28 जनवरी, 2018 को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की जिला अदालत में 8 हजार से भी ज्यादा नौजवानों का हुजूम इकट्ठा था. वहां बड़े पदों की भरती नहीं होनी थी, बल्कि ड्राइवर और चपरासी जैसे छोटे पदों के लिए भरती थी. इस के बावजूद ज्यादातर उम्मीदवार ग्रेजुएट या फिर पोस्ट ग्रेजुएट थे.
खाली पदों की तादाद महज 22 थी, पर जब 8 हजार नौजवान वहां आ गए तो अफरातफरी सी मच गई. दस्तावेजों की जांच में ही अफसरों का पूरा दिन गुजर गया.
इसी 28 जनवरी को यही हालत विदिशा जिले की अदालत में भी थी. वहां 52 पदों के लिए तकरीबन 7 हजार बेरोजगार लाइन में थे. खाली पद ड्राइवर, माली और जल वाहक के थे.
भीड़ उमड़ी तो उसे संभालने के लिए प्रशासन को अच्छीखासी मशक्कत करनी पड़ी. इस भीड़ में भी ज्यादातर बेरोजगारों के हाथों में बड़ीबड़ी डिगरियां थीं.
इसी दिन गुना जिले की अदालत में भी हजारों बेरोजगार लाइन लगाए खड़े थे. वहां भी भरती चपरासी, माली और ड्राइवर जैसे छोटे पदों के लिए होनी थी, जिन के लिए काबिलीयत 8वीं पास रखी गई थी, पर तकरीबन 70 फीसदी उम्मीदवार 12वीं जमात पास, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट थे. दस्तावेजों की जांच और इंटरव्यू के लिए 6 जजों की ड्यूटी लगाई गई थी.
बदतर होते हालात
14 जनवरी, 2018 को ग्वालियर जिला अदालत में चपरासी के पद की 57 भरतियों के लिए तकरीबन 60 हजार उम्मीदवार लाइन लगा कर खड़े थे.
चपरासी की तनख्वाह महज साढ़े 7 हजार रुपए महीना होती है जिस के लिए इंजीनियरिंग, एमबीए और पीएचडी किए हुए नौजवान भी आए थे.
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