पटेल चौक पर सुबह मजदूरों की भीड़ रहती थी. लोग दूरदराज के इलाकों से शहर में मजदूरी करने आते थे. केशव भी एक मजदूर था. वह भी पटेल चौक पर सुबह आ कर खड़ा हो जाता था. इस आस से कि किसी बाबू के पर घर मजदूरी का काम मिल जाए.
केशव की बीवी सुहागी घरों में बाई का काम करती थी. वह कसे हुए बदन की खूबसूरत औरत थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उस की एक जवान बेटी भी है.
सुहागी की बेटी सोनम 10वीं जमात में पढ़ती थी. 16 साल की सोनम बड़ी खूबसूरत लड़की थी. उस के नैननक्श तीखे थे. उस की कजरारी आंखें बरबस ही लोगों को अपनी तरफ खींच लेती थीं. वह जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी, जिस से उस का रंगरूप निखर चुका था.
हर रोज इलाके की पतली गलियों से हो कर सोनम स्कूल जाती थी. आसपास के घरों में ज्यादातर लोग मजदूर तबके
के थे, जो मजदूरी कर के अपना पेट पालते थे.
केशव की मजदूरी से तो घर चलाना मुश्किल था. सुहागी दूसरों के घरों में बाई का काम कर के केशव से ज्यादा पैसा कमा लेती थी. इस बात का उसे गुमान भी था.
दूसरे मजदूरों की औरतें केशव पर ताना मारतीं, ‘सुहागी रोज सिंगार कर के कहां जाती है? किसी यार से मिलने जाती होगी. तुझे कोई परवाह नहीं है.’
अनपढ़, जाहिल औरतों के तानों से केशव परेशान हो जाता था. वह सुहागी से ताने सुनने की बात कहता था, पर सुहागी इस से नाराज नहीं होती थी. वह केशव को ही समझाने लगती, ‘‘क्या ये औरतें रुपए कमा कर मुझे देंगी? अरे, गाल बजाने और कमाने में बड़ा फर्क होता है.’’
केशव चुप लगा जाता.
सुहागी महेश के घर बाई का काम करती थी. महेश बिजनैस करता था. उस की बिजली के सामान की बड़ी दुकान थी. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. लेकिन पिछले साल उस की बीवी गुजर गई थी, जिस से उस की जिंदगी बेरंग हो गई थी.
महेश जिंदगी की बोरियत दूर करने के लिए सुहागी के करीब आ गया था. महेश जैसा मालदार आदमी सुहागी को मिला था. वह महेश का दिल बहलाने लगी थी. बदले में वह कभी साड़ी, तो कभी रुपए सुहागी को दे देता था.
उस दिन आसमान में काले बादल छाए थे. महेश दुकान जाना चाह रहा था कि झमाझम बारिश होने लगी. सुहागी का काम खत्म हो चुका था. वह बारिश में भीग कर घर जाने लगी.
महेश ने उसे रोक दिया, ‘‘अरे सुहागी, इस बारिश में भीग जाओगी. जब बारिश रुक जाएगी, तब चली जाना.’’
‘‘साहब, भीगने से मुझे कुछ नहीं होगा,’’ कह कर सुहागी जाने लगी.
‘‘अरे, रुको भी,’’ महेश ने सुहागी का हाथ पकड़ कर रोक लिया.
झमाझम बारिश हो रही थी. बिजली कड़क रही थी. बरसाती हवा फिजाओं में शोर मचा रही थी. महेश का दिल इस तूफानी मौसम में बहक गया. वह सुहागी को बांहों में भर कर चूमने लगा.
सुहागी भी महेश की बांहों में सिमट गई. पलभर में दोनों बिछावन पर थे. जिस्म की आग भड़क चुकी थी. उस ने सुहागी के कपड़े उतार दिए. उस के उभार महेश पर कहर बरपाने लगे.
महेश सुहागी पर झपट पड़ा. वह सैक्स करने लगा. वह भी चिपक कर उस का साथ देने लगी.
थोड़ी देर में जब जिस्म की आग ठंडी हुई, तो वे दोनों अलग हुए. जोरदार बारिश अब थम चुकी थी.
‘‘अच्छा साहब, अब मैं चलती हूं,’’ सुहागी ने कहा.
‘‘ये 1,000 रुपए हैं, रख लो,’’ महेश ने कहा. सुहागी ने रुपए ले लिए. वह मुसकरा कर कमरे से बाहर निकल गई.
सुहागी महेश साहब के दिए हुए कपड़े, साड़ी वगैरह अपनी बेटी सोनम को दिखाती थी. वह सोचती थी कि महेश साहब के दिए हुए गिफ्ट देख कर सोनम खुश होगी.
