खैर, कैरैक्टर तो मैं अपना बहुत पहले नीलाम कर चुका हूं. यह जो मेरे पास दोमंजिला मकान, आलीशान गाड़ी है, सब मैं ने अपना कैरैक्टर नीलाम करने के बाद ही हासिल की है. इनसान जिंदगी में चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, पर जब तक वह अपने कैरैक्टर को बंदरिया के मरे बच्चे सा अपने से चिपकाए रखता है, तब तक भूखा ही मरता है.

इधर बंदे ने अपना कैरैक्टर नीलाम किया, दूसरी ओर हर सुखसुविधा ने उसे सलाम किया. कहने वाले जो कहें सो कहते रहें, पर अपना तजरबा है कि जब तक बंदे के पास कैरैक्टर है, उस के पास केवल और केवल गरीबी है.

पर कैरैक्टर नीलाम करने के बाद कमबख्त फिर गरीबी आन पड़ी. जमापूंजी कितने दिन चलती है? अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपना क्या नीलाम करूं? अनारकली होता, तो मीना बाजार जा पहुंचता.

जब मुझे पता चला कि उन के कपड़े डेढ़ करोड़ रुपए में बिके, तो अपना तो कलेजा ही मुंह को आ गया. लगा, मेरे लिए नीलामी का एक दरवाजा और खुल गया. जिस के कपड़े ही डेढ़ करोड़ के नीलाम हो रहे हों, वह बंदा आखिर कितना कीमती होगा?

बस, फिर क्या था. मुझे उन के कपड़ों की नीलामी की बोली के अंधेरे में उम्मीद की किरण नहीं, बल्कि दोपहर का चमकता सूरज दिखा और मैं ने आव देखा न ताव, अपने और बीवी के सारे कपड़ों के साथ पड़ोसी की बीवी के भी चार फटेपुराने कपड़ों की गठरी बांधी और लखपति होने के सपने लेता बाजार चलने को हुआ, तो बीवी ने टोका, ‘‘अब ये मेरे कपड़े कहां लिए जा रहे हो? पागलपन की भी हद होती है.’’

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