कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

राखी का त्योहार 4 दिनों बाद है पर निहाल बहुत परेशान है. कारण यह है कि पिछले रक्षाबंधन पर निहाल ने अपनी बहन मिनी से वादा किया था कि अगले साल रक्षाबंधन तक वह उस को एक स्मार्टफोन गिफ्ट कर देगा. लेकिन यह तो अब तक होता दिख नहीं रहा था क्योंकि निहाल अभी तक सिर्फ 10 हजार रुपए ही जमा कर पाया था और एक अच्छा स्मार्टफोन कम से कम 20 हजार रुपए में आता है. निहाल एक युवा बेरोजगार था. शहर के एक अच्छे कालेज से परास्नातक होने के बावजूद उसे नौकरी नहीं मिली थी.

निहाल ने बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाएं दीं पर इसे उस का बुरा समय कहें या समाज में बढ़ता हुआ बेरोजगारी का दौर, उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिली.

निहाल इंटरव्यू देदे कर थक चुका था और अब उस की हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी. इसीलिए उस ने अब हाथपैर मारना भी छोड़ दिया था. अब वह इधरउधर प्राइवेट जौब कर के ही अपना खर्चा चला रहा था.

उस के कालेज के पुराने दोस्त ही उस का एकमात्र सहारा थे जो कभीकभार पैसे से मदद कर देते थे या उसे कोई ऐसा कामचलाऊ काम दिला देते थे जिस से वक्तीतौर पर निहाल को कुछ पैसे मिल जाते और उस का काम चल जाता था.

निहाल का सब से विश्वसनीय दोस्त था देवराज उर्फ भैयाजी. कहने की जरूरत नहीं है कि भैयाजी प्रदेश की राजनीति में हाथपैर मार रहा था.

राजनीति में पैठ बनाने का आसान रास्ता विश्वविद्यालय था और इसीलिए देवराज गैरजरूरी पाठ्यक्रमों में दाखिला ले कर पढ़ाई कर रहा था जिस से होस्टल के कमरे में ही रहते हुए छात्र राजनीति आसानी से करे. चूंकि छात्र नेताओं को बड़े राजनेता अपना एक अच्छा वोटबैंक मानते हैं, इसलिए उन से भी देवराज का अच्छा संपर्क बना हुआ था.

निहाल जब भी किसी तरह की समस्या में घिरा होता तब वह भैयाजी के पास आता था और हर बार भैयाजी उस की सहायता कर देता था. हालांकि, निहाल यह जानता था कि देवराज भले ही उस का पुराना दोस्त है पर उस की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा से निहाल को भी डर लगा रहता था.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं, भैयाजी?’’ दरवाजे पर खड़े निहाल ने हौल में बैठे देवराज से पूछा.

‘‘अरे, निहाल, अरे यार, क्यों शर्मिंदा करते हो, आओआओ, अंदर आओ यार,’’ देवराज ने आगे बढ़ कर निहाल को गले लगा लिया.

‘‘और यह क्या भैयाजीभैयाजी कहते रहते हो. अरे, मैं अपने दुमछल्लों के लिए भैयाजी हूं, तुम्हारे लिए नहीं. तुम तो मु?ो देव ही कहा करो,’’ देवराज उर्फ भैयाजी ने निहाल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘हां, पर नहीं, जब अपना दोस्त आगे बढ़ जाए और आप खुद उस से पीछे रह जाएं तो उस का सम्मान तो करना ही पड़ेगा. है न भैयाजी?’’ इतना कह कर देवराज और निहाल जोर से हंसने लगे.

‘‘आओ बैठ कर चाय पीते हैं, बड़े दिन हो गए तुम्हारे साथ चाय नहीं पी हम ने,’’ देवराज ने निहाल को अंदर ले जाते हुए कहा.

‘‘हां, चाय तो पिऊंगा ही, पर…’’ निहाल हिचकिचा सा गया.

