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प्रसेनजीत ने नाराजगी से संदेश से कहा, ‘‘तुम्हें पूरी बात नहीं पता है.’’ संदेश बोला, ‘‘मुझे तो यही लगता है.’’ प्रसेनजीत ने जयेश का मनोबल कायम रखने के लिए कहा, ‘‘जीत हो या हार, मुझे तो इस बात की ही खुशी है कि तुम कोशिश कर रहे हो.’’ जयेश को शायद और प्रोत्साहन की जरूरत थी, ‘‘लेकिन तुझे ऐसा लगता है कि मैं जीतूंगा?’’ प्रसेनजीत ने कहा, ‘‘मुझे तो यही लगता है कि यह जीत निश्चित रूप से संभव है.’’ संदेश ने हुंकार भरी. प्रसेनजीत ने संदेश को अनदेखा कर जयेश से पूछा, ‘‘क्या तेरे पास अपने अभियान की कोई रणनीति है?’’ जयेश ने इस बारे में अभी सोचा नहीं  था, ‘‘नहीं.’’ प्रसेनजीत बोला, ‘‘कोई ऐसा नारा है, जो एकदम आकर्षक हो?’’ जयेश ने फिर कहा, ‘‘नहीं.’’ प्रसेनजीत ने जयेश को समझते हुए कहा, ‘‘हमारी एक आंटी हैं, वृंदा कड़वे.

वे हमारे इलाके का कारपोरेटर का चुनाव जीत चुकी हैं. मैं उन से बात करवा सकता हूं तुम्हारी.’’ प्रसेनजीत ने तुरंत अपने मोबाइल फोन से वृंदा कड़वे को फोन लगाया, ‘‘आंटी, मैं प्रसेनजीत.’’ वृंदा ने आतुर हो कर कहा, ‘‘हां, बोलो बेटा, क्या बात है?’’ प्रसेनजीत ने स्थिति समझई, ‘‘मेरा एक मित्र छात्र संघ के लिए चुनाव लड़ रहा है. वह उम्मीद कर रहा है कि आप उसे कुछ सलाह दे सकती हैं.’’   प्रसेनजीत ने जयेश को मोबाइल थमा दिया. वृंदा ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम कभी फेल हुए  हो क्या?’’ जयेश एक पल के लिए यह प्रश्न सुन कर चौंक गया. फिर संभल कर उस ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं, मैं हमेशा अव्वल दर्जे में पास हुआ हूं और मैं हमेशा सभी के साथ तमीज से पेश आता हूं. अपने व्यवहार के बारे में आज तक मैं ने किसी को कुछ कहने का मौका नहीं दिया है.’’ कारपोरेटर होने के कारण वृंदा कडवे सफाई को बेहद महत्त्व देती थीं, ‘‘तुम अपने आसपास स्वच्छता रखते हो?’’

