कुछ ही दिनों में मुझे और काम मिले. मैं अकेले तो सब काम नहीं कर सकता था इसलिए मैं ने 2 नए आदमी रखे. इसलिए अलग औफिस के लिए बड़ी जगह की जरूरत पड़ी तो मैं ने 2 औफिस केबिन किराए पर लिए. बाहर वाले केबिन में मेरा स्टाफ और अंदर वाले में मैं खुद बैठता. कभीकभी सुगंधा भी आ कर मेरे साथ कुछ देर बैठती. मैं उसे पा कर बहुत खुश था. मुझे लगा मुझे मेरा मुकाम मिल गया है.
शादी के 2 साल बाद सुगंधा गर्भवती हुई. हम दोनों बहुत खुश थे. मैं उसे काफी समय देने लगा था. हर पल आने वाले मेहमान को ले कर सोचता और भविष्य का प्लान करता रहा. इस के चलते बिजनैस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था. सुगंधा मुझे बारबार आगाह करती कि वह तो आजीवन मेरे साथ है उस की इतनी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है और अपने काम पर ज्यादा समय दे. इसी बीच उस की मां चल बसी. दुर्भाग्यवश चौथे महीने में सुगंधा का मिसकैरेज हो गया. वह बहुत उदास रहने लगी थी और डिप्रैशन में चली गई.
अब मैं अपना पहले से भी ज्यादा समय उस पर देने लगा. वह मुझे समझाती कि कुछ दिनों की बात है मैं ठीक हो जाऊंगी. मैं उसे समझाता कि उस के ठीक होने के बाद ही मैं काम पर जाऊंगा. मेरे प्रोजैक्ट्स डेडलाइन मिस करने लगे थे. नए काम का अकाल पड़ने लगा और पुराने कस्टमर भी नाराज थे. इस बीच सुगंधा बहुत कुछ ठीक हो चली थी पर मेरा बिजनैस दुबारा पटरी पर नहीं आ सका था.
मुझे अपने स्टाफ की छंटनी करनी पड़ी. औफिस का किराया देने के लिए सुगंधा ने स्कूल से कर्ज लिया था. मैं फिर से अपने घर से काम करने लगा, पर काम तो था नहीं. काम ढूंढ़ना ही मेरा काम था. सुगंधा मुझे ढाढ़स देती और कहती कि काम के लिए और लोगों के पास जाऊं. मैं अपमानित महसूस कर रहा था कि कुछ दिन पहले मैं दूसरों को नौकरी देता था और अब मुझे काम के लिए दूसरों की चौखट पर जाना होगा. मुझे लगा कि सुगंधा इस बात से नाराज हुई थी.
कुछ ही दिनों के बाद अचानक मेरे जीवन में भूचाल आया. एक सुबह अचानक सुगंधा घर से गायब थी. वह एक लिफाफा छोड़ गई थी. उस में एक पत्र था जिस में लिखा था-
मैं आप को और इस शहर को छोड़ कर जा रही हूं. आप मेरी फिक्र न करें. मैं लौट कर आप के जीवन में आऊंगी या नहीं अभी नहीं कह सकती, पर आप की यादों के सहारे मैं जी लूंगी. आप किसी की कही एक बात हमेशा याद रखें- ‘‘जिंदगी जीना आसान नहीं होता, बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता, जब तक न पड़े हथौड़े की चोट, पत्थर भी भगवान नहीं होता. बस आप पूरी लगन से एक बार फिर अपने काम में लगे रहिए, कामयाबी जरूर मिलेगी. मेरी दुआएं और शुभकामनाएं सदा आप के साथ हैं.’’
मैं सकते में था कि सुगंधा ने ऐसा फैसला क्यों लिया होगा. मैं ने पापा से भी उस के बारे में पूछा कि शायद उन्हें कुछ बताया हो पर उन्हें भी कुछ पता नहीं था.
मुसीबत की इस घड़ी में सिर्फ पापा मेरे साथ खड़े रहे. मैं ने सुगंधा के स्कूल में पता किया कि शायद वह इसी गु्रप के किसी दूसरे स्कूल में हो. पर सुगंधा का कोई सुराग नहीं मिला. मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. पापा ने कहा, ‘‘फिलहाल तुम काम के बारे में सोचना छोड़ दो और मैनेजमैंट करो. तुम ने पहले से मैनेजमैंट में ग्रैजुएशन कर रखा है अब तुम एमबीए करोगे. वहां से तुम्हें बहुत सारे अवसर और विकल्प मिलेंगे. मैं इस घर को गिरवी रख कर तुम्हें एमबीए करने भेज सकता हूं. इस बीच तुम्हारा ध्यान भी दुनियादारी से हट जाएगा.’’