‘‘हांहां, बोलो न क्या बात है. तुम कुछ छिपा रहे हो न मु?ा से?’’ देवराज ने निहाल के संकोच को पढ़ लिया था.

‘‘हां, भैयाजी, वह दरअसल रक्षाबंधन आने वाला है और मैं ने मिनी को स्मार्टफोन देने का वादा किया है. उस के लिए कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं,’’ शर्म से गड़ गया था निहाल.

‘‘अमां यार, निहाल, बस, इतनी सी बात, बता भाई कितने पैसे चाहिए तु?ो?’’ देवराज ने माहौल को हलका बनाते हुए कहा.

‘‘वो भैयाजी, मेरे पास 10 हजार रुपए हैं, और जो स्मार्टफोन मिनी को चाहिए वह कम से कम 20 हजार रुपए में आएगा. मैं ने पिछले साल ही उस से वादा किया था कि उसे स्मार्टफोन दिलाऊंगा. तो अगर 10 हजार रुपए मिल जाते तो मेहरबानी…’’ बीच में ही रोक दिया देवराज ने निहाल को, ‘‘कैसी मेहरबानी यार, एक दोस्त ही दोस्त के काम आता है. आज मैं तुम्हारे काम आ रहा हूं और कल को अगर मु?ो जरूरत पड़ जाए तो तुम मेरे काम आना. ये लो 12 हजार रुपए,’’ देवराज ने निहाल के हाथ में पैसे रखते हुए कहा.

‘‘पर भैयाजी, मु?ो तो सिर्फ 10 हजार रुपए ही चाहिए,’’ यह कहते हुए निहाल की आंखों में नमी उतर आई थी.

‘‘अरे भाई, रक्षाबंधन का त्योहार है, मोबाइल के साथसाथ मिठाई की भी तो जरूरत होगी न, बाकी के 2 हजार रुपए मिठाई के लिए हैं. और हां, एक राखी मेरी भी कलाई पर बांधेगी मिनी,’’ देवराज ने निहाल की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा.

निहाल ने देवराज का बहुत आभार जताया और यह भरोसा भी दिलाया कि जल्दी से जल्दी वह देवराज के पैसे लौटा देगा, बदले में देवराज सिर्फ मुसकरा दिया.

भैयाजी से पैसे ले कर निहाल सीधा बाजार गया और जो ब्रैंड मिनी ने बताया था उसी ब्रैंड का मोबाइल खरीद लिया.

रक्षाबंधन का दिन भी आ गया. मिनी ने भाई निहाल की कलाई पर राखी बांधी और मिठाई भी खिलाई. निहाल ने एक चमकीली पैकिंग में मोबाइल मिनी की ओर बढ़ा दिया जिसे देख कर मिनी के चेहरे पर चमक बिखर गई.

‘‘ओह, वाओ भैया, आप दुनिया के सब से अच्छे भैया हो. आप मेरी पसंद का ब्रैंड वाला मोबाइल ले आए. अरे भैया, आप ने तो कमाल कर दिया,’’ मोबाइल ले कर ?ामने लगी थी मिनी. भाईबहन का यह प्यार देख कर निहाल की मां और पापा की आंखों में आंसू आ गए. निहाल भी खुशी से मिनी को चहकते हुए देखता रहा.

कौन कहेगा कि कुछ दिनों पहले फ्रौक पहन कर घूमती थी मिनी और आज शहर के विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में स्नातक की पढ़ाई कर रही थी. उस का सपना प्रोफैसर बनने का था जिस के लिए मिनी जीजान से लगी थी और उस से ज्यादा तो निहाल चाहता था कि मिनी पढ़लिख कर प्रोफैसर बन जाए ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके.

