Hindi Story : कर्नल धर्म सिंह जैसे ही अपने दफ्तर से निकले कि उन के ड्राइवर ने तेजी दिखाते हुए कार का दरवाजा खोला, पर कर्नल ने इशारे से ड्राइवर को अपने पास बुलाया और उसे बाजार से कुछ सामान लाने का आदेश दिया. फिर वे अपने घर की ओर पैदल ही चल पड़े. दफ्तर से घर का रास्ता मुश्किल से कुछ ही गज की दूरी पर था.

पत्नी रजनी ने कर्नल धर्म सिंह को पहले ही मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि उन के गांव के रिश्ते के चाचा रघुवीर सिंह अपने बेटे ज्ञानेश के साथ उन से मिलने आए हैं.

कर्नल धर्म सिंह अपने गांव से आने वाले किसी भी शख्स की खूब आवभगत करते थे. गांव से उन का प्यार और मोह भंग नहीं हुआ था.

रघुवीर चाचा से मिलते ही कर्नल धर्म सिंह ने उन के पैर छुए और चाचा ने भी उन्हें अपने गले से लगा लिया. ज्ञानेश ने भी पूरी इज्जत के साथ कर्नल धर्म सिंह के पैर छुए.

बातचीत का दौर चला, फिर चाचा रघुवीर सिंह अपने मुद्दे पर आ गए. उन्होंने कहा, ‘‘बेटा धर्म सिंह, तुम्हारा यह छोटा भाई ज्ञानेश अगले हफ्ते मेरठ में लगने वाले सेना के भरती कैंप में जाने की तैयारी कर रहा है.’’

‘‘चाचाजी, देश की सेवा से बढ़ कर तो कोई चीज हो ही नहीं सकती. ज्ञानेश जैसे हट्टेकट्टे नौजवानों के सेना में शामिल होने से सेना तो मजबूत होगी ही, हमारे गांव का नाम भी रोशन होगा,’’ कर्नल धर्म सिंह ने कहा.

‘‘बेटा, मैं इसीलिए तो तुम्हारे पास आया हूं कि तू इस की कुछ मदद कर दे.’’

‘‘चाचाजी, यह भी कोई कहने की बात है. ज्ञानेश मेरा छोटा भाई है. इस के कसरती बदन को देख कर ही लग रहा है कि यह सेना के लिए फिट है. रही बात लिखित इम्तिहान की तो इस के लिए मैं कुछ किताबें बता देता हूं, उन से पढ़ाई कर के यह अच्छी तैयारी कर ले.’’

यह सुन कर चाचा रघुवीर सिंह कुछ देर के लिए चुप हो गए, उन के चेहरे की रंगत भी हलकी पड़ गई.

फिर कुछ सोच कर वे धीरे से बोले, ‘‘धर्म सिंह, तैयारी तो इस ने खूब कर रखी है. हकीकत तो यह है कि आजकल बिना लिएदिए कोई बात नहीं बनती.’’

‘‘चाचाजी, सेना की भरती में यह सबकुछ नहीं चलता है. हमारा सिस्टम भले ही कितना भी खराब क्यों न हो गया हो, हमारी सेना अभी भी साफसुथरी है. आखिर देश की हिफाजत का सवाल जो है.’’

कर्नल धर्म सिंह की यह बात सुन कर चाचा रघुवीर सिंह मुसकरा दिए और फिर बड़े यकीन से बोले, ‘‘धर्म सिंह, मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हें अभी सिस्टम की सही जानकारी नहीं है या फिर तुम अपनी सेना को पाकसाफ बताने की बहानेबाजी कर रहे हो.

‘‘आसपास के गांवों के 5 लोगों के नाम तो मैं यहां बैठेबैठे बता सकता हूं, जिन्होंने अपने बेटों की भरती में 2-2 लाख रुपए खर्च किए हैं.’’

यह बात सुन कर धर्म सिंह दंग रह गए. वे जानते थे कि सेना की भरती में ऐसा कुछ नहीं होता है और भरती मुहिम के दौरान कोई ऐसा कर भी नहीं सकता है. सबकुछ बड़ी साफगोई और सेना के बड़े अफसरों की निगरानी में होता है.

