‘‘मेरे पापा कहां हैं मां?’’ अचानक यह सवाल सुन कर शांति हैरान रह गई, तभी मिन्नी ने फिर अपना सवाल दोहरा दिया, ‘‘मेरे पापा कहां हैं?’’
घबराई शांति ने बेटी को गोद में उठा कर चूम लिया, ‘‘तुम्हारे पापा विदेश गए हैं,’’ कहते हुए शांति का गला भर आया, आंखें भीग गईं.
‘‘विदेश क्या होता है मां?’’ मिन्नी ने छोटा सा सवाल कर दिया, तो शांति के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. उस ने मिन्नी को कस कर भींच लिया और भारी मन से जवाब दिया, ‘‘विदेश मतलब बहुत दूर. वहां से तुम्हारे पापा तुम्हारे लिए ढेर सारे अच्छेअच्छे खिलौने लाएंगे.’’
‘‘और फ्रौक भी?’’
‘‘हां बेटी, हां… सबकुछ. अब सो जाओ,’’ शांति की आंखें छलछला आईं. ‘‘अब बताऊंगी सीमा और चुन्नू को. कहते थे कि तुम्हारे पापा तुम को छोड़ कर भाग गए हैं,’’ मिन्नी हंसते हुए बोली. शांति चौंक उठी, ‘‘क्या कहा… मिन्नी, वे सब गंदे बच्चे हैं. उन के साथ मत खेला करो. तुम्हारे पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं. नहींनहीं… मेरा मतलब है…’’ वह हड़बड़ा गई. मिन्नी कुछ न समझ सकी. बेटी ने दिल के जख्म कुरेद दिए थे. शांति उस को गोदी में चिपकाए देर रात तक रोती रही. जब से सुरजन गुम हुआ था, शांति पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. एक बेसहारा जिंदगी, वह भी एक औरत की. गुजरबसर करने के लिए उसे कई घरों में काम करना पड़ता. पड़ोस के बच्चे अच्छेअच्छे कपड़ों में स्कूल जाते, तो मिन्नी भी जिद करती. मां की मजबूरियों से बेखबर वह कहती, ‘‘तुम बहुत कंजूस हो मां, मुझे भी मीरा की तरह कपड़े ला दो, मैं भी जाऊंगी स्कूल.’’ ‘‘हां, ला देंगे बेटी,’’ कह कर शांति अपनी बेबसी पर आंसू बहा देती.
मिन्नी न जाने कितने सवाल करती, पर शांति कोई झूठा सा बहाना बना कर टाल देती. अब उस का बरताव भी कुछ चिढ़चिढ़ा सा होता जा रहा था. वह कभीकभी मिन्नी की पिटाई भी कर देती. पछतावा भी होता, रो भी लेती. वह जिंदगी से ऊब चुकी थी, लेकिन फिर भी जीना था मिन्नी की खातिर.
समय गुजरता गया. मिन्नी 5 साल की हो गई. सुरजन को गए हुए भी 5 साल हो गए थे. ‘आज शादी की सालगिरह है,’ सोच कर शांति उदास हो गई. आज के दिन ही तो शांति की जिंदगी में वह हादसा हुआ था, एक भयानक हादसा. लेकिन उस का कुसूर भी तो कुछ नहीं था. शांति का पति सुरजन बहुत ज्यादा शराब पीता था. उस ने समझाया था कि शराब बुरी चीज है, इस ने लाखों घर बरबाद कर दिए हैं. इसे छोड़ सको तो छोड़ दो. यही तो वह कहती थी, कभी दबाव तो नहीं डाला. उस दिन भी जब सुरजन आया, तो नशे में चूर था. शांति ने पूछा, ‘‘साड़ी नहीं लाए क्या? भूल गए, आज हमारी शादी की सालगिरह है.’’ तब सुरजन ने बेहयाई से हंसते हुए बोतल सामने रख दी, ‘‘ले, आज मेरे साथ तू भी पी… अंगरेजी शराब है.’’