निहाल ने पुरुषों द्वारा प्रताडि़त कितनी ही महिलाओं के किस्से सुने थे, इसलिए वह बिलकुल नहीं चाहता था कि मिनी की शादी के बाद वह किसी भी तरह से अपने पति से दब कर रहे. वह नहीं चाहता था कि घर से विश्वविद्यालय जाते समय मिनी को बस की भीड़ में दबना पड़े, इसलिए उस ने एक पुरानी स्कूटी दिला दी थी. निहाल ने बड़े ही प्यार से उस की पिछली नंबर प्लेट पर लिखवा दिया था. ‘मिनी मेल.’ कितना निश्छल और निस्वार्थ था भाईबहन का यह प्यार. निहाल का मोबाइल बजा तो उस ने देखा कि देवराज का फोन था.

‘‘हैल्लो, हां, देव भैयाजी, बताइए इस नाचीज को कैसे याद किया,’’ निहाल ने मोबाइल कान से लगाते हुए कहा.

‘‘अरे, कुछ नहीं बस ऐसे ही. दरअसल, तुम तो जानते ही हो कि मैं ने सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में अपने पैर जमाने के लिए ही यहां दाखिला ले रखा है और यहां से निकल कर मु?ो खुल कर राजनीति करनी है और उस के लिए जरूरी है कि मेरा विश्वविद्यालय में खूब नाम हो और उस के लिए मु?ो धरने करना, भूख हड़ताल पर बैठना और छात्रों के रहनुमा के रूप में अपनेआप को प्रदर्शित करना है. यार, इसी सब में लगा हुआ हूं,’’ एक सांस में ही देवराज इतना कुछ बोल गया था.

‘‘हां, तो निहाल, तू ऐसा करना, ठीक 11 बजे विधानसभा के सामने आ जाना. अपने और लोग भी होंगे वहां पर. थोड़ी नारेबाजी, थोड़ी ड्रामेबाजी होगी और एकाध मीडिया वालों को भी इंटरव्यू दे देंगे और बस, खानापीना,’’ आखिरी के शब्द कहते हुए हंसने लगा था देवराज.

‘‘हां बिलकुल, तुम बुलाओ और मैं न आऊं ऐसा तो हो ही नहीं सकता. तुम निश्चिंत रहो, मैं पहुंच जाऊंगा,’’ निहाल ने हामी भर दी.

निहाल समय से पहले ही धरना स्थल पर पहुंच गया था. करीब 100 युवा विद्यार्थी वहां पर अपनी कुछ मांगों को ले कर प्रदर्शन के लिए आए थे. कुछ देर बाद देवराज भी अपने दुमछल्लों से घिरा हुआ एक खुली जीप में आया. देवराज ने सब के बीच खड़े हो कर भाषण दिया. क्या खूब बोला था. यह वह देवराज नहीं था जिस को निहाल जानता था. यह तो एक नए तेवर वाला कोई दूसरा ही देवराज था.

देवराज यहां पर भैयाजी ज्यादा था और उस के भाषण से लगता था कि जैसे देश का कोई बड़ा नेता हो. धरना खत्म हुआ तो देवराज ने सब के बीच से आगे बढ़ कर निहाल कोे गले लगाया और कहा, ‘‘दोस्त, तुम ने मेरे लिए जो समय निकाला उस के लिए तुम्हारा बहुत आभारी हूं. वरना आज की दुनिया में कौन दोस्तों को याद रखता है.’’

‘‘अरे देव, यह तो तुम्हारा बड़प्पन है. मैं तो कुछ भी नहीं,’’ निहाल ने कृतज्ञता से देवराज को देखते हुए कहा. देवराज ने कुरते की जेब में हाथ डाल कर 10 हजार रुपए निकाले और निहाल को पकड़ाते हुए बोला, ’’जानता हूं दोस्त, तुम्हारा समय बहुत कीमती है. मैं उस की पूरी कीमत तो नहीं चुका सकता पर जो थोड़ाबहुत कर सकता हूं, बस, वो ही कर रहा हूं.’’

‘‘य…ये…देवराज, पैसे क्यों दे रहे हो,’’ निहाल चौंक कर बोला.

इस के बदले में देवराज ने निहाल के हाथों को अपने हाथों में ले कर सिर्फ अपनी आंखों के मौन से ही सब कह दिया जो शब्दों से नहीं कहा जा सकता था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...