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एक बार बौस ने उसे अपने केबिन में बुलाया और कहा कि औफिस के किसी काम से वे दिल्ली जा रहे हैं, उसे उन के साथ चलना होगा. एक सप्ताह के वेतन के साथ उसे अतिरिक्त रुपया मिलेगा और दिल्ली में रहनाखाना कंपनी के खर्चे पर. लेकिन उस ने साफ शब्दों में इनकार कर दिया और बहाना बना दिया कि पति उसे इस बात की आज्ञा नहीं देंगे.

उस दिन जब वह घर पर आई तो देखा ड्राइंगरूम में एक नई अटैची रखी हुई थी, तभी दिवाकर उस के लिए चाय बना कर ले आया. चाय तो अकसर वह वैसे भी बना कर पिलाता था. उसे पता है कि थकान हो या गुस्सा, चाय पीते ही वह शांत हो जाती है. दोनों चाय पीने लगे.

श्रुति के मन में अटैची के बारे में  जानने की उत्सुकता हो रही थी,  अंदर ही अंदर दिल कुछ अच्छी खबर सुनने को लालायित था. उस ने अपनी उत्सुकता को शांत करने के लिए खुशी को छिपाते हुए पूछा, ‘हम दोनों कहीं बाहर घूमने जा रहे हैं क्या? कहां का प्रोगाम बनाया है?’

दिवाकर बोला, ‘हम नहीं, सिर्फ तुम.’

श्रुति हैरानी से उस की तरफ देखने लगी तो उस ने बौस के साथ हुई सारी बात बताई और कहा कि श्रुति, तुम्हें अपने बौस के साथ 7 दिन के लिए औफिस टूर पर दिल्ली जाना है. उसी के लिए वह अटैची लाया है. पता नहीं उस दिन ऐसा क्या हुआ कि वर्षों का दबा हुआ लावा निकल कर बाहर आ गया. श्रुति का तनमन जल उठा.

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दिवाकर द्वारा लाई गई अटैची को उस ने बालकनी से नीचे फेंक दिया और उस को दोटूक जवाब दे दिया कि वह बौस के साथ दिल्ली नहीं जाएगी. ऐसा कहने पर दिवाकर बहुत नाराज हुआ. उस ने कहा कि उस के द्वारा किए वादे का क्या होगा जो उस ने बौस से किया है और फिर वहां रहनेखाने का खर्चा भी तो कंपनी ही उठाएगी. सप्ताह का अतिरिक्त रुपया भी तो मिलेगा. उस दिन वह अपने होशोहवास खो बैठी, एकदम फूट पड़ी, ‘दिवाकर, तुम्हें क्या हो गया है, सारा वक्त तुम पैसापैसा क्यों करते रहते हो. अपने पास किस चीज की कमी है? अपना परिवार बढ़ाने की क्यों नहीं सोचते हो? मैं आज तक नहीं समझ पाई तुम्हारी ख्वाहिशें कब पूरी होंगी.’

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दिवाकर ऊंची आवाज में बोला था, ‘तुम जाओगी या नहीं?’

श्रुति के न करते ही उस ने उस के गाल पर जोर से थप्पड़ मारा. थप्पड़ की झन्नाहट आज भी उस के कानों में गूंज रही है. वह एकदम से चिल्लाया था, ‘तुम्हें जाना पडे़गा क्योंकि मैं ने तुम्हारे बौस को हां कर दी है.’

श्रुति उस दिन उस से भी तेज आवाज में चिल्लाई थी, ‘मैं नहीं जाऊंगी. तुम ने मेरे से पूछ कर बोला था क्या?’

दिवाकर ने कहा, ‘तुम मेरी पत्नी हो, मैं तुम्हारी इजाजत के बिना कुछ भी कर सकता हूं और पत्नी होने के नाते तुम्हें मेरा कहना मानना होगा.’

श्रुति उस को देखती रह गई. वह पछता रही थी कि ऐसा दिवाकर में उस ने क्या देखा जो उस के साथ सात फेरे लिए.

दिवाकर द्वारा जोर से थप्पड़ मारने पर उसे रोना नहीं आया बल्कि अपने पर अफसोस हो रहा था कि इस दरिंदे के साथ इतने वर्षों तक क्यों रही, बहुत पहले ही चले जाना चाहिए था. उस रात दिवाकर से ज्यादा सवालजवाब किए बिना वह एक बैग में जितने कपड़े आ सकते थे, रख कर हमेशा के लिए उस को छोड़ आई.

टे्रन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी  और पुरानी यादों का सिलसिला  जारी था. श्रुति कभी गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछ लेती और फिर विचार तंद्रा में खो जाती.

वह मम्मीपापा के पास आ तो गई पर अब क्या करेगी, कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे. पापा ने समझाया था कि बेटा, वापस दिवाकर के पास चली जाओ पर उस ने साफ इनकार कर दिया था, ‘पापा, मैं उस के पास हरगिज नहीं जाऊंगी. दिवाकर को पत्नी की जरूरत नहीं है. उस को रुपया कमाने वाली मशीन चाहिए, जिस की अपनी कोई इच्छा न हो, कोई भावना न हो, अपने ढंग से जीने के माने जिस के लिए महत्त्व नहीं रखते हों, उस के साथ कोई कैसे रहे.

