अगले स्टेशन पर भीख मांगने वाली एक अधेड़ औरत ट्रेन में चढ़ी, जिस ने मनसुखिया के बगल में बैठ कर अपनी गठरी और कटोरा रख दिया. 2 मिनट के बाद वह वहीं लेट कर खर्राटे भरने लगी.
रेलगाड़ी की रफ्तार से कहीं ज्यादा मनसुखिया का मन दौड़ रहा था. इस मतलबी दुनिया में उसे कहां ठौरठिकाना मिलेगा? जब रेलगाड़ी अपने आखिरी स्टेशन पर खाली हो जाएगी, तब वह क्या करेगी? वह इसी उधेड़बुन में थी कि उस की नजर उस बुढि़या के कटोरे पर जा कर ठहर गई. क्या वह जहांतहां भीख मांगती फिरेगी? नहींनहीं, उस से यह घिनौना काम नहीं होगा. वह पगली ही ठीक है.
‘‘अरे पगली, आजकल तुम संगम विहार स्लम बस्ती में नहीं दिखती हो. अपना ठिकाना बदल लिया है क्या?’’ मनसुखिया के पास लेटी भिखारिन ने उबासी लेते हुए पूछा.
मनसुखिया को समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दे. उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. तब तक वह भिखारिन उठ कर बैठ गई.
उस भिखारिन ने पगली बनी मनसुखिया को गौर से देखा और फिर उसे टोका, ‘‘अरे, मैं भी कितनी पागल हूं. ऐसे लोगों का कौन सा ठिकाना… आज यहां पर, तो कल दूसरी जगह पर. लगता है, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. कोई हादसा हुआ है क्या? तेरा चेहरा सूजा हुआ है, हाथपैर में लगे चोट के निशान काले पड़ गए हैं. पर तू घबरा मत, अपनी बस्ती में ड्रैसर रेशमा दीदी हैं न, वे तेरी मरहमपट्टी कर देंगी,’’ उस भिखारिन ने प्यार से मनसुखिया का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाया.
‘‘अरे, तुझे तो तेज बुखार भी है. ले, अपना स्टेशन आ गया. गाड़ी को रुकने दे. हांहां, संभलसंभल कर नीचे उतरना,’’ भिखारिन ने हमदर्दी जताई.
वे दोनों दक्षिण दिल्ली की संगम विहार स्लम बस्ती पहुंची, जहां झुग्गीझोंपड़ी, लुंजपुंज स्ट्रीट लाइटें, टूटीफूटी सड़कें, बजबजाती नालियां, बेकार पड़े हैंडपंप, कीचड़ भरी गलियां आनेजाने वालों को मुंह चिढ़ा रही थीं.
एक झोंपड़ी के आगे वह भिखारिन खड़ी हो गई और बोली, ‘‘यही मेरा आशियाना है. पहले अपना सामान रखती हूं, फिर रेशमा दीदी के पास चलते हैं. अंदर आओ बहन, लो बिसकुट खा कर पानी पी लो,’’ झोंपड़ी के अंदर से उस भिखारिन ने बाहर खड़ी मनसुखिया को आवाज लगाई.
झोंपड़ी में जा कर मनसुखिया ने दो घूंट पानी पीया. इस से उस के सूखे गले को थोड़ी सी तरावट मिली. उस के बाद उस ने 2-4 बिसकुट अपने गले के नीचे उतारे. फिर वह भिखारिन के साथ ड्रैसर रेशमा के घर गई. मालूम हुआ कि वे अस्पताल से नहीं लौटी हैं, तो वे दोनों अस्पताल चली गईं.
अस्पताल में रेशमा एक मरीज की मरहमपट्टी कर के वार्ड से निकल रही थी. इसी दौरान उस की नजर भिखारिन पर पड़ी, तब उस ने खुशी जताते हुए कहा, ‘‘अरी फूलो, इधर आ. यह पगली फिर बीमार हो गई है क्या? इसे अस्पताल में भरती कराने आई है क्या? एक तुम्हीं हो, जो ऐसे लोगों का खयाल रखती हो, नहीं तो किसे फुरसत है.’’
‘‘हां रेशमा दीदी, यह बहुत ज्यादा बीमार है.’’
उस भिखारिन का नाम फूलमती था, जिसे रेशमा प्यार से फूलो कहती थी. पगली बनी मनसुखिया को ले कर वे दोनों डाक्टर शिव मांझी के पास गईं.
चैकअप के बाद डाक्टर शिव मांझी ने कहा, ‘‘लगता है, इस पगली ने काफी दिनों से कुछ खाया नहीं है. इस का बीपी बिलकुल लो है. इस का शरीर भी चोटिल है, इसलिए इलाज के लिए इसे भरती कराना जरूरी है.’’
‘‘जी सर, इस की कागजी खानापूरी कर के भरती करा देते हैं.’’
‘‘हांहां, देर न करो… सब ठीक रहेगा… और कोई सेवा हो तो बोलना.’’
‘‘जी सर, आप को जरूर याद करूंगी.’’
‘‘फूलो, रजिस्टर में पगली का नाम और पता लिखवाओ,’’ अस्पताल की क्लर्क मोना ने कहा.
‘‘अरे, इस का नाम सोना है. पता संगम विहार स्लम बस्ती लिख दो,’’ फूलो ने हंसते हुए कहा.
‘‘इसे वार्ड 5 के 3 नंबर बैड पर लिटा दो,’’ मोना ने फूलो से कहा.
डाक्टर शिव मांझी, रेशमा और फूलो की कोशिश से मनसुखिया उर्फ सोना एक हफ्ते के अंदर ठीक हो गई थी, लेकिन अस्पताल से अभी रिलीज नहीं हुई थी.
एक दिन फूलो रेशमा के साथ डाक्टर शिव मांझी के कमरे में गई और सोना को रिलीज करने की इच्छा जाहिर की. तभी रेशमा ने डाक्टर शिव मांझी से पूछा, ‘‘सर, देखने से सोना नहीं लगती कि वह पागल है. वह ठीक हो गई है क्या?’’
‘‘हां, वह पागल नहीं है, बल्कि वह तो पारिवारिक और सामाजिक हिंसा का शिकार है,’’ डाक्टर शिव मांझी ने गंभीर होते हुए कहा, ‘‘पाखंडियों ने इस पर डायन का आरोप लगा कर इसे काफी सताया है.’’
‘‘आप को यह कैसे मालूम हुआ सर?’’ रेशमा ने पूछा.
ने पूछा.