तब शांति को बहुत गुस्सा आया था. लेकिन उस ने इतना ही कहा, ‘‘आप थोड़ी सी पी लीजिए, पर मुझे मजबूर मत कीजिए. मुझे इस जहर से सख्त नफरत है.’’ अगर बात यहीं खत्म हो जाती, तो गनीमत थी. सुरजन ने बोतल मुंह से लगा ली और गटागटा पीते हुए आधी से ज्यादा खाली कर दी. फिर लड़खड़ाते हुए शांति का हाथ पकड़ कर वह बोला, ‘‘रानी, जब तक दारू जिंदा है, तुम्हारा आदमी मरने वाला नहीं. अरे, यह दारू नहीं अमृत है, अमृत. तुम बेकार के ढकोसले में पड़ी हो. लो, थोड़ी पी कर देखो.’’ फिर सुरजन ने जबरदस्ती शांति को पिलानी चाही. वह इनकार करती रही. तब उस ने जबरदस्ती बोतल उस के मुंह से लगा दी, तो वह तिलमिला उठी. उसे भी गुस्सा आ गया. बोतल छीन कर फेंकी तो वह जमीन पर गिर कर कई टुकड़ों में बिखर गई… और इसी के साथ उस की दुनिया भी बिखर गई.
सुरजन ने शांति को पीटना शुरू कर दिया. इतना पीटा कि वह बेहोश हो गई. होश में आने पर पता चला कि सुरजन कहीं चला गया है. उस समय मिन्नी पेट में थी. वह रोतीचिल्लाती इधरउधर भागी. पति को बहुत खोजा. महल्ले वाले भी दौड़े, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. वह जो गया तो चला ही गया. शाम होने वाली थी. अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. शांति ने धीरे से पूछा, ‘‘कौन है?’’ और उठ कर दरवाजे की ओर चल पड़ी. मिन्नी आंगन में खेल रही थी.शांति ने धीरे से दरवाजा खोला. सामने देखा तो मानो जमीन पैरों के नीचे से खिसक गई. बदन थरथर कांपने लगा. अचानक ही मुंह से चीख निकल पड़ी, ‘‘मिन्नी, तेरे पापा आए…’’ और वह बेहोश हो कर धड़ाम से गिर गई. शायद इतनी बड़ी खुशी को उस का कमजोर शरीर बरदाश्त न कर सका.
सुरजन सामने सिर झुकाए खड़ा था. मिन्नी हक्कीबक्की सी दौड़ी आई. वह कभी सुरजन की ओर देखती, तो कभी जमीन पर पड़ी मां की ओर. तभी मिन्नी रोने लगी. महल्ले के कुछ लोग आ गए. शांति के मुंह पर पानी के छींटे मारे तो होश आया. फिर भी संभलने में उसे काफी समय लगा. वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. तरहतरह के सवालजवाब होते रहे.रात काफी हो चली थी. हालचाल पूछने वाले लोग जा चुके थे. अब घर में 3 जने थे, शांति, सुरजन और मिन्नी. सभी चुप थे, जैसे उन के पास अब बोलने को कुछ रहा ही नहीं. फिर शांति ने भरे गले से पूछा, ‘‘ठीक तो हो?’’ ‘‘हां,’’ सुरजन ने उदासी भरी आवाज में कहा.
