Story In Hindi: ‘‘तो आप और पैसे नहीं देंगे?’’ अशोक ने पूछा.

‘‘अरे, कहां से ला कर दूं तुम्हें. ये 10,000 रुपए कम हैं क्या... अब तुम अपने खर्च बढ़ा लो, तो मैं क्या कर सकता हूं. और अब हम से नहीं होगा,’’ अशोक के पिताजी ने कहा.

‘‘दे दीजिए न. अब बाहर रहता है, तो खर्चे तो होंगे ही,’’ अशोक की मां मन्नू देवी जब अपने पति बजरंगी बाबू से बोलीं, तो वे मानो गरजने लगे, ‘‘अभी खेती के पीछे इतने खर्चे तुम लोगों को नहीं दिख रहे क्या...

‘‘पहले ही कम बारिश के चलते खेती के पटवन के पीछे डीजल खरीदने में ही हालत खराब थी. भाड़े पर ट्रैक्टर लिया, तो खेत की जुताई हुई.

‘‘फिर बीज और खाद के पीछे अच्छीखासी रकम खर्च हो गई. अभी फसल थोड़ी ठीक लग रही, तो कीड़ों का प्रकोप शुरू हो गया है. उस के लिए भी दवाओं का छिड़काव करना होगा.

‘‘वासंती फसल में जो थोड़ीबहुत रकम आई थी, वह सब इन सब के पीछे स्वाहा हुई जा रही है. भंडार में देख लो जा कर. मुश्किल से 4-6 बोरा अनाज होगा. और शारदीय फसल तैयार होने में 2-4 महीने तो लग ही जाएंगे. यह खेती न हुई, खर्चों का घर हो गया. और इस को शहर की हवा लग रही है...’’

‘‘अभी पढ़ रहा है, तो खर्चे होंगे ही...’’ मन्नू देवी ने भी जवाब दिया, ‘‘यह खर्चा कहां गलत हो रहा है. कल को इस की नौकरी लगी, तो भरभर थैली रुपए बटोरते रहिएगा.’’

‘‘भरभर थैली... इतना आसान है नौकरी, जो मिल जाएगी. देख तो रहा हूं औरों को, पढ़लिख कर मारेमारे फिर रहे हैं,’’ बनारसी बाबू बोले.

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