उन्होंने चाचा रघुवीर सिंह को सबकुछ समझाने की कोशिश की, लेकिन सब फेल. फिर चाचा रघुवीर सिंह ने जो कहा, वह किसी भी ईमानदार और देशभक्त सेनाधिकारी के लिए असहनीय था.

चाचा रघुवीर सिंह ने कहा, ‘‘बेटा धर्म सिंह, ऐसा लगता है कि तुम हमें बातों में उलझा रहे हो और हमारा काम नहीं करना चाहते. यह मत सोचो कि मैं यहां खाली हाथ आया हूं.’’

फिर चाचा रघुवीर सिंह ने अपनी अचकन में हाथ डाला और एकएक हजार रुपए के नोटों की 2 गड्डियां मेज पर रख दीं और कहा, ‘‘धर्म सिंह, गिन लो, पूरे 2 लाख रुपए हैं.’’

कर्नल धर्म सिंह का चेहरा नोटों की गड्डियों को देख कर लाल हो गया.

अगर चाचा रघुवीर सिंह की जगह कोई और होता, तो उन्होंने उसे घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया होता या जेल में भिजवा दिया होता.

कर्नल धर्म सिंह ने अपने गुस्से को शांत करने के लिए आधा गिलास पानी पीया, फिर यह सोचते हुए कि चाचाजी को समझाना बेकार है और चाचाजी के उन पर बहुत से एहसान हैं, इसलिए उन्होंने वे दोनों गड्डियां उठा कर अपने पास रख लीं.

इस से चाचा रघुवीर सिंह तो खुश हो गए, लेकिन रजनी पसोपेश में पड़ गई. रजनी को समझ में नहीं आया कि उन का यह देशभक्त पति इतनी आसानी से बेईमान कैसे हो गया? क्या पैसे में इतनी ताकत होती है, जो कर्नल धर्म सिंह जैसे ईमानदारों का भी ईमान बिगाड़ दे?

जब कर्नल धर्म सिंह ने रजनी से दोनों गड्डियों को लौकर में रखने को कहा, तो वे उन पर बिगड़ गईं और बोलीं, ‘‘तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं इन पैसों को हाथ भी लगाऊंगी? तुम ने अपना ईमान खो दिया तो क्या तुम उम्मीद करते हो कि सूबेदार की यह बेटी भी अपना ईमान खो देगी? लानत है तुम पर…’’

रजनी ने अपनी भड़ास निकालते हुए वह सबकुछ कह दिया, जो कहना नहीं चाहिए था. फिर कर्नल धर्म सिंह ने उन्हें कुछ ऐसा समझाया कि वे बुझे मन से उन गड्डियों को लौकर में रख आईं.

सेना में भरती का दिन आ गया. ज्ञानेश ने शारीरिक टैस्ट में अपना दमखम दिखाया और उस का आसानी से चुनाव हो गया. चाचा रघुवीर सिंह तो फूले नहीं समा रहे थे.

वे बारबार ज्ञानेश से कह रहे थे, ‘‘देखा बेटे, गड्डियों का असर. अब तू लिखित इम्तिहान में भी पास होगा.’’

कुछ दिनों बाद लिखित इम्तिहान हुआ. ज्ञानेश ने उस की भी खूब तैयारी की थी. कर्नल धर्म सिंह की बताई किताबों को उस ने खूब पढ़ा था. नतीजा वही रहा कि लिखित इम्तिहान में भी ज्ञानेश ने बाजी मार ली.

चाचा रघुवीर सिंह का तो खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था. गांव में लड्डू बांटते समय वे 2 लाख रुपए वाली बात किसी को बताना नहीं भूलते थे. फिर उन्होंने कर्नल धर्म सिंह के लिए भी देशी घी के 2 किलो स्पैशल लड्डू तैयार कराए. अगले ही दिन वे ज्ञानेश को ले कर कर्नल धर्म सिंह की कोठी पर जा पहुंचे.