‘मैं इतने वर्षों से अपना पूरा वेतन उस के हाथों में रखती आई थी. अभी भी आते समय मैं ने रुपयों के बारे में उस से झगड़ा नहीं किया. अपनी खुद की मेहनत से कमाए हुए रुपए भी उस से नहीं मांगे. मैं तो सिर्फ घर चाहती थी जहां बच्चों की किलकारियां हों.

‘मैं अपने छोटेछोटे सपनों को सच होते देखना चाहती थी पर दिवाकर को इन सब से नफरत थी, वह सिर्फ पैसा चाहता था, उस के लिए शायद वह अपने को किसी हद तक गिरा भी सकता था. इतने वर्षों में मैं ने दिवाकर को जितना समझा उस आधार पर मैं कह सकती हूं कि वह धनलोलुप इंसान है. उस के लिए किसी की इच्छाएं कोई माने नहीं रखतीं. पापा, उस ने मेरे को कभी समझने की कोशिश ही नहीं की. हम दोनों की शादी को 10 वर्ष हो गए पर आज तक उस ने धन जोड़ने के अतिरिक्त कुछ नहीं सोचा.

‘जब मैं औफिस से आती थी तो घर मुझे खाने को दौड़ता था. पूरा घर मुझे व्यवस्थित मिलता था, कभी कोई वस्तु अपनी जगह से हिलाई नहीं जाती थी. हिलाता भी तो कौन, घर में हम दोनों ही तो थे. हमारा घर सभी सुविधाओं से अटा पड़ा था पर हम दोनों में से किसी को भी उन का उपयोग करने का समय नहीं था और न ही मन. उस का तो मुझे नहीं पता पर मैं इन सुविधाओं से ऊब चुकी थी. मन करता था इन सब से दूर जा कर कहीं खुल कर सांस लूं, खुले आसमान को निहारूं, पक्षियों की आवाज सुन कर दिल को चैन दूं, वृक्षों के बीच जा कर उन से अपने दिल की बात कहूं. कहते हैं वृक्ष भी बोलते हैं पर वे चाहे मुझ से न बोलें पर मेरे दिल की बात तो सुन सकते हैं और आप से कहती हूं, मैं ही नहीं, दिवाकर भी कभी खुश नजर नहीं आता था. उस को कभी भी संतोष नहीं होता था, वह हमेशा जोड़ने की फिराक में रहता था.’

ट्रेन ने फिर से रफ्तार पकड़ ली. श्रुति को ध्यान आया जब वह मम्मीपापा के पास आ गई थी तो वे लोग कितने चिंतित हो गए थे कि अब क्या होगा. वह स्वयं परेशान थी, क्या करेगी. दिवाकर के साथ रह कर नौकरी करना उस की जरूरत नहीं थी, उस के दबाव में आ कर कर रही थी पर अब मजबूरी है. वह मम्मीपापा, भाभी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी.

ज्यादा भागदौड़ किए बिना उसे एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी मिल गई. स्कूल के पीछे ही उस के रहने की व्यवस्था थी. वह बहुत खुश थी. बच्चों का साथ था. 8वीं कक्षा तक का स्कूल था. दिनभर तो व्यस्त रहती थी परंतु रात के समय उस का अतीत उसे डसने लगता था. हमेशा यही विचार आता, काश, दिवाकर की सोच अच्छी होती तो उस के वैवाहिक जीवन में यह मोड़ न आता. हालांकि आज तक उस के और दिवाकर के बीच में तलाक नहीं हुआ है. दोनों में से किसी एक ने भी इस बारे में नहीं सोचा. पता नहीं, वह कैसा है पर उस की जिंदगी पटरी से उतर चुकी है.

आर्थिक दृष्टि से मजबूत है फिर भी जिंदगी में खालीपन है. आज उसे अपने किए पर अफसोस हो रहा था. जिस मार्ग पर वह चाह कर भी नहीं चलना चाहती थी उसी पर चलना पड़ रहा है. थोड़ी समझदार होने के बाद से ही वह सोचा करती थी कि नौकरी कभी नहीं करूंगी. अपना प्यारा सा घर बसाऊंगी, जहां प्यार ही प्यार होगा पर वह जो चाहती थी उस को नहीं मिला. उस का घरपरिवार तो कभी बना ही नहीं.

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कल पापा के नाम तार आया था. दिवाकर की मां का देहांत हो गया. पता नहीं उन लोगों ने क्यों सूचित किया. इस से पहले दिवाकर के बड़े भाई का देहांत हुआ था तब तो सूचना नहीं आई थी. उस समय यदि इत्तला कर देते तो शायद वह चली जाती. और हो सकता था कि जिंदगी में नया मोड़ आ जाता पर अब उन लोगों को उस की याद आई है. उसे पापा ने फोन पर जब इस बारे में बताया था तो उस ने बोल दिया था, ‘तो क्या हुआ, दुनिया में हर दिन कितनी ही मौतें होती हैं. दिवाकर की मां की भी मौत हो गई तो क्या हुआ, मैं वहां जा कर क्या करूंगी.’

श्रुति के इस जवाब से उस के पापा बुरी तरह से नाराज हुए.

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