एक बड़े से रसोईघर में कुछ महिलाएं आश्रम में मौजूद सभी लोगों के लिए खाना बनाने में जुटी थीं तो कुछ सेवादार जूठे बरतन मांज कर अपनेआप को धन्य महसूस कर रहे थे.
मिताली ने देखा कि वहां लोगों से किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं बरता जा रहा था. हर व्यक्ति को समान सुविधा उपलब्ध थी. शायद यही समभाव सब को जोड़े था और यही बाबा की लोकप्रियता का कारण था.
मिताली को दूर आश्रम के कोने में गुफा जैसा एक कमरा दिखाई दिया. सुमन ने बताया कि यह बाबा का विशेष कक्ष है. जब भी वे यहां आश्रम में आते हैं इसी कक्ष में ठहरते हैं… यहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है.
सुमन के साथ होने के कारण उन दोनों को किसी ने नहीं टोका. मिताली और सुदीप ने पूरा आश्रम घूम कर देखा. घूमतेघूमते दोनों आश्रम के दूसरे कोने तक पहुंच गए. यहां घने पेड़ों के झुरमुट में घासफूस से बनी कलात्मक झोंपडि़यां बेहद आकर्षक लग रही थीं. जगह के एकांत का फायदा उठा कर सुदीप ने उसे चूम भी लिया था.
मिताली को आश्रम की व्यवस्था ने बहुत प्रभावित किया. उस ने आगे भी यहां आते रहने का मन बना लिया.
‘और कुछ न सही, सुदीप के साथ एकांत में कुछ लमहे साथ बिताने को मिल जाएंगे… शहर में तो लोगों के देखे जाने का भय हमेशा दिमाग पर हावी रहता है… आधा ध्यान तो इसी में बंट जाता है… प्यारमुहब्बत की बातें क्या खाक करते हैं…’ सोच मिताली का दिमाग आगे की योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कवायद में जुट गया. उस ने सुदीप को अपनी योजना के बारे में बताया.
‘‘यह आश्रम है कोई पिकनिक स्पौट नहीं कि जब जी चाहा टहलते हुए आ गए… देखा नहीं सुरक्षा व्यवस्था कितनी कड़ी थी…’’ सुदीप ने उस के प्रस्ताव को नकार दिया.
‘‘तुम ऐसा करो… सुमन भाभी के साथ बाबा के शिष्य बन जाओ… रोज न सही, कभीकभार तो आया ही जा सकता है… मिलने का मौका मिला तो ठीक वरना ताजा फलसब्जियां तो मिल ही जाएंगी…’’ मिताली ने उसे उकसाया.
बात सुदीप को भी जम गई और फिर एक दिन सुदीप विधिवत बाबा कृष्ण करीम का शिष्य बन गया.
मिताली और सुदीप कभी सुमन के साथ तो कभी अकेले ही आश्रम में
आने लगे. अकसर दोनों सब की नजरें बचा कर उन झोंपडि़यों की तरफ निकल जाया करते थे. कुछ देर एकांत में बिताने के बाद प्रफुल्लित से लौटते हुए फलसब्जियां खरीद ले जाते.
आश्रम में आनेजाने से उन्हें पता चला कि इस आश्रम की शाखाएं देश के हर बड़े शहर में फैली हैं. इतना ही नहीं, विदेशों में भी बाबा के अनुयायी हैं, जो उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं. इन आश्रमों से कई अन्य तरह की सामाजिक गतिविधियां भी संचालित होती हैं. कई हौस्पिटल और स्कूल हैं जो आश्रम की कमाई से चलते हैं.
मिताली ने महसूस किया कि जितना वे बाबा के बारे में जान रहे थे उतना ही सुदीप का झुकाव उन की तरफ होने लगा था. अब उन की बातों का केंद्र भी अकसर बाबा ही हुआ करते थे.
मुख्य सेवादार ने उस की निष्ठा देखते हुए उसे आश्रम से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप दी थीं. इन सब का प्रभाव यह हुआ कि अब मिताली बेरोकटोक आश्रम के हर हिस्से में आनेजाने लगी थी.
देखते ही देखते उन का कालेज पूरा होने को आया. फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था.
‘‘अब पढ़ाई में जुटना होगा… ऐग्जाम से पहले एक आखिरी बार आश्रम चलें?’’ मिताली ने अपनी बाईं आंख दबाते हुए इशारा किया.
‘‘हां कल चलते हैं… बाबा का आशीर्वाद भी तो लेना है,’’ सुदीप ने कहा.
‘‘हाउ अनरोमांटिक,’’ वह भुनभुनाई.
‘‘कल का दिन तुम्हारी जिंदगी का एक यादगार दिन होने वाला है,’’ सुदीप ने शरारत से मुसकराते हुए उस का गाल खींच दिया.