एमपी में स्वास्थ महकमे के चार IAS अफसर कोरोना पौजिटिव है. भोपाल में 142 कोरोना पौजिटिव में स्वास्थ्य विभाग के ही 75 अधिकारी और कर्मचारी है.

इन बड़े IAS अफ़सरों की लापरवाही की सजा उनके नीचे के कर्मचारी और उनके परिवार वाले भुगत रहे हैं. इनमें क्लर्क, चपरासी और ड्राइवर भी हैं. यदि स्वास्थ्य विभाग के लोग इस क़दर संक्रमित नहीं होते तो भोपाल के रहवासी भी इतने सख्त लौकडाउन को  झेलने मजबूर न होते.

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कोरोना के लिए अब किसी गरीब और किसी क़ौम को दोष नहीं दिया जा सकता साहब .जब ये पढ़े लिखे अफ़सर ही कोरोना की भयावहता नहीं समझ पाए . अपने साहबजादों के‌ विदेश से लौटने की बात छिपाने वाले ये अफसर अपने मातहत अधिकारियों और घरेलू काम करने वाले नौकर चाकरों को  वायरस बाँटते रहे . अपने परिवार का पेट भरने के लिए लौकडाउन को तोड़ने वालेआम आदमी, मजदूर ,किसान और किसी कौम को जिम्मेदार ठहराने के पहले साहब यह भी सोच लो कि कसूर किसका है..

इन दिनों पुलिस छोटी छोटी जगहों पर कोरोना पीड़ितों के खिलाफ मामले दर्ज कर रही है. नरसिंहपुर जिले की चैक पोस्ट पर  एक तेरह साल के किशोर के शव वाहन को केवल इसलिए भोपाल वापस भेज दिया गया कि उस पर कोरोनावायरस के संक्रमित होने का संदेह था. एक छोटे से गांव के दलित युवक पर फेसबुक के माध्यम से कोरोना से संबंधित फर्जी पोस्ट करने पर एफ आई आर दर्ज कर ली गई .भोपाल और आगर के एक एक पत्रकार पर बीमारी फैलाने का आरोप लगाते हुए FIR हुयी है ,मगर इन अफसरों की लापरवाही पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है.

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