‘‘आज हमारी याद…’’ शांति से पूरा वाक्य न बोला गया, गला भर आया. सुरजन ने घोर शर्म और अफसोस भरी आवाज में कहा, ‘‘पहले मुझे माफ कर दो. वैसे, मैं माफी मांगने के लायक नहीं, फिर भी… अगर हो सके…’’‘‘नहींनहीं, ऐसा मत कहो. बस यही बता दो कि कहां रहे? कैसे रहे? किसी परेशानी में तो नहीं थे?’’सुरजन कुछ देर खामोश रहा. छत की तरफ देखा, जैसे वह कुछ पढ़ रहा हो. फिर धीरेधीरे वह बताने लगा, ‘‘मैं उसी दिन रात की गाड़ी से कोलकाता चला गया. वहां मेरा एक दोस्त रहता था. उसी की मोटर वर्कशौप में काम करने लगा. वहां जल्दी ही मुझे एक दूसरा साथी मिल गया. उस का नाम था दिलीप. बिलकुल अकेला, नंबर एक का पियक्कड़. फिर क्या था. हर शाम को महफिल जमती. कभी मेरे कमरे पर, तो कभी दिलीप के घर पर. ‘‘वह टैक्सी ड्राइवर था. हम दोनों इतना घुलमिल गए कि एकदूसरे के बगैर चैन न पड़ता. मैं अपनेआप को आजाद परिंदा समझता, जिसे न किसी चीज की कमी थी, न कोई परवाह. ‘‘इसी झूठी मौजमस्ती और शराबखोरी के अंधेरे कुएं में जिंदगी के 5 कीमती साल कब डूब गए, पता नहीं चला. शायद यह अंधेरा कभी खत्म न होता, अगर दिलीप गुवाहाटी न चला गया होता.’’ सुरजन कुछ देर के लिए चुप रहा, फिर आगे बोला, ‘‘दिलीप के जाने से मुझे बहुत अकेलापन महसूस होने लगा. फिर भी कोई परेशानी नहीं हुई, शराब जो मेरे साथ थी.
‘‘तकरीबन 2 महीने बाद मुझे मालूम हुआ कि दिलीप आ गया है. मैं तुरंत काम से छुट्टी ले कर अपने दोस्त से मिलने चल दिया. रास्ते में मैं ने एक बोतल खरीद ली. सोचा, काफी दिनों बाद मेरा दोस्त आया?है, आज जम कर पिएंगे. ‘‘दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजा खुला तो दिलीप सामने खड़ा था. हाथ मिलाते हुए वह बोला, ‘तुम आ गए, अच्छा ही हुआ. मैं खुद आने वाला था. एक मिनट रुको, मैं अभी आया.’ ‘‘वह अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद मुझे आवाज दी. मैं भीतर गया तो देखा कि बैठक वाला कमरा बहुत करीने से और खूबसूरत ढंग से सजा हुआ?है. मैं कुछ सोच ही रहा था कि दिलीप ने हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘बोलो, चाय चलेगी या शरबत?’ ‘‘मुझे उस की यह बात बड़ी अजीब सी लगी. मैं ने खीज कर कहा, ‘आज तुझे क्या हो गया है दिलीप? इतने दिनों बाद मिला है और पूछता है, चाय चलेगी या शरबत. अरे देख, तेरे वास्ते मैं खुद ले कर आया हूं. फटाफट 2 गिलास ले आ.’ ‘‘दिलीप ने मुंह फेरते हुए कहा, ‘इसे थैले में रख लो. मैं ने पीना छोड़ दिया है?’
‘‘मैं हैरान रह गया. कानों पर भरोसा नहीं हुआ. सोचा, कहीं दिलीप मजाक तो नहीं कर रहा. तभी उस ने आवाज दी, ‘सलमा, एक प्लेट में मीठा दे जाओ.’ ‘‘मैं चौंक उठा और पूछा, ‘यह सलमा कौन है?’ ‘‘दिलीप हंस दिया. वह जवाब देता, इस से पहले एक 5-6 साल की लड़की फुदकती हुई आई और दिलीप की गरदन में झूल गई. दिलीप ने उसे गोदी में उठा कर चूम लिया और बोला, ‘पिंकी, तुम ने चाचाजी को नमस्ते नहीं की… चलो, नमस्ते करो.’ ‘‘बच्ची ने दोनों हाथ जोड़ दिए. मैं ने नमस्ते का जवाब तो दे दिया, लेकिन मन और भी उलझ गया.