जयेश ने जोश में कहा, ‘‘गंदगी तो मुझे सर्वथा पसंद नहीं. आप तो खुद कारपोरेटर का चुनाव जीत चुकी हैं. क्या आप चुनाव जीतने के बारे में मुझे कुछ सलाह दे सकती हैं?’’  वृंदा ने अपने अनुभव से कहा, ‘‘सब से महत्त्वपूर्ण बात है, बाहर निकलना और लोगों से जुड़ना.’’ जयेश को यह थोड़ा मुश्किल कार्य लगा. वह विज्ञान का छात्र था. वह बोला, ‘‘मुझे लोगों से बहुत लगाव नहीं है.’’ कारपोरेटर वृंदा को अच्छे से इस बात का महत्त्व पता था, ‘‘ठीक है, तुम को उस पर काबू पाने की आवश्यकता हो सकती है.’’ जयेश ने इस के आगे का कदम जानना चाहा, ‘‘मान लें कि मैं यह कर सकता हूं. मैं उन से कैसे जुड़ं ू?’’ कारपोरेटर वृंदा बोली, ‘‘तुम्हारे लिए तो सब से अच्छी शुरुआत करने का तरीका है, सब के साथ दोस्ताना बना कर उन से हाथ मिलाओ.’’ हाथ मिलाने के नाम से ही जयेश के हाथ सिकुड़ गए. अगले कुछ दिनों में जयेश ने अपना अभियान चलाया. उस ने महाविद्यालय में जगहजगह पोस्टर लगवाए. सभी छात्रों से बातचीत की और उन्हें बताया, ‘‘मेरा नाम जयेश है और मैं छात्र प्रतिनिधि बनने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं.’’ प्रसेनजीत और संदेश ने उस का भरपूर साथ दिया. हर जगह, हर विभाग में पोस्टर दिखने लगे, ‘छात्र प्रतिनिधि के लिए जयेश को वोट दीजिए.’  सभी से मिलते समय जयेश ने उन्हें एकएक पेन देना उचित समझ. थोक में खरीदने पर हर पेन की कीमत महज 5 रुपए पड़ी. ऐसे में अनजाने में उस की मुलाकात अपने प्रतिद्वंद्वी अनुरंजन नावे से हो गई. वाणिज्य विभाग की ओर जाते समय जयेश ने एक लंबे से युवक को जब पेन थमाते हुए कहा, ‘‘मैं जयेश हूं. मैं छात्र प्रतिनिधि का चुनाव लड़ रहा हूं.’’ इस पर उस युवक ने मुसकराते से कहा, ‘‘आखिरकार तुम से मुलाकात हो ही गई.’’ बड़े ही गर्मजोशी के साथ जयेश से हाथ मिला कर कहा, ‘‘मैं अनुरंजन नावे.’’ जयेश ने अपने विरोधी पक्ष पर गौर किया. उसे गौर से देखता देख अनुरंजन  ने विस्मय से पूछा, ‘‘इस पेन का क्या  करना है?’’ जयेश ने अस्पष्ट तरीके से कहा, ‘‘जो भी असाइनमैंट हम को करने के लिए मिलते हैं, वे इस से कर सकते हैं. मुझे अपने शिक्षकों के दिए हुए असाइनमैंट न केवल अच्छे लगते हैं, बल्कि उन्हें करने में भी मजा आता है.’’  अनुरंजन ने मुसकराते हुए पैन ले लिया और कहा, ‘‘हम में से जो श्रेष्ठ है, उसी की जीत होगी.’’ और पैन ले कर वहां से चल दिया. शाम को जयेश ने यह बात प्रसेनजीत को बताई, ‘‘वह वाकई में बहुत अच्छी तरह से पेश आया. उस का स्वभाव मुझे अच्छा ही लगा.’’ तभी संदेश बोला, ‘‘तभी तो वह लोकप्रिय है.’’ प्रसेनजीत ने एक और रणनीति को कार्यान्वित किया, ‘‘अब ढेर सारे चौकलेट ले लेते हैं. चौकलेट सभी को पसंद आते हैं.

इस से बाकियों के साथ आत्मीयता बढ़ेगी.’’ संदेश ने हामी भरी, ‘‘अच्छा तरीका है.’’ जयेश बोला, ‘‘अब मुझे समझ में आ रहा है कि अमीर व्यक्ति लोगों का वोट कैसे खरीद सकते हैं.’’ परंतु अगले दिन जब जयेश महाविद्यालय पहुंचा तो उसे जैसे झटका लगा. हर विभाग में उस के चित्र समेत पोस्टर लगे थे, जिन पर लिखा था, ‘जयेश को वोट देने का मतलब है ज्यादा असाइनमैंट और ज्यादा पढ़ाई.’ पोस्टर में नीचे इस प्रकार से लिखा था, ‘जयेश : ‘‘मुझे असाइनमैंट अच्छे लगते हैं.’’ अगर आप को और असाइनमैंट नहीं चाहिए तो अनुरंजन नावे को वोट दीजिए.’ यह देख जयेश सकते में आ गया. उस ने पोस्टरों की लड़ी में से एक पोस्टर निकाल कर हाथ में ले लिया. रातोंरात अपने विरोधी पक्ष को अपने से ऊपर होता देख वह दंग रह गया. उस के ही मुंह से निकले हुए शब्द थे ये. वाणिज्य और कला के विद्यार्थी कहां असाइनमैंट जैसी चीज को पसंद करने वाले थे.  अनुरंजन नावे ने उस की यह बात पकड़ कर उसे इन दोनों विभागों के छात्रों से विमुख कर दिया था. मैनेजमैंट के छात्र भी कहां अधिक पढ़ाई चाहते थे और रही बात विज्ञान के छात्रों की तो वे भी ज्यादा बोझ तले नहीं जीना चाहते थे.