आईआईएम अहमदाबाद भारत का सर्वश्रेष्ठ मैनेजमैंट स्कूल माना जाता है, वहां मुझे दाखिला मिला. मेरी पढ़ाई और पूर्व अनुभव के चलते मुझे दूसरे वर्ष में मल्टीनैशनल कंपनी में बहुत अच्छा प्लेसमैंट मिल गया.
पढ़ाई पूरी होने के बाद 6 महीने की ट्रैनिंग ब्रिटेन में और फिर ब्रिटेन या अन्य किसी देश में पोस्टिंग होती.
मैं मैनेजमैंट करने के बाद लंदन गया. मैं अपने नए काम और पोस्टिंग से बहुत खुश था. हर 2-3 साल के बाद मेरी पोस्टिंग ब्रिटेन के अतिरिक्त फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में होती रही और साथ में मुझे प्रमोशन भी मिलता रहा. इस बीच 10 साल बीत गए. इस दौरान मुझे सुगंधा के बारे में कोईर् खबर नहीं मिली. ऐसा नहीं था कि मैं उसे पूरी तरह से भूल चुका था. प्रमोशन के साथ बढ़ते टारगेट और जिम्मेदारी के चलते अपने निजी जीवन के बारे में सोचने का समय कम मिलता था. फिर भी तन्हाई के आलम में उस की बहुत याद आती और शराब भी उस गमगीन माहौल
को भुलाने में नाकाम होती थी. मन में उम्मीद अभी भी जिंदा थी कि सुगंधा शायद किसी दिन वापस आ जाए. पापा से लगभग रोजाना संपर्क होता था.
मेरी कंपनी मुंबई में अपना दफ्तर खोलने जा रही थी और मेरे एक जूनियर कलीग को इस काम के लिए मुंबई भेजा गया. पूरा औफिस सैट होने के बाद कंपनी मुझे वहां चीफ बना कर भेज रही थी. इस औफिस के लिए के कुछ सौफ्टवेयर इंजीनियर चाहिए थे. इस के लिए पहले राउंड का इंटरव्यू मेरा कलीग लेता उस के बाद उस की डिटेल्स के साथ फाइनल इंटरव्यू फोन और विडियो कौनफ्रैंस द्वारा मुझे लेना था. मेरे पास 6 लोगों के नाम आए उन में से मुझे दो इंजीनियर मुझे लेने थे. पहले राउंड के इंटरव्यू के बाद जो लिस्ट मुझे मिली उसे देख कर मैं चौंक उठा. सुगंधा लिस्ट में टौप पर थी. पहले मुझे कुछकुछ संदेह हुआ कि शायद कोई और सुगंधा हो जब मैं ने उस का पूरा बायोडाटा देखा तो पाया कि वह मेरी सुगंधा ही थी. उस ने बीसीए के बाद एमसीए किया और पिछले 5 वर्षों से एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. मैं ने सुगंधा का फाइनल विडियो इंटरव्यू लिया. मैं ने 10 वर्षों से दाढ़ी बढ़ा रखी थी, आंखों पर चश्मा चढ़ गया था और कनपटी के बालों पर सफेदी थी. शायद उस ने मुझे पहचाना नहीं, मैं ने औफिस को बोल रखा था कि मेरा नाम उसे नहीं बताया जाए बस चीफ ऐग्जीक्यूटिव बोला जाए.
बहुत दिनों के बाद सुगंधा की तस्वीर देख कर मुझे जो खुशी मिली उसे शब्दों में मैं बयां नहीं कर सकता. मुझे उस के फोटो से ही सुगंधा की खुशबू का अहसास हो रहा था जो मेरे मन को तरंगित कर जाता. उस ने अपने को बड़ी खूबसूरती से मैंटैन कर रखा था. खैर उस का इंटरव्यू पूरा हुआ. मुझे उसे सिलैक्ट करना ही था, इसलिए नहीं कि वह मेरी ऐक्स थी. वह अपनी काबीलियत के बल पर टौपर थी.
मैं ने अपने मुंबई वाले कलीग से कहा कि बिना मेरे बारे में सुगंधा को बताए वह मेरे बारे में उस के मन की बात जानने की कोशिश करे. निजी बातें होशियारी से करे ताकि उसे संदेह नहीं हो. सुगंधा से बात कर उस ने फोन पर कहा, ‘‘आप के लिए मुझे बहुत पापड़ बेलने पड़े. मैं ने जब उस से पूछा कि आप के परिवार में आप के अलावा और कौनकौन हैं तो उस ने कहा मैं ही मेरा परिवार हूं.
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