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राणाजी द्वारा पत्र में लिखे आखिरी वाक्य माजी साहब के नजरों के आगे घूमने लगे, ‘हुक्म की तामील नहीं की गई तो जागीर जब्त कर ली जाएगी. देशद्रोह व हरामखोरी समझा जाएगा.’

पत्र के आखिरी वाक्यों ने माजीसा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया, ‘जागीर जब्त हो जाएगी… देशद्रोह… हरामखोरी समझा जाएगा. मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बाहर बेदखल हो जाएगा और ऐसा हुआ तो उन की समाज में कौन इज्जत करेगा?

‘पर उस का आज बाप जिंदा नहीं है तो क्या हुआ, मां तो जिंदा है. यदि मेरे जीते जी मेरे बेटे का अधिकार छिन जाए तो मेरा जीना बेकार है. ऐसे जीवन पर धिक्कार और फिर मैं ऐसी तो नहीं जो अपने पूर्वजों के वंश पर कायरता का दाग लगने दूं. उस वंश पर जिस ने कई पीढि़यों से बलिदान दे कर इस भूमि को पाया है. मैं उन की इस बलिदानी भूमि को ऐसे आसानी से कैसे जाने दूं?’

ऐसे विचार करते हुए माजीसा की आंखों में वे दृश्य घूमने लगे जो युद्ध में नहीं जाने के बाद हो सकते थे कि उन का जवान बेटा एक ओर खड़ा है और उस के सगेसंबंधी और गांव वाले बातें कर रहे हैं कि इन्हें देखिए ये युद्ध में नहीं गए थे तो राणाजी ने इन की जागीर जब्त कर ली थी. वैसे इन चूंडावतों को अपनी बहादुरी और वीरता पर बड़ा नाज है. हरावल में भी यही रहते हैं. और ऐसे व्यंग्य सुन उन का बेटा नजरें झुकाए दांत पीस कर रह जाता है.

ऐसे ही दृश्यों के बारे में सोचतेसोचते माजीसा का सिर चकराने लगा. वे सोचने लगीं, ‘यदि ऐसा हुआ तो बेटा बड़ा हो कर मुझ मां को भी धिक्कारेगा. ऐसे विचारों के बीच ही माजीसा को अपने पिता के मुंह से सुनी उन राजपूत वीरांगनाओं की कहानियां याद आ गईं, जिन्होंने युद्ध में तलवार हाथ में ले घोड़े पर सवार हो कर दुश्मन सेना को गाजरमूली की तरह काटते हुए खलबली मचा कर अपनी वीरता का परिचय दिया था.

‘दूसरे उदाहरण क्यों उन के ही खानदान में पत्ताजी चूंडावत की ठकुरानी उन्हें याद आ गईं, जिन्होंने अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी.

‘जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं? क्या मैं वीर नहीं? क्या मैं ने भी एक राजपूतानी का दूध नहीं पीया? बेटा मासूम है तो क्या हुआ? मैं तो हूं. मैं खुद अपनी सैन्य टुकड़ी का युद्ध में नेतृत्व करूंगी और जब तक शरीर में जान है दुश्मन से टक्कर लूंगी.’

और ऐेसे वीरता से भरे विचार आते ही माजीसा का मन स्थिर हो गया. उन की आंखों में चमक आ गई, चेहरे पर तेज चमकने लगा और उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रधानजी को हुक्म दिया, ‘‘राणाजी का हुक्म सिरमाथे. आप युद्ध की तैयारी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी को तैयार कीजिए. हम अपने स्वामी के लिए यह करेंगे और उस में जान की बाजी लगा देंगे.’’

प्रधानजी ने ये सुन कहा, ‘‘माजीसा, वो तो सब ठीक है, पर बिना स्वामी के कैसी फौज?’’

माजीसा बोलीं, ‘‘हम हैं ना. अपनी फौज का नेतृत्व हम करेंगे.’’

प्रधान ने आश्चर्यचकित हो कर माजीसा की ओर देखा. यह देख माजीसा बोलीं, ‘‘क्या आज तक महिलाएं कभी युद्ध में नहीं गईं? क्या आप ने उन महिलाओं की कभी कोई कहानी नहीं सुनी, जिन्होंने युद्धों में वीरता दिखाई थी? क्या इसी खानदान में पत्ताजी की ठकुरानीसा ने अकबर के खिलाफ युद्ध में भाग ले कर वीरगति नहीं प्राप्त की थी? मैं भी उसी खानदान की बहू हूं तो मैं उन

का अनुसरण करते हर युद्ध में क्यों नहीं भाग ले सकती?’’

बस, फिर क्या था. प्रधानजी ने कोसीथल की सेना को तैयार कर सेना के कूच का नगाड़ा बजा दिया. माजीसा शरीर पर जिरह बख्तर पहने, सिर पर टोप, हाथ में तलवार और गोद में अपने बालक को बिठा कर घोड़े पर सवार हो कर युद्ध में कूच के लिए चल पड़ीं.

कोसीथल की फौज के आगेआगे माजीसा जिरह वस्त्र पहने हाथ में भाला लिए कमर पर तलवार लटकाए उदयपुर पहुंच हाजिरी लगवाई, ‘‘कोसीथल की फौज हाजिर है.’’

अगले दिन मेवाड़ की फौज ने मराठा फौज पर हमला किया. हरावल (आगे की पंक्ति) में चूंडावतों की फौज थी, जिस में माजीसा की सैन्य टकड़ी भी थी. चूंडावतों के पाटवी सलूंबर के रावजी थे.

उन्होंने फौज को हमला करने से पहले संबोधित किया, ‘‘वीर मर्द राजपूतो, मर जाना पर पीठ मत दिखाना. हमारी वीरता के बल पर ही हमारे चूंडावत वंश को हरावल में रहने का अधिकार मिला. जिसे हमारे पूर्वजों ने सिर कटवा कर कायम रखा है.

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