‘‘बेकुसूरों की भी पिटाई कर दी,’’ राकेश ने कहा.
‘‘यहां भी जंगलराज ही तो है,’’ बिशनलाल बोला.
‘‘मुझे तो लगा कि हमारी भी...’’ चांद मोहम्मद ने बात अधूरी छोड़ दी.
‘‘हमारी क्यों? हम ने तो कभी अपना सिर नहीं उठाया. उन के हर अच्छेबुरे समय में साथ दिया है,’’ अनुपम ने कहा.
‘‘गेहूं के साथ घुन भी पिसता है,’’ बिशनलाल बोला.
‘‘हां, हो भी सकता था. हम क्या कर सकते हैं? उन की कैद में?हैं. गुलाम हैं उन के,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.
‘‘चांद मोहम्मद, कैद में तो सभी हैं. तुम अपनी कहो,’’ राकेश बोला.
‘‘क्या कहूं...’’ चांद मोहम्मद ने कहा, ‘‘जब मैं बाहर था तो सोचता था कि मेरे साथ जो हुआ, वह इसलिए हुआ क्योंकि मैं मुसलिम हूं. लेकिन, तुम लोगों को सुन कर लगा कि सभी का एक सा हाल है. ज्यादा सोचना भी ठीक नहीं, वरना फायदा उठाते हैं धर्म के ठेकेदार.’’
‘‘तो तुम यह कहना चाहते हो कि तुम भी बेकुसूर हो?’’ राकेश ने कहा.
‘‘नहीं, मैं बेकुसूर नहीं हूं, तो कुसूरवार भी नहीं हूं,’’ कह कर चांद मोहम्मद चुप हो गया.
‘‘साफसाफ कहो, तुम क्या कहना चाहते हो?’’ अनुपम ने पूछा.
चांद मोहम्मद को वह जमाना याद आ गया, जब वह शेरोशायरी किया करता था. प्यारमुहब्बत भरी गजलें लिखा करता था. फिर उस की शादी उसी लड़की से हो गई, जिसे वह बेहद प्यार करता था. पत्नी पेट से थी. चांद मोहम्मद एक जलसे में गया हुआ था. लौट कर वह वापस आया, तो पूरी बस्ती जल कर राख हो चुकी थी. हर तरफ घायलों की कराहें, जले हुए घर, लाशों के ढेर लगे हुए थे. उस की पत्नी मर चुकी थी. उस के पेट में त्रिशूल घुसा हुआ था.
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