कुल मिला कर असाइनमैंट या गृहकार्य ही कोई नहीं चाहता था और अधिक की तो बात ही नहीं बनती. उस के विरोधी ने अपने हाथ खोल दिए थे. जयेश समझ गया कि उस का विरोधी किस हद तक जा सकता है. ऐसा काम कम से कम वह तो कभी न करता. प्रसेनजीत ने जब वह पोस्टर देखा तो जयेश से कहा, ‘‘बहुत दुर्भाग्य की बात है.’’ जयेश ने कट्टरता से कहा, ‘‘दुर्भाग्य नहीं, बिलकुल अनुचित व्यवहार है.’’ प्रसेनजीत बोला, ‘‘तुम ने ये क्यों उस से कह दिया कि असाइनमैंट करना तुम को अच्छा लगता है?’’ जयेश बोला, ‘‘मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था. मैं तो ऐसे ही सभी से यह कहता रहता हूं. मुझे थोड़े ही पता था…’’  प्रसेनजीत बोला, ‘‘चुनाव के इंचार्ज नीलेंदु सर से शिकायत दर्ज कर के कोई फायदा नहीं है.’’ जयेश उन से कहने लगा, ‘‘लेकिन उस ने मेरे कथन को संदर्भ से बाहर कर दिया है और मेरे खिलाफ इस का इस्तेमाल कर रहा है.’’ प्रसेनजीत जयेश को समझते हुए बोला, ‘‘कितनों को तुम संदर्भ बताते फिरोगे.’’ तभी संदेश भी वहां आ पहुंचा. सारा मसला उसे पता था. उस ने कहा, ‘‘राजनीति में ऐसा ही होता है.

विरोधी पक्ष वाले सत्य को इस तरह से रबड़ की तरह खींच कर पेश करते हैं कि उस का मूल अर्थ ही गायब हो जाए.’’ जयेश बोला, ‘‘वे लोग गंदे हैं.’’ प्रसेनजीत बोला, ‘‘वह तो है. लेकिन मुझे एक बात बताओ. तुम इस चुनाव को कितनी बुरी तरह से जीतना चाहते हो?’’ जयेश ने दृढ़ता से कहा, ‘‘अब तो किसी भी कीमत पर…’’ प्रसेनजीत बोला, ‘‘तो तुझे सख्त होने की जरूरत है. राजनीति कमजोरों के लिए नहीं है.’’  यह सुन कर जयेश बोला, ‘‘तुम यह सुझव दे रहे हो कि मैं ईंट का जवाब पत्थर से दूं?’’ प्रसेनजीत बोला, ‘‘यही करना होगा. जो हो गया, उस पर विचार करते रहने से बात नहीं बनेगी.’’ संदेश ने कहा, ‘‘हमें भी कुछ सोचना पड़ेगा.’’ प्रसेनजीत ने संदेश से कहा, ‘‘संदेश, हम तीनों में से सब से ज्यादा निष्ठुर तुम हो. मैं ने कई बार तुम्हें क्रिकेट के मैदान में चीटिंग करते हुए भी देखा है.’’

संदेश को इस इलजाम से कोई फर्क नहीं पड़ा, ‘‘तो..?’’ प्रसेनजीत बोला, ‘‘इस की जवाबी कार्यवाही में क्या करना चाहिए?’’ संदेश ने सोचते हुए कहा, ‘‘अनुरंजन नावे के बारे में हमें ज्यादा कुछ पता नहीं है. हमें मनगढ़ंत कुछ बनाना पड़ेगा.’’ जयेश ने सत्य के प्रयोग पर बल दिया, ‘‘मैं झठ का सहारा नहीं लूंगा.’’ संदेश बोला, ‘‘मैं छानबीन कर के पता लगाने की कोशिश करता हूं कि उस के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए कुछ मिल सकता है क्या?’’ जयेश बोला, ‘‘मैं ने तय कर लिया है कि मैं उस के स्तर तक नहीं गिरना चाहता. अगर मैं अपने विचारों की गुणवत्ता पर नहीं जीत सकता तो अपने सिर को ऊंचा रख कर हार जाना पसंद करूंगा.’’ प्रसेनजीत ने फिर भी संदेश को अनुरंजन नावे की पृष्ठभूमि खंगालने की अनुमति दे दी.

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