लेखक- लोकमित्र गौतम

देश का उद्योग और सेवा क्षेत्र तो कोरोना के कहर के चलते पहले से ही हाहाकार के दौर से गुजर रहा था. लेकिन लगता है अब कोरोना वायरस कृषि क्षेत्र में भी बुरी तरह से कहर बरपाकर ही रहेगा.कहने को तो कृषि कार्य को लॉकडाउन से छूट दी गयी है, लेकिन संकट यह है कि रबी फसल में सबसे ज्यादा होने वाली गेंहूँ की फसल को खेतों से काटने,थ्रेसर में कतरने और अनाज को मंडी तक पंहुचाने के लिए सर्वाधिक गेहूं उत्पादक राज्यों में इस समय लेबर ही नहीं हैं.अकेले पंजाब को इस समय गेहूं की फसल को काटने के लिए 6 लाख से ज्यादा लेबर्स की जरूरत है.अगर इसमें हरियाणा और सर्वाधिक गेहूं उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश को भी जोड़ लें तो इन तीनों राज्यों में कम से कम 20 लाख मजदूरों की जरूरत है.लेकिन यूपी में तो फिर भी लेबर मिल सकती है,लेकिन पंजाब और हरियाणा की बहुत बुरी हालत है.इन दोनों ही राज्यों में भयानक लेबर संकट पैदा हो गया है.

चूंकि यह संकट मार्च के दूसरे हफ्ते से ही दिखने लगा था.इसलिए चना,मसूर और लाही तो किसानों ने किसी तरह काट ली है और करीब करीब फसल घर भी आ गयी है.लेकिन गेहूं जो कि रबी की कुल फसल में करीब 70% तक होती है,कोरोना के चलते संकट में फंस गयी है.इस साल वैसे भी किसानों ने गेहूं की फसल करीब 5.68 लाख हेक्टेयर में बोई थी जो कि पिछले साल के मुकाबले करीब 8 फीसदी ज्यादा रकबा था.इसलिए इस साल उत्पादन भी 80 से 90 लाख टन ज्यादा होने की उम्मीद थी.गौरतलब है कि हिन्दुस्तान में 2019 में करीब 10 करोड़ 62 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई थी,जिसके इस साल करीब 11 करोड़ टन के ऊपर जाने की उम्मीद है. लेकिन अब डर लगने लगा है.क्योंकि गेहूं की फसल खेतों में पकी खडी है.मगर दूर दूर तक पंजाब में लेबर नहीं दिख रही और मंडिया भी बंद हैं.

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वैसे हरियाणा सरकार ने घोषणा की है कि अगर हर पंचायत में नहीं संभव हुआ तो कम से तीन पंचायतों के बीच एक फसल खरीद केंद्र स्थापित किया जायेगा. ताकि किसानों को अपनी फसल लेकर बहुत दूर न जाना पड़े.वैसे देश में अनाज का अच्छाखासा बफर स्टॉक है .फिर भी मंडी तक अनाज पहुंचने में देर होगी तो खुले बाजार में खाद्यान्न का संकट खडा हो जाएगा.इसलिए किसानों की मांग है कि उन्हें अपने घर से मंडियों तक अनाज को पहुंचाने की व्यवस्था सरकार करे वरना खाद्य पदार्थों की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है.

कृषि फसल को कोरोना संकट से बचाना इसलिए जरूरी है क्योंकि तमाम इंडस्ट्री पहले ही कोरोना के चलते पस्त हो चुकी हैं.एविएशन इंडस्ट्री को करीब चार अरब डॉलर का नुकसान अब तक हो चुका है. हॉस्पिटैलिटी,टूरिज्म सेक्टर की हालात भी देखने लायक नहीं बची.होटल और रेस्टोरेंट चेन बुरी ध्वस्त हो गयी है. ये क्षेत्र तो कोरोना के खात्मे के कई महीनों बाद तक भी सन्नाटे में ही रहने वाले हैं. ऑटो इंडस्ट्री की भी बहुत बुरी हालत है. इसे भी करीब दो अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ सकता है. हालांकि कृषि फसल को मंदी से वास्ता नहीं है.यहां सबसे बड़ा संकट लेबर और मंडियों तक पहुंचने के ट्रांसपोर्ट का संकट है.लॉक डाउन के चलते एक जगह के उत्पाद दूसरी जगह तो बिलकुल ही नहीं पहुँच पा रहे हैं.मसलन दिल्ली की सब्जी मंडी तक दूर के उत्पाद नहीं पहुँच पा रहे.नतीजा अलीगढ़ फरुक्खाबाद,कन्नौज आदि में जो दिल्ली के लिए सब्जियां बोई गयी हैं,सब अब किसानों को डुबाने वाली हैं.

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वैसे लॉकडाउन में किसानों के लिए किसान हेल्पलाइन बनाई गयी है और पहले से भी एक हेल्पलाइन मौजूद है.लॉकडाउन अवधि के लिए किसानों की सुविधा के लिए तमाम किसान कॉल केंद्र भी बनाये गए हैं.लेकिन हम सब जानते हैं इस देश में आपदा प्रबन्धन कितने गैर जिम्मेदार ढंग से होता है.इसलिए खेती-किसानी के लिए गृह मंत्रालय के मुताबिक़ चाहे जो आदेश हों व्योहार में तो ये सब पुलिस की मर्जी से ही नियंत्रित होते हैं. चूँकि लौकडाउन में मजदूर घर से बाहर निकलने से परहेज कर रहे हैं.साथ ही यूपी जैसे गेंहूँ के सबसे बड़े उत्पादक राज्य में पर्याप्त संख्या में कंबाइन हार्वेस्टर भी उपलब्ध नहीं है,इससे एक बात बहुत स्पष्ट है कि फसल की कटाई में विलंब होगा साथ ही इससे काफी कुछ अनाज भीं बर्बाद होगा क्योंकि फसल बहुत ज्यादा पक चुकी होगी.

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