‘‘दिलीप ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘सुरजन, मैं ने शादी कर ली है. सलमा मेरी बीवी का नाम है. और यह है मेरी बेटी पिंकी?’ ‘‘तभी सलमा एक ट्रे में कुछ मीठा ले कर आ गई. 30-32 साल की उम्र, सांवला, छरहरा बदन, काफी सुंदर लग रही थी. दिलीप ने कहा, ‘सलमा, यह है मेरा जिगरी दोस्ती सुरजन.’‘‘सलमा ने नमस्ते की और अंदर चली गई. मैं ने दिलीप को शादी की बधाई दी. लेकिन बहुत से सवाल अब भी दिमाग में थे. आखिर पूछ ही लिया, ‘कहां से की शादी… यह सब चक्कर क्या है?’
‘‘दिलीप बोला, ‘अरे, मैं तो कब से एक जीवनसाथी की तलाश में था. अकेले आदमी की भी कोई जिंदगी होती है. जब मैं गुवाहाटी गया, वहीं सलमा से मुलाकात हो गई. बेचारी गरीब विधवा थी. इसे भी कोई सहारा चाहिए था और मुझे भी. फिर क्या था, हम दोनों ने शादी कर ली. ‘‘सलमा को भी सहारा मिल गया और मुझे पत्नी मिल गई. साथ ही, एक खिलौना भी मिला.’ ‘‘यह कह कर उस ने पिंकी के गालों को चूम लिया, ‘देखो, अब मैं कितना खुश हूं. मेरी जिंदगी में, इस सूने घर में जैसे बहार आ गई?है.’ ‘‘दिलीप ने मस्ती में भर कर कुछ ऐसे अंदाज में कहा कि मैं अंदर तक कांप गया. फिर भी बनावटी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘तब तो अब तुम से ही पिऊंगा… बड़े छुपे रुस्तम निकले, गुरु.’ ‘‘वह बोला, ‘नहीं, मैं ने शराब का नाम लेना ही छोड़ दिया है. मेरी और तुम्हारी दोस्ती अब सिर्फ इसी बात पर कायम रह सकती है कि तुम कभी मेरे सामने इस जहर का नाम भी मत लेना. मैं नहीं चाहता कि यह जहरीला पानी मेरे परिवार को तबाह कर दे. मेरी पत्नी भी तो इस से बहुत नफरत करती है.’ ‘वह एक पल के लिए चुप हो गया. फिर बोला, ‘सुरजन, मैं अकेलेपन को दूर करने के लिए शराब का झूठा सहारा लेता था. यही आदमी की सब से बड़ी भूल होती है. वैसे, इतनी बड़ी दुनिया में किसी चीज की कमी नहीं है. हो सके तो तुम भी शराब से तलाक ले कर कहीं घर बसा लो…’ ‘‘मैं ने गुस्से में कहा, ‘दिलीप, तुम्हारी गृहस्थी तुम को मुबारक. मैं आजाद पंछी की तरह जिंदगी बिताने में भरोसा रखता हूं, पिंजरे में कैद रह कर नहीं. मैं जा रहा हूं. मुझे नहीं चाहिए तुम्हारे उपदेश.’ ‘‘मैं उठ कर चल दिया. पता नहीं, क्यों मेरे पैर कांप रहे थे, तभी दिलीप का कहकहा गूंजा, ‘जाते हो तो जाओ, पर एक बात याद रखना, आजाद पंछी भी परिवार बसाने के लिए तड़पता है और फड़फड़ाता रहता है.’’’ इतना कह कर सुरजन खामोश हो गया. मिन्नी हैरानी से दोनों की ओर देख रही थी. शांति बुत की तरह बैठी सुन रही थी. वह धीरे से बोली, ‘‘फिर क्या हुआ?’’
