तांत्रिक बाबूलाल (65 वर्ष) एक दिन चौपाल पर बैठा था. उस दौरान लोग उस के ठाठबाट को
ले कर बात कर रहे थे, तभी वह अपनी शेखी बघारते हुए बोला, ‘‘अरे भाई, हमारे पास अब क्या कमी है. जो चाहते हैं, खातेपीते हैं और ऐश की जिंदगी जी रहे हैं. एक समय था, जब मैं बहुत गरीब था, मगर अब ऐसी बात नहीं है.’’
बाबूलाल यादव ने साथ बैठे हुए चौपाल के अपने हमउम्र और अन्य लोगों से गोलमोल बातें कहीं.
‘‘मगर भाई बाबूलाल, आज के समय आज की महंगाई में भी तुम्हारे ठाटबाट… कुछ समझ में नहीं आता.’’ किशन जायसवाल ने बड़े लल्लोचप्पो भरे स्वर
में कहा.
किशन ने किसी से सुन रखा था कि बाबूलाल के पास कोई ऐसी जादुई शक्ति है, जिस से वह मालामाल हो गया है. वह और अन्य कई लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर माजरा क्या है.
जब बात चली तो सभी उत्सुक भाव से बाबूलाल की ओर देख और सुन रहे थे. बाबूलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘देखो भई, संसार में एक से एक बड़ी शक्तियां हैं. सवाल है उन शक्तियों को साधने का और अगर एक बार आप ने साधना कर ली तो पूरी जिंदगी आप सुखशांति, ऐश्वर्य से बिता सकते हैं.’’
बाबूलाल के यह कहने के बाद तो लोगों में और भी उत्सुकता बढ़ गई. लोग बाबूलाल की प्रशंसा करने लगे. कोई कुछ कह रहा था तो कोई कुछ. अपनी प्रशंसा सुन कर के बाबूलाल उस समय बेहद गौरवान्वित था.
वहां पर मौजूद रमेश साहू नाम के युवक ने बाबूलाल से चिरौरी करते हुए कहा, ‘‘काका, कुछ तो ऐसा रास्ता हम लोगों को भी बताओ, ताकि हमारी जिंदगी भी सुखी हो जाए.’’
‘‘अरे बेटा, तुम तो जवान हो, दुकान चलाते हो, पैसे वाले हो. तुम्हारे पास क्या कमी है, जो मेरा रहस्य जानना चाहते हो?’’ हंसते हुए बाबूलाल ने रमेश साहू से कहा.
‘‘नहींनहीं काका, आज तो आप को बताना ही होगा आखिर आप के पास ऐसी क्या शक्ति है?’’ सुदर्शन यादव ने मिन्नतें करते हुए पूछा, ‘‘हम ने सुना है कि आप के पास सोना बनाने वाला कोई पत्थर है. क्या यह सच है?’’
ये बातें सुन कर के गांव में चौपाल में एक तरह से सन्नाटा पसर गया. सभी के मन में यह था कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसी शक्ति है, कोई मणि है जिस से वह मालामाल है. क्योंकि एक बार तो उस ने स्वयं बातोंबातों में गांव की सावित्री नामक महिला से कहा था कि उस के पास पारस मणि है. वहां से यह बात धीरेधीरे फैलती चली गई थी, मगर अंदरखाने थी.
उस दिन बाबूलाल बहुत खुश था. उस के चेहरे पर खुशी की आभा स्पष्ट दिखाई दे रही थी. गांव में उस का सम्मान बढ़ता चला जा रहा था. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस गांव में उस ने गरीबी देखी है, अभाव देखे हैं, घर में एक बार ही खाना बनता था और दिन भर भूखे पूरा परिवार गुजार देता था. उसी गांव में उसे इतना मानसम्मान और पैसा मिलेगा.
मगर वह समझ रहा था कि यह सब उस के तंत्रमंत्र और रुपएपैसे के कारण हो रहा है. वह अपने ज्ञान पर मंत्रमुग्ध भी था.
लोगों की भावना में बह कर बाबूलाल यादव ने कहा, ‘‘देखो, एक होती है पारस मणि, जो तुम कह रहे हो न, मैं उसी की बात कर रहा हूं. पारस मणि एक दिव्य पत्थर है, कहते हैं कि अगर लोहे को छुआ दो तो वह सोना बन जाता है. तुम ठीक कह रहे हो.’’ बाबूलाल यादव ने बड़ी समझदारी से जानबूझ कर के बातों को आधाअधूरा कहा, ताकि कुछ लोग बात समझ जाएं और कुछ अस्पष्ट भी हो.
चौपाल में बैठे हुए लोगों की धड़कनें बढ़ गई थीं. लोग यह सोच रहे थे कि आज बहुत बड़ा खुलासा होने वाला है. बाबूलाल खुद यह बता देगा कि उस के पास पारस मणि है. अगर ऐसा है तो गांव की तकदीर बदल सकती है. गांव धनधान्य से परिपूर्ण हो जाएगा.
एक बुजुर्ग मनहरण शर्मा ने बाबूलाल की पीठ पर हाथ रख कर के बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘भाई बाबूलाल, अगर ऐसा है कि तुम्हारे पास पारस मणि है तो फिर तो तुम हमारे लिए किसी भगवान से कम नहीं हो.’’
बाबूलाल की छठी इंद्री अब काम करने लगी थी. उस ने संभल कर कहा, ‘‘अरे भाई, मैं ने कब कहा कि कोई मणि मेरे पास है लेकिन साधना करने से क्या नहीं मिल सकता. मैं ने साधना की है. मैं उसी की वजह से खुशहाल हूं. आप लोग भी मेरे रास्ते पर चलो. मगर यह आसान नहीं है 20-30 साल लग जाते हैं, तब जा कर के कोई शक्ति प्राप्त हो पाती है.’’