो रही थी.

प्यार में अंधी मोहिनी चहकती हुई उस की ओर बड़ी अदा से बलखाती सी जाने लगी, क्योंकि उसे लग रहा था कि टीले की ओट में वह उसे बहुत प्यार करेगा. उस की भरी जवानी का रस पीएगा. आज कई दिनों बाद सबकुछ करने का एक अच्छा मौका जो मिला है. वह रामजीवन की बांहों में समा जाने को मचल रही थी. मगर यह क्या, जैसे ही मोहिनी रामजीवन के गले लगी तो आसमान कांप उठा. रामजीवन ने प्यार करने के बजाय एक हाथ से मोहिनी के जिगर में रामपुरी चाकू घुसेड़ दिया और दूसरे हाथ से उस का मुंह कस कर दबोच लिया.

मोहिनी चीख भी नहीं सकी. उस की चीख अंदर ही अंदर दब कर रह गई. जब वह निढाल हो गई, तब कहीं रामजीवन ने उसे छोड़ा. शंकर चुपचाप एक कसाई के हाथों गऊ जैसी मोहिनी को हलाल होते देख रहा था. जिस के जिस्म से खेला, जो लाखों की दौलत ले कर घरपरिवार, रिश्तेदारों को छोड़ कर आ गई थी, आज उसी मोहिनी के लिए रामजीवन कालिया नाग बन गया था.

‘‘खड़ेखड़े क्या देख रहा है? ले, इस की लाश उठा उधर से,’’ रामजीवन की आवाज से शंकर सोते सा जगा और मशीन की तरह उस ने मोहिनी को एक तरफ से उठा लिया. फिर दोनों उसे एक ढलान पर ले गए. ढलान में एक गहरा गड्ढा देख कर शंकर समझ गया कि रामजीवन अभी तक क्या कर रहा था. उसी गड्ढे में मोहिनी को हमेशा के लिए दफना दिया गया मानो प्यार की दौलत ही दफना दी हो.

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