लेकिन सोनम बच्ची नहीं थी. वह 16 साल की जवान लड़की थी. उसे समझते देर नहीं लगी कि मां और महेश साहब के बीच गलत संबंध हैं. उस के बापू में क्या कमी है, यही न कि वे एक मजदूर हैं. लेकिन बापू मेहनत से जो कमा कर लाते हैं, उस से घर की दालरोटी चलती है.
केशव की मजदूरी की अलग दुनिया थी, जिस में वह हर दिन पिसता रहता था. उसे सुहागी के चालचलन को देखने की फुरसत कहां थी. घर का खर्चा चल जाए, उसे यही चिंता रहती थी.
सोनम मां के बननेसंवरने का राज जान गई थी. वह जान गई थी कि मां महेश साहब के साथ क्या गुल खिला रही है. उस के जवान होते मन पर अजीब सा असर पड़ रहा था.
सोनम भी अपने लिए बौयफ्रैंड की तलाश करने लगी. वह खूबसूरत थी. भला उस की ओर कौन नहीं खिंचता.
गंगा किनारे की झोंपड़पट्टी में रवि रहता था. वह गाडि़यों की साफसफाई का काम करता था. गैराज में वह क्लीनर था. उस का पहनावा किसी बाबू से कम नहीं था. वह काली पैंट के साथ चैक की लाल शर्ट पहनता था. वह चोरी की मोटरसाइकिल औनेपौने दाम पर खरीद कर बेच देता था. उस पैसे से वह ऐश करता था.
सोनम जब स्कूल जाती, तो रवि उस का पीछा करता था. सोनम उसे देख कर मुसकरा देती थी. उस की मुसकराहट रवि की चाहत को और बढ़ा देती थी.
एक दिन सोनम ने स्कूल से लौटते समय चर्च के पास रवि को मोटरसाइकिल पर बैठा देखा. वह ठिठक कर रुक गई.
हिम्मत कर के सोनम ने पूछ लिया, ‘‘मेरा पीछा क्यों करते हो?’’
‘‘मुझे तुम अच्छी लगती हो,’’ रवि ने कहा.
‘‘अगर कोई हम लोगों को देख लेगा, तो क्या सोचेगा…’’ सोनम ने कहा.
‘‘यही कि हम दोनों दोस्त हैं,’’ रवि ने कहा.
यह सुन कर सोनम मुसकरा दी. शह पा कर रवि ने कहा, ‘‘चलो, चौक तक तुम्हें छोड़ देता हूं. वहां से घर चली जाना.’’
सोनम रवि की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. रवि के मन की मुराद पूरी हो गई थी. उस ने सोनम को मोटरसाइकिल से चौक तक छोड़ दिया. रास्ते में दोनों ने एकदूसरे का नाम पूछ लिया था.
रवि हर रोज सोनम को स्कूल जाने के रास्ते में मिल जाता था. वह सोनम को मोटरसाइकिल पर घुमाने लगा. होटल में खाना खाने और मौल में मूवी देखने का शौक सोनम का पूरा होने लगा था.
रवि सोनम के दिलोदिमाग पर छा गया. सोनम कमसिन थी. वह दुनिया के फरेब को जानती नहीं थी. वह रवि को दिलोजान से चाहने लगी. लेकिन रवि शातिर था. उस ने सोनम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. उस की निगाह तो सोनम के जिस्म पर थी. वह उस के जिस्म को पाने के जुगाड़ में लग गया. वह उस से प्यार का नाटक करने लगा.
एक दिन रवि और सोनम पार्क में बैठे हुए थे. उन दोनों के सिवा वहां कोई नहीं था. रवि ने सोनम का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘हम लोगों को घर से भाग कर शादी कर लेनी चाहिए. इस तरह मिलनाजुलना ठीक नहीं है.’’
‘‘मैं शादी के लिए मां और बापू
को मनाने की कोशिश करूंगी,’’ सोनम ने कहा.
‘‘तुम्हारे मांबापू शादी के लिए नहीं मानेंगे. उलटे तुम्हारा स्कूल जाना छुड़ा कर घर में बंद कर देंगे. हम लोगों को जल्दी ही घर से भाग कर शादी कर लेनी चाहिए,’’ रवि ने कहा.
सोनम घबरा गई. एकबारगी उस के जेहन में मांबापू का चेहरा घूम गया.
‘‘घर से भाग कर शादी… अभी नहीं, मैं सोच कर बताऊंगी,’’ सोनम ने कहा.
दिन बीत रहे थे. सोनम की मुहब्बत रवि पर परवान चढ़ती जा रही थी. उस की उम्र नासमझी की थी. वह पढ़ाई से दूर होने लगी.
इस बीच रवि सोनम से घर से भागने की जिद करता रहा. वह उस की जिद के आगे टूट गई और घर से भागने को राजी हो गई.