सुरजन भीगी आवाज में बोला, ‘‘फिर क्या था, मेरे दिल में हाहाकार मच गया कि दिलीप एक विधवा औरत से शादी कर के, दूसरे की बच्ची को पालते हुए कितना खुश है. उस ने परिवार बसा कर शराब छोड़ दी. लेकिन, मैं ने शराब के लिए परिवार छोड़ दिया था. अपनी सुंदर पत्नी को छोड़ दिया. मुझे अपनी इस बच्ची के लिए भी मोह नहीं जागा, जिस का मुंह भी नहीं देखा था. ‘‘मैं नफरत और अपमान की आग में जलने लगा. बारबार खुद को धिक्कारा, ‘सुरजन, तू ने अपनी पत्नी को कहां बेसहारा बना कर छोड़ दिया? तू जालिम है, बहुत बड़ा मुजरिम है तू,’ ‘‘लेकिन, मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था…’’ कहतेकहते सुरजन की आंखों से आंसू बह चले.
वह कुछ रुक कर आगे बोला, ‘‘मैं ने बोतल निकाल कर गंदे नाले में फेंक दी. मुझे घर की याद ने आ घेरा. सोचने लगा कि पता नहीं, तुम कहां होगी? किस हाल में होगी? हालात ने तुम्हें क्या बना दिया होगा? इन्हीं खयालों ने मन को बेचैन कर दिया.’’ अब शांति भी रो पड़ी. कुछ देर बाद आंसू पोंछते हुए वह बोली, ‘‘फिर क्या हुआ?’’
‘‘मैं सीधे अपने कमरे में चला गया. जल्दीजल्दी थोड़ाबहुत सामान बांधा और स्टेशन पर जा पहुंचा. मालिक के पास रुपए बाकी थे, वह भी लेने नहीं गया. मन करता था, कोई मुझे उड़ा कर पलभर में मेरे घर पहुंचा दे. ‘‘रात 11 बजे गाड़ी आई. एकएक पल मुझे सालों जैसा मालूम हो रहा था. रातभर के सफर के बाद गाड़ी यहां पहुंचने वाली थी. सुबह हो गई थी. रेल की पटरियों के किनारे टैलीफोन के खंभों पर बैठे परिंदे कुनकुनी धूप का मजा ले रहे थे. कुछ आसमान में उड़ रहे थे. परिदों का एक जोड़ा अपने नन्हे बच्चे को उड़ना सिखा रहा था. देख कर मन भर आया. तभी स्टेशन आ गया और धीरेधीरे गाड़ी रुक गई…’’
सुरजन चुप हो गया था. उस ने मिन्नी को अपनी गोद में खींच लिया.
मिन्नी धीरे से बोली, ‘‘पापा, अब कहीं मत जाना.’’
सुरजन ने मिन्नी का मुंह चूम लिया, ‘‘अब भला मैं अपनी रानी बेटी को छोड़ कर कहां जाऊंगा. एक टैक्सी खरीदूंगा, खूब पैसा कमाऊंगा, खूब अच्छीअच्छी चीजें लाया करूंगा तुम्हारे लिए. फिर तुम को और तुम्हारी मां को टैक्सी में बैठा कर सारा शहर घुमाया करूंगा.’’
‘‘और नानी के घर भी चलेंगे,’’ मिन्नी ने चहकते हुए कहा.
‘‘हां, सुनो शांति, झोले में मिठाई है. तुम भी खा लो और हमारी बेटी को भी दे दो.’’
शांति उठते हुए बोली, ‘‘आज हमारी शादी की सालगिरह है… सब तैयार हो जाओ, बाजार घूमने चलेंगे.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं, चलो मिन्नी बेटी, फौरन तैयार हो जाओ. आज हम तुम्हें बहुत से खिलौने ले कर देंगे. फिर तुम्हारी मां को एक नई साड़ी और…’’ सुरजन खुश हो कर बोला. ‘‘बसबस, बहुत हो गया, आज के लिए इतनी खरीदारी ही काफी?है… ज्यादा खुशी हजम करना मुश्किल हो जाएगा,’’ शांति ने हंसते हुए कहा और कपड़े बदलने के लिए भीतर चली गई.