Social Story : ‘‘अरे निपूती, कब तक सोती रहेगी… चाय के लिए मेरी आंखें तरस गई हैं और ये महारानी अभी तक बिस्तर में घुसी है. न बाल, न बच्चे… ठूंठ को शर्म भी नहीं आती,’’ कमला का अपनी बहू सलोनी को ताने देना जारी था.

अब क्या ही करे, सलोनी को तो कुछ समझ ही नहीं आता था. सुबह जल्दी उठ जाए तो सुनती कि सुबहसुबह बांझ का मुंह कौन देखे. देर से उठे तो भी बवाल. अब ये ताने सलोनी की जिंदगी का हिस्सा थे.

पति राकेश के होते भी सलोनी की विधवा जैसी जिंदगी थी. राकेश मुंबई में रहता था और सलोनी ससुराल में सास और देवर महेश के साथ रहती थी. बेचारी पति के होते हुए भी अब तक कुंआरी थी.

शादी की पहली रात को ही सलोनी को माहवारी आ गई थी, फिर उस की सास ने उसे अलग कोठरी में डाल दिया था. 7 दिन बाद जब उसे कोठरी से निकाला गया, तो राकेश मुंबई जाने की तैयारी कर रहा था.
दूसरी बार जब राकेश नए घर आया, तो उस के आते ही उसे मायके भेज दिया गया था.

ऐसे ही सालभर का समय निकल गया था. सलोनी का राकेश के साथ कोई रिश्ता बन ही नहीं पाया था. उस के बाद भी निपूती और बांझ का कलंक झेलना, सो अलग.

अब सलोनी ने सोचा कि राकेश से बात करे, पर राकेश के हिसाब से तो मां बिलकुल भी गलत नहीं हैं. शादी के बाद तो बच्चा होना ही चाहिए. अब उसे कौन समझाए कि बच्चा शादी करने भर से नहीं हो सकता, उस के लिए साथ में सोना भी पड़ता है.

धीरेधीरे सलोनी को पता चला कि राकेश नामर्द है और उस के साथ सो कर भी वह बच्चा पैदा नहीं कर
सकती. शायद इसीलिए वह उस से दूर भागता है और अपनी मां के साथ मिला हुआ है.

अब सलोनी को कोई हल नजर नहीं आ रहा था. मायके में मां नहीं थीं. पिता से क्या कहे. एक भाई था, वह भी काफी छोटा था. उस से भी कुछ नहीं कहा जा सकता था.

सलोनी का देवर महेश अपने भाई और मां के बरताव के बारे में सबकुछ जानता था. उस के मन में कई बार आता कि मां को खरीखोटी सुना दे, पर वह चुप रह जाता था.

आखिर एक दिन जब राकेश घर आया, उस दिन काफी देर तक पतिपत्नी में नोकझोंक हुई. उस बातचीत के कुछ हिस्से महेश के कानों में भी पड़े, पर वह चुप ही रहा.

2-3 दिन रह कर राकेश वापस मुंबई लौट गया था. सलोनी की सास अपनी बहन के घर गई थी. घर पर सलोनी और महेश ही थे.

अचानक सलोनी ने देखा कि महेश उस के कमरे में आ कर चुपचाप उस के पास खड़ा हो गया था. उस ने अपनी भाभी से कहा, ‘‘तुम इस घर से भाग जाओ.’’

सलोनी ने कहा, ‘‘मैं अब कहां जाऊंगी. पिताजी ने बड़ी मुश्किल से मेरी शादी की है. मैं वापस जा कर उन का दुख नहीं बढ़ा सकती.’’

सलोनी ने अब अपने पैरों पर खड़ा होने की ठान ली. हालांकि वह सिर्फ 12वीं जमात पास थी. उस ने एक औनलाइन शौपिंग कंपनी की पार्सल डिलीवरी का काम शुरू किया. लड़की होने की वजह से उसे यह काम आसानी से मिल गया.

शुरूशुरू में सलोनी पास के एरिया में ही डिलीवरी के लिए जाती थी, बाद में उस ने एक स्कूटी खरीद ली और दूरदूर तक पार्सल डिलीवर करने के लिए जाने लगी.

पैसा आने और लोगों से मिलनेजुलने से सलोनी में एक अलग तरह का आत्मविश्वास आने लगा, जिस से उस की रंगत बहुत ही निखर गई. अब उस की सास भी उसे कम ताने देती थी, पर उसे बांझ कहने से नहीं चूकती थी.

एक रविवार की दोपहर को सलोनी आराम कर के उठी, तो उस ने देखा कि महेश चोर नजरों से उसे ही देख रहा था.

सलोनी ने सोचा कि अपने पैरों पर तो वह खड़ी हो गई है, अब उसे अपने माथे पर लगे कलंक को भी धोना है. उस ने मौका देख कर एक दिन महेश से कहा, ‘‘तुम मुझे एक बच्चा दे दो.’’

महेश सोच में पड़ गया. उसे लगा कि यह पाप है. उसे सोच में देख कर सलोनी बोली, ‘‘देवरजी, इस पाप के साथ ही मैं अपने माथे पर लगे कलंक को धो सकती हूं. यही मेरे लिए सब से बड़ा पुण्य है.

‘‘मैं उस अपराध की सजा क्यों भुगतूं, जो मैं ने किया ही नहीं है. इस से तो अच्छा होगा कि मैं पाप कर के अपने माथे पर लगे बांझ वाले कलंक को धो दूं.’’

अब कमरे में पाप हो रहा था, जिस से एक कलंक को धुलना था. महेश की बांहों में समाते हुए सलोनी सोच रही थी, पाप और पुण्य की नई परिभाषा.

धीरेधीरे सलोनी अपने देवर महेश से वह सुख हासिल करने लगी, जो उसे पति ने कभी नहीं दिया था और महेश और उस पर कोई उंगली न उठा सके, इस के लिए सलोनी ने अपने देवर की शादी एक बिना पढ़ीलिखी गरीब लड़की से करा दी.

सास सब समझती, इसलिए वह अपनी छोटी बहू को रीतिरिवाज और पूजापाठ के बहाने अकसर घर से दूर ही रखती थी, जिस से उसे अपने पति और जेठानी के बीच के नाजायज रिश्ते की कोई भनक तक नहीं लगे.

समय के साथसाथ सलोनी एक बच्चे की मां बन गई और उस की नौकरी भी अब पक्की हो गई थी. राकेश सब जानतेसमझते हुए भी चुप ही रहता था और अब तो वह सामाजिक रूप से एक बच्चे का पिता भी बन गया था.

सलोनी ने अपनी जिंदगी से भागने का रास्ता नहीं चुना, बल्कि उसी ससुराल में डट कर मुकाबला किया और अब बड़े ही सुकून से रह रही थी. कभीकभी गलत रास्ता भी जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर ला देता है.

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