फिल्म और टैलीविजन के कलाकार व कौमेडियन अली असगर किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं. वे ‘द कपिल शर्मा शो’ में ‘नानी’ के किरदार में खूब दिखाई दिए हैं. अली असगर ने ऐक्टिंग की दुनिया में साल 1998 से ले कर अब तक का लंबा सफर तय किया है. हालांकि शुरू में उन का ऐक्टिंग से दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं था. न तो उन के परिवार में कोई इस क्षेत्र में था और न ही अली असगर ने कभी ऐक्टिंग सीखी थी.
अली असगर के पिता रैस्टोरैंट कारोबारी थे और अली असगर भी इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने की तैयारी कर चुके थे. लेकिन उन की मंजिल ऐक्टिंग की दुनिया में उन का इंतजार कर रही थी, इसलिए उन्होंने होटल मैनेजमैंट की डिगरी लेने के बाद विदेश में नौकरी के औफर को छोड़ कर दोस्तों के साथ शौकिया तौर पर ऐक्टिंग करने की सोची. धीरेधीरे उन्हें कामयाबी व पहचान दोनों मिलती गईं. उन्होंने न केवल गंभीर किरदार निभाए, बल्कि स्टैंडअप कौमेडी में भी अपना सिक्का जमाया. पेश हैं, अली असगर से हुई बातचीत के खास अंश:
क्या आप ने ऐक्टिंग करने के बारे में कभी कुछ गंभीरता से सोचा था?
नहीं, कभी नहीं सोचा था. सोचा कुछ और था, बन कुछ और गया. दोस्तों के साथ टैलीविजन पर ऐक्टिंग के जो औफर मिलते गए, वे करता गया. मेरा पहला टैलीविजन शो दूरदर्शन पर ‘एक दो तीन चार’ था.
टैलीविजन इंडस्ट्री में खुद की पहचान बनाने में आप को कब कामयाबी मिली?
मेरे कैरियर का टर्निंग प्वौइंट टैलीविजन सीरियल ‘कहानी घरघर की’ था, जिस में मैं ने कमल अग्रवाल नामक किरदार निभाया था. यह मेरे लिए बहुत बड़ा प्लेटफार्म साबित हुआ. लोग मुझे एक गंभीर ऐक्टर के रूप में जाननेपहचानने लगे थे.
शुरुआती दिनों में आप टैलीविजन और फिल्मों में जो किरदार निभा रहे थे, क्या उन से संतुष्ट थे?
संतुष्ट तो था, लेकिन मैं फिल्मों में जैसे किरदार निभाना चाहता था, वैसे कभी नहीं मिले. जो ख्वाहिशें मैं बतौर एक ऐक्टर बड़े परदे पर पूरी होते देखना चाहता था, उस के औफर मुझे टैलीविजन पर मिले. लेकिन मैं ने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि सिर्फ फिल्में या सिर्फ टैलीविजन ही करूंगा. मेरे पास जो भी काम आता गया, मैं वह करता गया.
ज्यादा मेहनत फिल्मों में है या टैलीविजन पर?
टैलीविजन में समय ज्यादा देना पड़ता है. आजकल टैलीविजन पर डेली सोप ही ज्यादा चल रहे हैं और अगर कोई कलाकार सीरियल कर रहा है, तो 30 दिनों में समझो 40 दिनों का काम करना पड़ता है.
इस मामले में फिल्मों में थोड़ा रिलैक्स मिल जाता है. वहां शैड्यूल खत्म हो जाता है. मगर टैलीविजन का शैड्यूल कभी खत्म ही नहीं होता.
सीरियल ‘कहानी घरघर की’ के बाद आप काफी लंबे समय से किसी दूसरे सीरियल में दिखाई नहीं दिए. इस की क्या वजह रही?
सच कहूं, तो मैं ने काम किया नहीं. इस सीरियल के तुरंत बाद ‘कौमेडी सर्कस’ शुरू हो गया था और इसी तरह के शो चलने भी लगे थे. इसी बीच मैं ऐंकरिंग भी करने लगा था. मुझे अलगअलग तरह के किरदार निभाने का मौका मिलता गया. मैं ने 4-5 साल पहले एक सीरियल किया था ‘जीनी और जूजू’. इस के बाद कुछ समय पहले एक शो किया था ‘वह तेरी भाभी है पगले’, जो सिर्फ 6 महीने चला था.
सच तो यह है कि टैलीविजन में अब कंटैंट नहीं रहा. मुझे तो अभी से लगने लगा है कि टैलीविजन का मौजूदा दौर भी बदलने वाला है, क्योंकि आजकल सब डिजिटल हो रहा है. आज किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह टैलीविजन के सामने ज्यादा देर बैठे. जिंदगी में भागदौड़ बहुत ज्यादा हो गई है.
आप को कौमेडी करने में ज्यादा मजा आता है या गंभीर किरदार निभाने में?
दोनों का ही अपना एक अलग मजा है. गंभीर किरदार स्पाइसी फूड है, तो कौमेडी स्वीट डिश है. शरीर को हर तरह के खाने की जरूरत होती है.
कहते हैं कि लोगों को रुलाना आसान है, हंसाना मुश्किल. इस बात में कितनी सचाई है?
दोनों ही काम मुश्किल हैं.
‘द कपिल शर्मा शो’ में ‘नानी’ का किरदार निभाने से पहले आप कितनी तैयारी करते थे?
काफी तैयारी करनी पड़ती थी. दरअसल, हर किरदार को बनाने के पीछे कई लोग होते हैं, जैसे राइटर, क्रिएटिव टीम व शो से जुड़े तमाम लोग. सब की मेहनत होती है. औरत बनना आसान नहीं है.