कर्नल धर्म सिंह ने पहले की तरह ही दोनों की आवभगत की. चाचा रघुवीर सिंह तो पूरे जोश में थे. उन से यह बताने से रुका नहीं जा रहा था कि 2 लाख रुपए की वजह से ही ज्ञानेश को यह कामयाबी मिली. उसी जोश में वे पूछ बैठे, ‘‘धर्म सिंह, पैसे कम तो नहीं पड़े? आखिर सब को हिस्सा देना पड़ता है न. तुम्हारे पल्ले भी कुछ पड़ा है कि नहीं?’’

कर्नल धर्म सिंह को यह बात करेले की तरह कड़वी तो लगी ही, नुकीले कांटे की तरह दिल में भी चुभी. लेकिन उन्होंने बड़े सब्र से कहा, ‘‘चाचाजी, मेरे पल्ले तो सबकुछ पड़ गया.’’

‘‘मतलब, तुम ने किसी को कुछ भी नहीं दिया. अकेले ही….’’

‘‘हां चाचाजी… और क्या करता? जरा एक मिनट रुको, मैं अभी आया.’’

कर्नल धर्म सिंह उठ कर दूसरे कमरे में चले गए. चाचा रघुवीर सिंह ने इतराते हुए कहा, ‘‘देखा ज्ञानेश, आज की दुनिया में लोग कैसे पैसे के लिए मरते हैं. धर्म सिंह उस दिन कैसी बड़ीबड़ी बातें कर रहा था, लेकिन देखो कैसे अकेले ही 2 लाख रुपए हड़प गया.’’

तभी कर्नल धर्म सिंह एकएक हजार की 2 गड्डियां ले कर कमरे में दाखिल हुए. उन के हाथों में नोटों की गड्डियां देख कर रघुवीर सिंह कुछ सोच में पड़ गए.

कर्नल धर्म सिंह ने दोनों गड्डियां उन के सामने रखते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, ये रहे आप के 2 लाख रुपए.’’

‘‘हां, लेकिन इन का मैं क्या करूं? इन पर तो तुम्हारा हक है. तुम ने तो सारा काम कराया है.’’

‘‘हां चाचाजी, मैं ने कोई काम नहीं कराया है और न ही कोई सिफारिश की है. ज्ञानेश का काम अपनी काबिलीयत से हुआ है. हमारी सेना में ऐसा कुछ नहीं होता, जैसा कि आप लोग सोचते हैं.’’

‘‘तो फिर तुम ने उस दिन 2 लाख रुपए क्यों रख लिए थे?’’

‘‘आप के 2 लाख रुपए दलालों के चंगुल से बचाने के लिए. मगर उस दिन मैं 2 लाख रुपए सहित वापस भेज देता, आप किसी दलाल के चंगुल में जा कर फंसते, जैसे आप के वे लोग फंसे हैं, जिन की आप ने उस दिन चर्चा की थी.’’

‘‘मतलब उन के बेटों की भरती भी उन की अपनी मेहनत से हुई थी, लेनदेन से नहीं?’’

‘‘हां चाचाजी. उस दिन भी तो मैं आप को यही समझा रहा था, लेकिन आप की समझ में बात नहीं आ रही थी.

‘‘दलाल लोगों से पैसे ले लेते हैं, काम हो जाता है तो कह देते हैं, काम हम ने कराया है. अगर काम नहीं होता है, तो वे बड़ी मुश्किल से कुछ ही पैसा वापस करते हैं.’’

‘‘हां बेटा, रामरतन का काम न होने पर उस का बड़ी मुश्किल से आधा पैसा ही वापस किया था. दलाल कहते थे कि खिलानेपिलाने में आधा पैसा खर्च हो गया. उन्होंने तो पूरी कोशिश की थी, लेकिन काम नहीं बना, तो वे क्या करें.’’

‘‘चाचाजी, आप गांव के अपने आदमी थे, इसलिए मुझे ऐसा करना पड़ा, नहीं तो मुझे ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं थी. अब इन पैसों को आप अपनी अचकन में रख लो.’’

चाचाजी ने धीरे से दोनों गड्डियां उठा कर अचकन में रखीं. वे एक निगाह कर्नल धर्म सिंह को देखते और दूसरी निगाह खाली होते हुए चाय के प्याले में डालते. बस, अब उन्हें चाय खत्म होने और कर्नल धर्म सिंह से विदाई की इजाजत लेने का इंतजार था.

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